Sheila Dikshit Profile : कपूरथला टू कन्नौज वाया दिल्ली- शीला दीक्षित का सियासी सफर

Sheila Dikshit Profile : दिल्ली में 15 सालों तक शासन करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का निधन हो गया है। शीला दीक्षित की उम्र 81 साल थी, वे 1998 से लेकर साल 2013 तक दिल्ली की सीएम रहीं। कांग्रेस ने अनुभवी नेता शीला दीक्षित को लोकसभा चुनाव 2019 में राजधानी दिल्ली में चुनाव प्रचार करने का कमान सौंपा गया। शीला दीक्षित कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व कई सालों तक रहीं। उन्होंने दिल्ली में अपने कुशल नेतृत्व व तजुर्बे से कांग्रेस को बुलंदियों तक पहुंचाया। शीला ने कभी कांग्रेस में रोशनी बिखेरी तो कभी बुरे हालात के उस दिए की तरह बुझ गई जो तमाम आंधियों में भी जलने की कोशिश की।
संक्षिप्त परिचय :
जन्म : 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में
शिक्षा : दिल्ली में (कान्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल, दिल्ली विश्वविद्यालय)
विवाह : उन्नाव के आईएएस अधिकारी स्वर्गीय विनोद दीक्षित से
उपलब्धि : दिल्ली में लगातार 3 बार सीएम, दिल्ली को आधुनिक शहर बनाने का तमगा
आईए जानते हैं शीला दीक्षित का राजनीतिक सफरनामा...
दिल्ली की सियासत में छोड़ी छाप
साल 1998 में पहली बार शीला दीक्षित को दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। इस साल कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता मिली। वे पहली ऐसी महिला मुख्यमंत्री थीं जिन्होंने 15 सालों तक लगातार अपनी कुर्सी बचाए रखा। उन्होंने अपने शासन के दौरान दिल्ली में कई बड़ी योजनाएं चलाईं। उन्हें सीएनजी बस, दिल्ली में जगह-जगह फ्लाईओवर निर्माण, ग्रीन देलही के लिए याद किया जाता है। वे दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री थीं। कांग्रेस पार्टी ने साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया था, हालांकि उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। शीला दीक्षित के कार्यकाल में ही कॉमनवेल्थ जैसे अंतर्राष्ट्रीय गेम का आयोजन हुआ जो सफलतापूर्वक संपन्न रहा। हालांकि केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। वहीं दिल्ली में 24 घंटे बिजली देने का श्रेय शीला दीक्षित को ही जाता है। उनके विरोधी भी मानते हैं कि दिल्ली की दशा-दिशा सुधारने व शहर के आधुनिकीकरण में शीला दीक्षित ने अभूतपूर्व योगदान दिया था।
केंद्रीय राजनीति में शीला दीक्षित
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो शीला दीक्षित को सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। कांग्रेस के बुरे और अच्छे दिनों की साथी कही जाने वाली शीला दीक्षित ने पार्टी से कभी दगाबाजी नहीं की। वे कई दशकों तक कांग्रेस से साथ बनी रहीं कांग्रेस के बुरे दौर में उन्होंने पार्टी के लिए कई अहम योगदान दिए थे।
साल 2013 में सत्ता से बेदखल
साल 2013 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार पर देशव्यापी आंदोलन हुआ, हालांकि यह आंदोलन केंद्र सरकार के विरोध में था लेकिन इसका साफ-साफ असर दिल्ली प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ा। अन्ना के आंदोलन से अरविंद केजरीवाल के रूप में राजनीतिक नेता का जन्म हुआ। केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में हुए चुनाव में जबरदस्त सफलता प्राप्त की। हालांकि भाजपा ने भी कई सीटों पर जीत दर्ज की। यहीं से शीला दीक्षित का औपचारिक रूप से राजनीतिक फेयरवेल हो जाता है, क्योंकि शीला दीक्षित को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है। साल 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद शीला दीक्षित ने राज्यपाल पद से भी इस्तीफा दे दिया।
