Sunday Special: जानें क्या है प्रीकॉशन डोज, किन लोगों को दी जाएगी, क्यों है जरूरी

दुनिया में एक बार फिर कोरोना वारयस (Coronavirus) के नए नए वेरिएंट अपडेट या अपना स्वरूप बदल रहे हैं। भारत में तेजी से ओमिक्रॉन (Omicron) को मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने शनिवार की रात को देश को संबोधित करते हुए एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि 15 साल से लेकर 18 तक के बच्चों को कोविड टीका लगेगा, जो 3 जनवरी से शुरू होगा। तो वहीं फ्रंट लाइन वर्कर्स को प्रीकॉशन डोज (precaution dose) दी जाएगी। ऐसे में अब लोगों के दिमाग में सवाल था कि क्या प्रीकॉशन डोज बूस्टर डोज ही है क्या...
बूस्टर खुराक के बजाय दी जाएगी प्रीकॉशन डोज
भारत में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच वैक्सीन की तीसरी खुराक की आवश्यकता पर चर्चाएं तेज हैं। ऐसे में बूस्टर डोज जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जा रहा है। लेकिन जब पीएम मोदी ने देश को संबोधित करते हुए फ्रंटलाइन वर्क्स को 'बूस्टर खुराक' के बजाय 'प्रीकॉशन डोज' शब्द का इस्तेमाल किया। प्रीकॉशन खुराक के तौर पर बूस्टर डोज दे रही है।
क्या है बूस्टर डोज?
सबसे पहले हमें बूस्टर डोज के बारे में जानना होगा। कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी तैयार करने के लिए दुनियाभर में बनी ज्यादातर वैक्सीन की दो डोज देने की जरूरत है। वैक्सीन डोज लगने से इम्यूनिटी का स्तर बढ़ जाता है। अलग-अलग कंपनियां इसे लेकर अलग-अलग दावे करती हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ये बूस्टर डोज उन्हीं लोगों को दी जाती है जिनकी इम्यूनिटी कम या एंटीबॉडीज कम बनती हैं। बूस्टर डोज म्यूनिटी पावर को बढ़ाती है।
प्रीकॉशन डोज क्या है?
पीएम नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए बूस्टर डोज नाम का इस्तेमाल न करते हुए प्रीकॉशन डोज का जिक्र किया। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दूसरी खुराक और प्रीकॉशन डोज के बीच 9 से 12 महीने का अंतर हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे प्रीकॉशन डोज 2022 नाम दिया है, जो 60 साल से अधिक उम्र के लोगों और फ्रंट लाइन वर्कर्स को 10 जनवरी से लगेगा।
ओमिक्रॉन को लेकर चर्चा जोरों पर चल रही है। दुनिया में इसके अनुभव भी अलग हैं। अनुमान भी अलग हैं। भारत के वैज्ञानिक भी इस पर पैनी नजर रखे हुए हैं। इस पर काम कर रहे हैं। हमारे टीकाकरण के 11 महीने पूरे हो गए हैं, तो वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन और पूरी दुनिया के अनुभवों को देखते हुए कुछ फैसले लिए। कोरोना योद्धा, स्वास्थ्य सेवा और फ्रंटलाइन वर्क्स के कार्यकर्ता हैं, उनका इस लड़ाई में देश को सुरक्षित रखने में बहुत बड़ा योगदान है।
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