Political Fight: 'संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्द हटाए गए', पढ़ें इसके पीछे की सियासत

Political Fight: संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्द हटाए गए, पढ़ें इसके पीछे की सियासत
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Political Fight: संविधान की प्रस्तावना में दो शब्द यानी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को हटाने के दावे से सियासत गरमा गई है। कांग्रेस का कहना है कि संविधान की नई प्रति में इन दोनों शब्दों को हटा दिया गया है। लेकिन, इन शब्दों को कब और क्यों संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया, उसे जानकर भी आप हैरान रह जाएंगे। पढ़िये यह रिपोर्ट...

Political Fight Between BJP-Congress: संविधान की प्रस्तावना में दो शब्द समाजवाद (Socialism) और धर्मनिरपेक्षता (Secularism) को हटाए जाने के दावे के बाद कांग्रेस और बीजेपी आपस में भिड़ गई हैं। कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी संविधान को बदलने की कोशिश कर रही है। वहीं, बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस को हर मुद्दे पर राजनीति करनी है और अपने इस व्यवहार का खामियाजा उसे आने वाले चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। उधर, तीसरे पक्ष की मानें तो समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्द जिस समय संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया था, उस वक्त देश में इमरजेंसी लागू थी। ऐसे में इस पर सदन में बहस नहीं हुई पाई थी और बिना चर्चा के यह प्रस्ताव पास कर दिया गया था। आज की रिपोर्ट में जानते हैं कि इस मुद्दे पर लंबे समय से रूक-रूककर सियासत (Politics) क्यों गरमा जाती है। लेकिन, इससे पहले बताते हैं कि किन-किन नेताओं ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार (Modi Government) को घेरा है।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी बोले- यह संविधान को बदलने की कोशिश

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाते हुए कहा कि संविधान की नई प्रति पढ़ते हुए मुझे धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द कहीं दिखाई नहीं दिए। मैंने इसे अपने आप से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि मैंने राहुल गांधी को भी यह प्रति दिखाई थी। 1976 में संविधान में संशोधन करके इन शब्दों को जोड़ा था, लेकिन अब ये दोनों शब्द कहीं नहीं दिखे। उन्होंने पूछा कि हम संशोधन क्यों करते हैं। क्या हमें आज संशोधन नहीं मिलेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि हमारे संविधान को बदलने की जानबूझकर कोशिश की गई है।

वेणुगोपाल ने कहा- यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण

कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने भी मोदी सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं हटाना चाहिए। यह कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्षता का न होना दर्शाता है कि सरकार इन पर विश्वास नहीं करती है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

अब्दुल्ला बोले- मैंने इसे अभी तक नहीं देखा

नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुला ने कहा कि मैने अभी तक संविधान की प्रति नहीं देखी है। आज मैं इसकी प्रति लूंगा और इसे पढ़ने के बाद ही इस पर कोई प्रतिक्रिया दे सकता हूं।

लंबे अर्से से ये शब्द हटाने की मांग

संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग लंबे अर्से से चल रही है। जुलाई 2020 में भी इस मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। यह याचिका एडवोकेट विष्णु शंकर जैन के माध्यम से तीन लोगों ने दाखिल कराई थी। इस याचिका में कहा गया था कि प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्द गणतंत्र की प्रकृति बताते हैं, लेकिन ये सरकार की संप्रभु शक्तियों और कामकाज तक सीमित है। ये आम जनता, राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों पर लागू नहीं होता। ऐसे में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए (5) में दिए शब्द समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष को रद किया जाए।

42वें संविधान संशोधन में जोड़े गए थे ये दोनों शब्द

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को 42वें संविधान संशोधन के जरिये जोड़ा गया था। यह संशोधन 3 जनवरी 1977 को हुआ था। उस समय देश में इमरजेंसी लागू थी। ऐसे में यह प्रस्ताव बिना चर्चा के पास हो गया।

तीन बार खारिज हो गया था यह प्रस्ताव

प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्द को जोड़ने के लिए तीन बार प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन तीनों बार यह प्रस्ताव गिर गया था। पहली बार 15 नबंवर 1948 को धर्मनिरपेक्ष शब्द शामिल करने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद 25 नवंबर 1948 को यह शब्द जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया। दोनों बार प्रस्ताव पास नहीं हो सका। तीसरी बार 3 दिसंबर 1948 को फिर से प्रस्ताव रखा, लेकिन तब भी यह पास नहीं हो सका। खास बात है कि संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था। लेकिन इमरजेंसी लागू होने के दौरान यह प्रस्ताव पास बिना चर्चा के पास कर दिया गया। आज जब महिला आरक्षण बिल पर संसद में चर्चा हो रही है, उससे पहले ही इन दो शब्दों को लेकर विपक्ष ने सत्ता पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। अब देखने वाली बात होगी कि इस मुद्दे की लड़ाई में बीजेपी जीतेगी या फिर कांग्रेस।

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