क्या सच में 1954 में पंडित नेहरू की वजह से हुआ था कुंभ हादसा, जानें उससे जुड़ी कई बातें

पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को एक बार फिर चुनावी राजनीति में घसीटते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 65 साल पहले 1954 में कुंभ मेला इतना बड़ा नहीं होता था। उस समय नेहरू भी उसमें आए थे तब अव्यवस्था के चलते भगदड़ मच गई थी। जिसमें हजारों लोग एक दूसरे के नीचे कुचल कर मारे गए थे लेकिन तात्कालीन सरकार ने इज्जत बचाने के लिए और पंडित नेहरू को दाग से बचाने के लिए खबरें दबा दी गईं थीं। बता दें देश की आजादी के बाद यह पहला कुंभ मेला था जिसमें हजारों लोगों की जाने गई थीं।
गौरतलब है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चुनावी भाषणों में अक्सर पूर्व की कांग्रेस सरकारों और उनके प्रधानमंत्रियों को निशाने पर लेते आए हैं। इसी कड़ी में एक बार पीएम मोदी ने बुधवार को यूपी के कौशांबी में जनसभा को संबोधित करते हुए इस बार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को निशाने पर लिया।
जनसभा में पीएम मोदी ने कहा, मुझे पहले भी कुंभ में अनेक बार आने का मौका मिला। जब सरकार बदलती और नीयत बदलती है तब कैसा परिणाम आता है, यह प्रयागराज ने इस बार दिखा दिया है।इस बार भी कुंभ में करोड़ों लोग आए, प्रधानमंत्री के तौर पर मैं खुद भी गया लेकिन न तो कोई भगदड़ नहीं हुई और न ही कोई मारा गया।
व्यवस्थाएं कैसे बदलती हैं उसका यह उदाहरण है। उस समय तो दूसरी पार्टियों का नामोनिशान भी नहीं था। उन परिवारों ने जिन्होंने अपना सब कुछ खोया था, उन्हें एक रूपया तक नहीं दिया गया। केवल भगदड़ ही नहीं, भगदड़ के बाद जो कुछ हुआ वह भारी असंवेदनशीलता थी, जुल्म था।
बता दें प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या वाकई में नेहरू के कुंभ में जाने की वजह से भगदड़ की घटना घटी और क्या तब के अखबारों ने इस खबर को कांग्रेस के दबाव में दबा दिया था। उस समय टीवी का दौर नहीं था इसलिए खबरों के लिए जनता अखबारों और रेडियो पर निर्भर थी।
हालांकि इस मामले में कुछ वरिष्ठ पत्रकारों की अलग दलील है इस मामले में उनके दो तर्क हैं पहला नेहरू हादसे के दिन कुंभ में मौजूद ही नहीं थे और दूसरा तब भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आज जैसे इंतजाम करना भी मुश्किल था।
हादसे के एक दिन पहले गए थे पंडित नेहरू
कुंभ में जवाहर लाल नेहरू की मौजूदगी पर पत्रकार पीयूष बबेले कहते हैं कि कुंभ में भगदड़ की घटना 3 फरवरी 1954 को हुई थी, जबकि पंडित नेहरू 2 फरवरी को कुंभ मेले में स्नान के लिए पहुंचे थे। वहां के इंतजामों से संतुष्ट होकर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत वे उसी दिन वहां से रवाना हो गए थे। पीयूष नेहरू वांग्मय खंड 25 के हवाले से बताते हैं कि संसद की कार्यवाही का ब्यौरा और नेहरू का संसद में दर्ज भाषण में इस हादसे का जिक्र है।
इसमें नेहरू ने कहा था हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज के नेतृत्व में हादसे की जांच के लिए कमेटी गठित कर दी गई है। इसमें नेहरू जी मृतकों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए सांसदों को यह मुद्दा उठाने के लिए प्रेरित करते हुए मुख्यमंत्रियों को 15 मार्च को लिखे पत्र में इस घटना का जिक्र भी किया है।
