Rahul Gandhi Resignation : सियासी परीक्षा में फेल होकर भी राहुल ने हासिल की ये बड़ी उपलब्धि, जानें उनका राजनीतिक करियर

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2019 में हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से आज यानी बुधवार को इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस आलाकमान के लाख मनाने के बाद भी उन्होंने अपना इस्तीफा वापस नहीं लिया। राहुल ने चार पेजों का अपना इस्तीफा पत्र अपने आधिकारिक ट्विटर एकाउंट पर जारी किया है। उन्होंने कहा है कि मैं लोकसभा चुनाव 2019 में हार की जिम्मेदारी लेता हूं। अब बहुत देर हो रही है कांग्रेस को जल्द ही अध्यक्ष पद के लिए नेता चुन लेना चाहिए।
Rahul Gandhi: As president of the Congress party, I'm responsible for the loss of the 2019 elections, accountability is critical for the future growth of our party. It is for this reason that I have resigned as Congress president. pic.twitter.com/igokkZpMLs
— ANI (@ANI) July 3, 2019
आईए जानते हैं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के जीवन और सियासी सफर के बारे में...
राहुल गांधी सियासी सफर
राहुल गांधी का राजनीतिक जीवन में प्रवेश साल 2004 में हुआ था। वे पहली बार अमेठी से चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की। वे पहली बार अमेठी से संसद में पहुंचे। यह सीट उनके पिता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा विरासत में दिया गया था। यहां से पूर्व पीएम राजीव गांधी लगातार जीत दर्ज किए थे। उनके जाने के बाद राहुल को यह सीट सौंपा गया। यूपीए सी सरकार बनी और राहुल को पार्टी का महासचिव पद का कमान सौंपा गया। इसके साथ ही उन्होंने युवा कांग्रेस व NSUI का भी अहम जिम्मेदारियां संभाला।
यूपीए-2 की सरकार में पीएम बनाया जा रहा था
साल 2009 की बात है जब कांग्रेस सत्ता में दुसरी बार लगातार आई, इस बार कांग्रेस के महासचिव को प्रधानमंत्री पद सौंपा जा रहा था। कार्यकर्ताओं की मांग थी कि राहुल ही देश के पीएम बनें। ये बात खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि राहुल जैसे युवा नेता के नेतृत्व में मुझे काम करके बहुत खुशी मिलेगी। हालांकि राहुल गांधी ने पीएम पद तो दूर सरकार में किसी भी मंत्री पद को लेने से मना कर दिया। उसी के बाद से राहुल को पीएम बनाने की मांग कांग्रेस में तेज हो गई। राहुल ने बाद में यही कहा कि जनता जो भी फैसला करेगी वो उन्हें स्वीकार होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आती है तो वे जरूर पीएम बनेंगे।
राहुल का बगावती तेवर
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की सरकार थी। उस दौरान दागी नेताओं को बचाने के संबंध में एक अध्यादेश जारी हुआ था जिसकी प्रति राहुल ने मीडिया के सामने फाड़ दी थी। उस समय मनमोहन सिंह विदेश दौरे पर थे। उन्होंने आने के बाद भी राहुल को कुछ नहीं बोला था।
इससे पहले साल 2011 में यूपी की तत्कालीन सीएम मायावती के शासनकाल में भट्टा परसौल कांड का विरोध करने राहुल बाइक पर बैठकर पुलिस प्रशासन को चक्मा देते हुए उस गांव में पहुंच गए जहां यह घटना घटी थी। इस कारण राहुल गांधी को गिरफ्तार भी किया गया था।
हार और सियासी परीक्षा
राहुल के सियासी करियर की सबसे बड़ी परीक्षा साल 2009 में हुई, उस दौरान यूपी में आम चुनाव का प्रचार हो रहा था। राहुल गांधी को यहां प्रचार करने की जिम्मेदारी दी गई। इस चुनाव में कांग्रेस ने 80 में से 20 सीटें जीती थीं। यह आंकड़ा कांग्रेस के लिए उम्मीद से ज्यादा था क्योंकि कुछ सालों पहले पार्टी राज्य में ऐसा प्रदर्शन नहीं की थी। लेकिन इसके बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार निराशा मिलती रही।
साल 2010 में बिहार में विधानसभा का चुनाव था इस दौरान भी पार्टी को यहां निराशा ही मिली। 243 विधानसभा सीटों पर पार्टी ने सिर्फ 4 सीट ही जीत सकी। राहुल के तमाम मेहनत के बाद सिर्फ चार सीट ने उनका मनोबल तोड़ दिया था। हार के बावजूद साल 2017 में कांग्रेस की पू्र्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस्तीफा दिया और राहुल को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया।
अध्यक्ष पद पर रहते तीन राज्यों में जीत
साल था 2018, संसद का मानसून सत्र चल रहा था। लोकसभा में अपने भाषण के बाद राहुल गांधी पीएम मोदी की ओर बढ़े। जैसे ही वे उनके पास पहुंचे गले लग गए। राहुल गांधी का पीएम मोदी से इस तरह से गले मिलना चर्चा का विषय बन गई। राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए साल 2018 में पार्टी ने तीन राज्यों में जीत दर्ज की। एक तरह से हार का टैग हटा। राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीशगढ़ में कांग्रेस ने भाजपा को जोरदार पटखनी दी। इसी जीत के बाद राहुल से उम्मीद जगी कि आम चुनाव में भी पार्टी को राहुल का युवा नेतृत्व लाभ पहुंचाएगा।
और आम चुनाव 2019 में पार्टी की करारी हार
साल 2019 में कांग्रेस को राहुल के नेतृत्व से ज्यादा उम्मीदें थीं। राहुल दो जगह से चुनाव लड़े, एक अमेठी से दूसरा- केरल के वायनाड से, अमेठी से राहुल गांधी को भाजपा की स्मृति ईरानी ने करीब 50 हजार वोटों की अंतर से पराजित कर दिया। देश में पार्टी की स्थिति साल 2014 के नतीजों की तरह ही थी। कई राज्यों में पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। भाजपा ने साल 2014 से भी शानदार जीत दर्ज की।
करारी हार के बाद से ही राहुल गांधी ने पार्टी के समक्ष इस्तीफे की पेशकश की। हालांकि पार्टी लगातार मनाती रही। पार्टी के तमाम नेताओं के मनाने के बावजूद भी आज यानी बुधवार को राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने ट्विटर एकाउंट से चार पन्नों का इस्तीफा पत्र सार्वजनिक कर दिया। हालांकि उन्होंने कहा है कि वे पार्टी के लिए हमेशा काम करते रहेंगे।
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