लाठी गांव में रहने वाले लोगों की पहचान, ये हत्या का हथियार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि लाठी गांव में रहने वाले लोगों की पहचान है। इसे हत्या का नहीं कहा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात एक मामले पर सुनवाई के दौरान कही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, हत्या (धारा 302) के एक मामले को गैर इरादतन हत्या (धारा 304 भाग दो) में बदला। साथ ही कोर्ट ने आरोपी के जेल में रहने की अवधि को सजा मानते हुए उसे रिहा करने का आदेश भी दिया है।
जस्टिस आरएफ नरीमन की अगुवाई वाली बेंच ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ के एक मामले की सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा, गांव के लोग लाठी लेकर चलते हैं जोकि उनकी पहचान बन गई है। यह हम मानते हैं, लाठी को हमले के हथियार की तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता है, लेकिन, इसे सामान्य तौर पर हमला करने या हमले का हथियार नहीं स्वीकार किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा, मौजूदा मामले में लाठी से सिर पर वार किया गया। लेकिन, हमेशा यह सवाल बना रहेगा कि क्या यह हमला हत्या के इरादे से किया गया था? हुमला करने वाले शख्स को क्या इस बात की जानकारी थी, इस हमले से किसी की जान जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट के यह भी कहना है इस मामले से जुड़े हकीकत, हमले की प्रकृति और उसका तरीका, वार और घावों की संख्या आदि को देखकर ही किसी के इरादे के बारे में कुछ तय किया जा सकता है।
आपको बता दें कि जमीन विवाद को लेकर हुए विवाद में आरोपी जुगत राम ने एक शख्स के सिर पर लाठी से हमला किया था। उस समय जुगत राम के हाथ में लाठी थी। हमले की वजह से पीड़ित की दो दिन बाद अस्पताल में मौत हो गई।
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