हादसे के दिन मौजूद थे तात्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार नरेश मिश्र के बीबीसी में छपे बयान के मुताबिक पंडित नेहरू भगदड़ से ठीक एक दिन पहले आए थे, उन्होंने संगम में जाकर तैयारियों का जायज़ा लिया और फिर वापस दिल्ली चले गए। लेकिन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद हादसे वाले दिन संगम क्षेत्र में ही थे और सुबह के समय किले के बुर्ज पर बैठकर दशनामी संन्यासियों का जुलूस देख रहे थे तभी दो पेशवाई जुलूस वहां से गुजरे और इस भीड़ ने भगदड़ की शक्ल ले ली।
45 मिनट भगदड़ और सैकड़ों मौतें
उस समय की इस घटना को अपनी आंखों से देखने वाले नरेश मिश्र बताते हैं कि 45 मिनट की ये भगदड़ बाद में अपने आप काबू में आ गई, प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार तब तक करीब 700-800 लोग मारे जा चुके थे। मिश्र कहते हैं लेकिन उस समय जो नजारा देखा और सुना था उस लिहाज से मृतकों की संख्या और ज्यादा रही होगी। उन्होंने बताया कि इस घटना की चर्चा महीनों तक रही और तब के सभी प्रमुख अखबरों ने कुंभ के इस हादसे को कई दिनों तक प्रकाशित किया था।
चारों तरफ लाशों का ढेर और मदद की गुहार
अंग्रेजी अखबार 'दी स्टेट्समैन' में छपे फोटो पत्रकार एनएन मुखर्जी के इंटरव्यू के अनुसार इस भड़दड़ में कम से कम हजार लोगों की मौत हुई थी और दो हजार के करीब घायल हुए थे। मुखर्जी बताते हैं कि 3 फरवरी 1954 के दिन मौनी अमावस्या थी इसलिए भारी संख्या में लोग संगम में पवित्र स्नान करने के लिए आए थे। वह अकेले ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने भगदड़ की तस्वीरें कैमरे में कैद की थीं। उनके मुताबिक उस समय चारों तरफ लाशों को ढेर था वहीं घायल लोग मदद की गुहार लगा रहे थे।
साधुओं को पेशवाई काफिला और मच गई भगदड़
तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी इसी दिन स्नान के लिए आना था। इस के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। दोनों नेताओं की कार करीब सुबह 10 बजे संगम क्षेत्र में दाखिल होती है और फिर किला घाट के लिए निकल जाती है। भीड़ को काबू करने के लिए बैरियर लगाए गए थे, तभी दूसरी ओर साधुओं की पेशवाई का काफिला वहां से गुजरता है और रस्सियों को तोड़ता हुआ आगे बढ़ता चला जाता है। इस भीड़ की चपेट में जो भी आता गया वह कुचलता चला गया। जो जमीन पर गिर गए वह उठ नहीं पाए और सिर्फ मदद की गुहार ही लगा सके। मरने वालों में 3-4 साल के बच्चों से लेकर बुजुर्ग महिला और पुरुष भी शामिल थे। मुखर्जी बताते हैं कि हजार लोगों की मौत के बाद भी सरकारी अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी और वह सरकारी आवास में चाय-कॉफी में मशगूल रहे।
हादसे की तस्वीरें लेने पर लगा दी थी रोक
मुखर्जी बताते हैं तत्कालीन सरकार ने हजार लोगों की मौत होने की बात से पूरी तरह इंकार कर दिया था। उनका मानना था कि इस घटना में सिर्फ कुछ भिक्षुओं की मौत हुई है। मुखर्जी के मुताबिक अगले दिन शवों का संस्कार कर दिया गया और किसी को भी फोटो लेने की इजाजत नहीं थी। हालांकि उन्होंने इस घटना की कुछ तस्वीरें निकाल ली थीं जिसकी वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत उनसे काफी नाराज हुए थे।
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