Telangana: BRS और कांग्रेस को बहुमत नहीं, तो ओवैसी होंगे किंग मेकर या BJP करेगी खेल, जानिए तेलंगाना का पूरा गणित

Telangana: BRS और कांग्रेस को बहुमत नहीं, तो ओवैसी होंगे किंग मेकर या BJP करेगी खेल, जानिए तेलंगाना का पूरा गणित
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Telangana: तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए कल यानी 3 दिसंबर को वोटों की मतगणना होनी है। इससे पहले एग्जिट पोल के आंकड़ों ने सबको चौंका दिया है। ऐसे में बीआरएस और कांग्रेस को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, तो क्या ओवैसी होंगे किंग मेकर या बीजेपी करेगी खेल... पढ़िए रिपोर्ट

Telangana Exit Poll Analysis: तेलंगाना में 30 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए हुई वोटिंग के साथ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए। एक तरफ जहां प्रदेश में सीएम केसीआर तीसरी बार जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरे थे तो वहीं, भाजपा और कांग्रेस उनका विजय अभियान रोकने की भरसक कोशिश करते दिखे। चुनाव जब अंतिम चरण में था तो उस समय सभी राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंकी और खूब दांव पेंच भी चले, लेकिन अब रविवार यानी 3 दिसंबर को साफ हो जाएगा कि कौन जनता का दिल जीतने में सफल रहा।

हालांकि, तेलंगाना के एग्जिट पोल के नतीजे चौंकाने वाले हैं। सभी एग्जिट पोल के नतीजे देखने के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि सीएम केसीआर हैट्रीक लगाने से रह जाएंगे और कांग्रेस सत्ता पर कब्जा करेगी, लेकिन कुछ एग्जिट पोल यह भी दिखा रहे हैं कि कांग्रेस और बीआरएस दोनों ही बहुमत के आंकड़े से पीछे हैं। हालांकि, एग्जिट पोल के आंकड़े सामने आने के बाद से तीन सवाल सबके जहन में उठ रहे हैं।

केसीआर की पकड़ हुई कमजोर

पहला सवाल ये है कि क्या सीएम केसीआर को इस बात की जानकारी पहले से ही थी कि राज्य में अबकी बार उनकी पकड़ कमजोर हो गई या इस बार उन्हें जनता सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा सकती है। इसके लिए उन्होंने चुनाव से ठीक पहले एक दांव चला था, जिसमें वे सफल नहीं हुए। वहीं, दूसरा सवाल है कि असदुद्दीन ओवैसी अगर किंग मेकर बनते हैं तो वो सीएम केसीआर और बीआरएस का समर्थन करेंगे। ये तो जगजाहिर है, लेकिन अगर खुदा न खास्ता ओवैसी के समर्थन के बाद भी बीआरएस सत्ता में नहीं आ पाती है तो ओवैसी उस वक्त क्या करेंगे?

पूर्ण बहुमत किसी को नहीं, तो कौन देगा किसका साथ

मान लीजिए अगर तेलंगाना में कांग्रेस भी पूर्ण बहुमत के जादुई आंकड़े से पीछे रह जाती है, तो वह किसके साथ समझौता करेगी। उसके साथ कौन सी पार्टी हाथ बढ़ाएगी, क्योंकि कांग्रेस ने पहले ही सीएम केसीआर को इंडिया गठबंधन में शामिल न करके उन्हें नाराज कर रखा है। वहीं, ईडी और सीबीआई की रेड से बीआरएस और उसके नेता परेशान रहते हैं। जिसके चलते बीजेपी से पहले ही केसीआर का छत्तीस का आंकड़ा है।

इसके अलावा चुनाव के दौरान भी देखने को मिला कि कैसे पीएम मोदी और गृह मंत्री ने बीआरएस पर जमकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। हालांकि आरोप लगाने के मामले में कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। इससे केसीआर और बीजेपी का साथ आने का कोई मतलब नहीं बनता। तो चलिए इन सभी सवालों का जवाब सिलसिलेवार तरीके समझते हैं।

चुनाव से पहले सीएम केसीआर ने चला था ये बड़ा दांव

बताते चलें कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले ही सीएम केसीआर ने एक दांव चला था। हालांकि, इस दांव में वह सफल नहीं हुए। दरअसल, सीएम केसीआर ने बिहार सीएम नीतीश कुमार से पहले ही आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए विपक्ष को एक साथ लाने की मुहिम छेड़ रखी थी। वे विपक्षी गठबंधन में शामिल होकर विधानसभा चुनाव में अपना उल्लू सीधा करना चाह रहे थे। केसीआर विपक्षी गठबंधन में शामिल होकर कांग्रेस से हाथ मिलाकर सीएम और पीएम पद की डील करना चाहते थे, लेकिन उनका ये दांव उल्टा पड़ गया।

