Sewer Cleaning: सीवर सफाई के दौरान मौतों पर SC का आदेश, परिवार को अधिकारी देंगे 30 लाख का मुआवजा

Sewer Cleaning: देश में सीवरों में होने वाली मौतों की घटनाओं पर गंभीर रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सरकारी अधिकारियों को सीवर सफाई के दौरान मरने वालों के परिजनों को 30 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि सीवर की सफाई के दौरान विकलांगता का शिकार होने वालों को मुआवजे के रूप में तकरीबन 20 लाख रुपये दिए जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश
पीठ ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो जाए। साथ ही, फैसला सुनाते हुए जस्टिस भट्ट ने कहा कि यदि सफाईकर्मी अन्य विकलांगता से पीड़ित है तो अधिकारियों को 10 लाख रुपये तक का भुगतान करना होगा। कई निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी एजेंसियों को यह तय करने के लिए साथ देना चाहिए कि ऐसी घटनाएं न हों और इसके अलावा, हाई कोर्ट को सीवर से होने वाली मौतों से संबंधित मामलों की निगरानी करने से न रोका जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक दाखिल जनहित याचिका के आधार पर सुनाया है।
कई लोगों को हो चुकी मौतें
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में लोकसभा से पहले साझा किए गए सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि पिछले पांच सालों में सीवरों में लगभग 350 लोगों की मौत हो गई है। इसमें 40 फीसदी मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली राज्यों में हुईं। पिछले साल, सरकार ने राज्यसभा को बताया कि 2013 और 2018 में दो सर्वेक्षणों में देश भर में 58,098 मैनुअल मैला ढोने वालों की पहचान की गई थी।
मैनुअल स्केवेंजिंग को मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत प्रतिबंधित किया गया है। जाति-आधारित प्रथा पर पहली बार 1993 में प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन कार्यकर्ताओं का आरोप है कि यह अभी भी कायम है। सरकार हाथ से मैला ढोने की प्रथा हाथ से मानव मल साफ करने की एक जाति-आधारित प्रथा और सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई की प्रथा के बीच अंतर करती है।
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