Same Sex Marriage: केंद्र का तर्क, SC का जवाब, 'केवल शहरी विचार नहीं'

Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई। इसकी सुनवाई चीफ जस्टिस (Chief Justice) डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अगुवाई वाली संविधान पीठ कर रही है। इससे पहले समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के मामले में मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस संबंध में दलीलों पर सुनवाई करते हुए कहा कि समलैंगिक संबंध महज शहरी विचार नहीं (Urban Elitist Concept) नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा कि शहरों में अपनी यौन पहचान बताने वाले ज्यादा लोग सामने आते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इसे शहरी विचार कहा जाए।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार के पास इस तरह का कोई ऐसा रिकोर्ड नहीं है जो ये बताए कि सेम सेक्स मैरिज की मांग सिर्फ शहरी वर्ग तक ही सीमित है। उन्होंने कहा कि राज्य किसी व्यक्ति के साथ उस विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है, जिस पर किसी इंसान का कोई नियंत्रण नहीं है।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली मांग पर याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि ये सिर्फ कुछ शहरी वर्ग की सोच को दर्शाता है। इस संबंध में कानूनी मान्यता देने की मांग पर याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश करते हुए आज बुधवार को वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर देश को आगे बढ़ाना है, तो कोर्ट को पहल करनी होगी। मुकुल रोहतगी ने कहा कि कभी-कभी कानून नेतृत्व करता है, लेकिन कई ऐसे मौके भी आते हैं, जब समाज नेतृत्व करता है।
वहीं, केंद्र सरकार ने पहले सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि समलैंगिक जोड़े के लिए शादी करने के अधिकार की मांग करने वाली याचिकाओं पर कार्यवाही में सभी राज्यों के पक्ष को भी जानना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। हालांकि, इसके बाद अब केंद्र सरकार ने राज्यों को पत्र लिखकर इस मामले पर उनका पक्ष जानने का विचार किया है। इस मामले पर केंद्र सरकार (Central Government) का कहना है कि राज्यों के साथ विचार करने और कोर्ट के सामने उन्हें रखने की इजाजत मिलनी चाहिए और यह भी कहा कि तब तक के लिए सुनवाई को टाल दिया जाए। याचिकाकर्ता पक्ष के वकील मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने इस पत्र का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि केंद्रीय कानून को चुनौती दी गई है। राज्यों को नोटिस जारी करना जरूरी नहीं है।
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