Ram Temple Trust: 1992 से सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक ये हैं राम मंदिर के बनने की कहानी, जानें कब क्या हुआ

देश के सबसे चर्चित मुद्दे राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को संसद में बड़ा ऐलान किया। उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की है। प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की मंजूरी के बाद लोकसभा में ट्रस्ट को लेकर बिल पेश किया। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनने को कहा था।
पिछली पांच शताब्दी से रामजन्भूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा था। इस मुद्दे को लेकर देश की राजनीति कई बार गरमाई। कई सरकार आई और गई, लेकिन मुद्दा वहीं का वहीं बना रहा। बहुत बार इस मुद्दे को लेकर देशव्यापी आंदोलन हुए। विवाद को लेकर सालों तक रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के पक्षकारों ने कानूनी लड़ाई लड़ी। दोनों पक्षों के बीच कई बार मध्यस्थता का भी विकल्प रखा गया। लेकिन कोई विकल्प नहीं निकला।
जानें 1992 से लेकर 2019 तक कैसे और कब क्या हुआ
साल 1992 के 30-31 अक्टूबर के दरमियान हजारों की संख्या में कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद ढहा दी गई और अस्थाई राम मंदिर बना दिया गया। इस घटना के बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए। जिसमें करीब 2000 मासूम लोग मारे गए। इस घटना की जांच के लिए लिब्रहान आयोग बनाया गया। इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में बाबरी मस्जिद विध्वंस का केस चला। साल 1997 में इस मामले की जांच कर रही विशेष कोर्ट ने मामले में 49 लोगों को दोषी करार दिया। इन दोषियों में बीजेपी के कई बड़े नेताओं के नाम भी शामिल थे।
इस बीच विश्व हिन्दू परिषद ने मार्च 2002 को मंदिर निर्माण की तारिक तय की। 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया। इसी साल मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति को बरकरार रखने का फैसला सुनाया। 2003 में सीबीआई ने एलके आडवाणी सहित 8 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र साखिल किया। इसी साल कांची पीठ के शंकराचार्य ने जयेंद्र सरस्वती ने मामला सुलझाने के लिए मध्यस्थता की, हालांकि इसका कोई परिणाम सामने नहीं आया। आडवाणी ने मंदिर निर्माण के लिए विशेष विधेयक लाने का प्रस्ताव ठुकराया।
उन्होंने 2004 में अस्थायी मंदिर में पूजा की। 2005 में अयोध्या में आतंकी हमले को अंजाम दिया गया। इस हमले में 4 लोगों को न्यायिक हिरासत में भेजा गया। 2009 में लिब्रहान आयोग ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मामले की रिपोर्ट सौंपी। 2010 में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटा। जिसका एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को मिला। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी। साल 2018 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मामले की नियमित सुनवाई की अपील की, लेकिन उनकी इस अपील को ख़ारिज कर दिया।
2019 में मध्यस्थता पैनल इस मामले का समाधान निकलने में सफल हुआ। 6 अगस्त से मामले की नियमित सुनवाई शुरू हुई। 16 अक्टूबर को मामले की सुनवाई ख़त्म करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 अगस्त को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। फैसले में कोर्ट ने विवावित भूमि को राम मंदिर को देने और मस्जिद के लिए अलग पांच एकड़ जमीन देने का फैसला सुनाया था।
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