Sunday Special: भारत से जुड़ा है इजराइल का इतिहास, देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने किया था विरोध

संडे स्पेशल में हम बात कर रहे हैं 73 साल पुराने इजरायल और फिलिस्तीन के विवाद के साथ आखिर इजरायल का इतिहास कैसे जुड़ा है भारत के साथ और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आखिर ऐसा क्या कहा था जिसकी वजह से आज भी इजराइल भारत को एक अलग नजरिए से देखता है।
14 मई 1948 में जब इजरायल एक स्वतंत्र देश बनने जा रहा था। तो संयुक्त राष्ट्र संघ में इसके लिए प्रस्ताव रखा गया। इस प्रस्ताव का भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विरोध किया था। कहते हैं कि बाद में जाने-माने वैज्ञानिक आइंस्टीन ने प्रधानमंत्री को इजरायल को लेकर पत्र लिखा और 2 साल बाद भारत ने इजराइल को मान्यता दे दी। बता दें कि 1948 को जब इजरायल को आजादी मिली और संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल और फिलिस्तीन दो देश बनाने का प्रस्ताव पेश किया गया। तब भारत ने इसके खिलाफ वोट किया था। जवाहरलाल नेहरू इस बंटवारे के खिलाफ थे।
लेकिन फिर बाद में 17 सितंबर 1950 को उन्होंने इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी। हालांकि ऐसा करने के बाद भी भारत और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध लंबे समय तक नहीं रहे। लेकिन साल 1952 में इजरायल के साथ भारत के संबंध बहाल किए गए। उस वक्त देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव थे।
तब भारत ने इजरायल बनने के विरोध में वोट दिया था
कहते हैं कि सयुंक्त राष्ट्र में तर्क दिया गया था कि फिलिस्तीन अरबों के साथ यहूदी लोगों को भी देश देना चाहिए। भारत ने इसके खिलाफ वोट दिया और उस वक्त इसके पक्ष में 33 वोट पड़े और जबकि विपक्ष में 13 वोट। जिसमें 10 देश वोटिंग के दौरान गायब रहे।
आइंस्टीन ने नेहरू को क्या चिट्ठी लिखी थी
जानकारी के लिए बता दें कि भारत के रुख के बारे में कुछ भी छुपा नहीं था। उस वक्त दुनिया के जाने माने वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने जवाहरलाल नेहरू को चिट्ठी लिखी और उन्होंने अपील की कि भारत को इसराइल के पक्ष में वोट करना चाहिए। लेकिन उस वक्त नेहरू ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि आइसक्रीम खुद यहूदी थे। जर्मनी में यहूदियों के नरसंहार के बाद उन्होंने अमेरिका में जाकर शरण ली थी।
नेहरू ने क्या जवाब दिया था
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस बंटवारे को लेकर सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि फिलिस्तीन में अरबी सदियों से रह रहे हैं। जब एक यहूदी देश बनेगा। तो उन्हें बेदखल होना पड़ेगा। जो कि उचित नहीं होगा। नेहरू ने आइंस्टीन की चिट्ठी में यही जवाब दिया था। लेकिन 2 साल बाद 1950 को भारत ने इजराइल को मान्यता दे दी।
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