नीतीश कुमार से मिले थे सीएम केसीआर

गौरतलब है कि बिहार सीएम नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होने के बाद उनसे मुलाकात करने के लिए बाहरी नेता के तौर पर सबसे पहले तेलंगाना के सीएम केसीआर पटना पहुंचे थे। उन्होंने पटना में नीतीश कुमार से बातचीत कर विपक्षी एकताजुटता की रूपरेखा तैयार करने की बात कही थी। सीएम केसीआर की मुलाकात के बाद नीतीश कुमार दिल्ली दौरे पर निकले और राज्यों के मुख्यमंत्रियों और पार्टियों के प्रमुखों से मिलने का सिलसिला शुरू किया। सभी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात करने के बाद नीतीश कुमार ने सबसे अंत में कांग्रेस मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की।

कांग्रेस ने इन नेताओं से हाथ मिलाने से किया था इनकार

इस मुलाकात में नीतीश कुमार ने गठबंधन का कांग्रेस नेता के सामने पूरा खाका रखा। नीतीश कुमार की बात सुनने के बाद कांग्रेस ने भी उनके सामने एक प्रस्ताव रखा। इसी प्रस्ताव में तेलंगाना सीएम का सारा दांव फेल हो गया। दरअसल, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने सीएम नीतीश कुमार से कहा कि वह विपक्षी एकजुटता में शामिल होने के लिए तैयार हैं, लेकिन तेलंगाना, हरियाणा और कर्नाटक में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस के इस स्टैंड के बाद नीतीश कुमार ने के. चंद्रशेखर राव, एचडी कुमारस्वामी और ओम प्रकाश चौटाला से दूरी बना ली। इसके बाद सीएम केसीआर की रणनीति फेल हो गई।

ओवैसी के समर्थन के बाद भी बीआरएस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो क्या?

बता दें कि सूबे की निगाहें ओवैसी की ओर भी टिकी हुई हैं। दरअसल, ओवैसी प्रदेश में किंग मेकर की भूमिका निभा सकते हैं। जाहिर है कि ओवैसी की पार्टी और बीआरएस का गठजोड़ है। वह बीआरएस का समर्थन करेंगे। ओवैसी के समर्थन के बाद भी अगर बीआरएस सत्ता में काबिज नहीं हो पाती है, तो फिर ये देखने लायक होगा की ऊंट किस ओर करवट लेगा। ये भी साफ है कि ओवैसी, कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने की संभावना नहीं है। ओवैसी लगातार कांग्रेस पर भी हमलावर रहते हैं। बीजेपी प्रदेश में उतनी मजबूत स्थिति में है नहीं। ऐसे आखिर क्या होगा, इसका जवाब तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही दिया जा सकता है। यहां ये भी जानना बहुत जरूरी है कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ओवैसी मजबूत हैं। प्रदेश में 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं और उनका असर लगभग प्रदेश की एक तिहाई सीटों पर है।

अंतिम सवाल का जवाब

वहीं, तीसरे और अंतिम सवाल के जवाब की बात की जाए, तो अगर कांग्रेस खुद के दम पर सत्ता में काबिज नहीं हो पाती है तो वह ओवैसी के साथ हाथ मिलाएगी या बीआरएस के। इसके लिए कुछ भी कहना मुश्किल है, क्योंकि कांग्रेस से पहले ही बीआरएस नाराज है । इसके अलावा कांग्रेस अपनी धुर विरोधी पार्टी बीजेपी के साथ जा नहीं सकती। ओवैसी, कांग्रेस को पसंद नहीं करते हैं। उस समय कांग्रेस, बीआरएस और ओवैसी तीनों के सामने चुनौती होगी कि आखिर किसे गले लगाया जाए और किसे दूर रखा जाए। एक बात और भी है बीआरएस अगर बीजेपी के साथ जाने का मन भी बनाती है तो ओवैसी के साथ रिश्तों में खटास आ जाएगी। बीजेपी की ओर केसीआर के रुख करते ही वो अपना एक मजबूत वोट बैंक मुस्लिमों को खो देंगे। इन सभी पहलुओं को बारीकी से देखने के बाद यही लगता है कि अगर प्रदेश में कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत के आंकड़े नहीं छू पाई तो वहां की सियासत में दिलचस्प उठा पटक देखने को मिलेगी।

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