15 बरस की उम्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू से जब मिलीं
शीला दीक्षित का उम्र उस वक़्त 15 साल रहा होगा जब उन्होंने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिलने उनके घर तीन मूर्ति भवन पहुंची। गेट पर खड़े दरबान से शीला दीक्षित ने कहा कि उन्हें पंडित जी से मिलना है, इस पर दरबान ने पहले तो ना नुकर किया लेकिन बाद में बहुत कोशिश करने पर गेट खोल दिया। हालांकि पंडित नेहरू अपनी कार से कहीं जा रहे थे, जैसे ही पंडित नेहरू कार में बैठे शीला ने उन्हें देखकर हाथ हिलाया, जवाब में पंडित नेहरू ने भी हाथ हिलाया। यह घटना एक इत्तेफाक ही था कि पंडित नेहरू से मुलाकात करने पहुंची शीला कपूर एक दिन शीला दीक्षित बन गयीं और जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) के नाती के सरकार में जगह भी बना लीं।
विवादों से रहा नाता
राजनीति में आने से पहले शीला दीक्षित कई एनजीओ, संगठनों से जुड़ी रहीं। उन्होंने यूएन (UN) में भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने दिल्ली में जहां चौतरफा विकास किया वहीं उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी लगे। साल 2010 में जब कॉमनवेल्थ गेम का आयोजन हो रहा था तब उन पर सरकारी पैसे का दुरूपयोग करने का आरोप लगा। दिल्ली की सीएम रहने के दौरान टैंकर स्कैम में भी उनका नाम जुड़ा। वहीं बहुचर्चित जेसिका लाल मर्डर केस के आरोपी मनु शर्मा को अवैध रूप से पैरोल दिलाने का भी आरोप लगा था।
निर्भया कांड में शीला के सरकार की आलोचना
साल 2012 में मानवीयता को झकझोर देने वाले दिल्ली गैंगरेप कांड से शीला दीक्षित सरकार की देशभर में आलोचना हुई। लोगों का कहना था कि राज्य और केंद्र में कांग्रेस की सरकार रहते हुए राजधानी में इतनी दुर्दांत वारदात कैसे हुई। दिल्ली गैंगरेप के विरोध का सुर पूरे देश में फैल गया। इससे कांग्रेस के केंद्र सरकार पर भी छिंटा पड़ा और साल 2014 आते-आते दोनों जगह से कांग्रेस की सरकार चली गई।
लोकसभा चुनाव 2019 में मिली कांग्रेस की अहम जिम्मेदारी
साल 2019 में राहुल गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपनी बिगड़ी हुई राजनीतिक दशा बनाने चली, दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस को अनुभवी शीला दीक्षित का साथ चाहिए था, कांग्रेस ने इसी कारण शीला दीक्षित को राजधानी दिल्ली का कमान सौंप दिया। शीला दीक्षित ने एक बार फिर पार्टी धर्म निभाते हुए 80 बरस की उम्र में सांसदी का चुनाव लड़ने को तैयार हुईं। दिल्ली कांग्रेस का कमान उनके हाथों में था, लेकिन पार्टी को निराशा हासिल हुई। दिल्ली में सातों सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज किया। खुद शीला दीक्षित भी हार गईं, उन्हें भाजपा दिल्ली के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने शिकस्त दिया था।
बेहद शख्त मां थी शीला
शीला दीक्षित दो संतानों की मां थीं, अपने बच्चों लतिका व संदीप के लिए वे हमेशा एक शख्त मां के तौर पर रहीं। उनकी बेटी लतीका कहती हैं कि जब भी मैं कोई गलती करती थी तो मां हमें बाथरूम में बंद कर देती थीं। उन्होंने पढ़ाई के लिए कभी हम दोनों पर दबाव नहीं बनाया। उन्होंने पढ़ाई से ज्यादा तमीज और तहजीब पर ध्यान दिया। शीला दीक्षित संगीत की दीवानी थीं। उन्हें 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' बेहद पसंद था। वे इस फ़िल्म को सैकड़ों बार देख चुकी थीं।
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