विपक्ष के हंगामे के बीच लोकसभा में पेश हुआ तीन तलाक बिल, रविशंकर प्रसाद और ओवैसी के बीच जमकर हुई बहस

तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शुक्रवार को हंगामे के बीच लोकसभा में इससे संबंधित एक विधेयक पेश किया। कांग्रेस और एआईएमआईएम के भारी विरोध के बीच सदन ने इस बिल को 74 के मुकाबले 186 मतों के समर्थन से सदन में पेश करने की अनुमति दी।
कानून मंत्री ने लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 पेश करते हुए कहा कि यह बिल पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में पारित किया जा चुका है। लेकिन सोलहवीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने और राज्यसभा में लंबित रहने के कारण यह निष्प्रभावी हो गया है। इसलिए सरकार इसे दोबारा सदन में लेकर आई है।
अगले सप्ताह में इस पर लोकसभा में चर्चा की शुरूआत हो सकती है। जिसके बाद इसे पारित किया जाएगा। इस बिल को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिलने के बाद यह बीते फरवरी में सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश की जगह ले लेगा।
पेपर स्लिप से हुई वोटिंग
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष की आपत्ति और मत विभाजन की मांग को स्वीकार करते हुए पेपर स्लिप से यह तमाम प्रक्रिया पूरी की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नए निवार्चित सांसदों की शपथ के बाद यह सदन का पहला कामकाजी दिन था। जिसमें उन्हें बैठने के लिए वास्तविक स्थान यानि सीट का आवंटन नहीं हुआ है। ऐसे में वोटिंग मशीन का इस्तेमाल नहीं हो सकता था।
लोकसभा अध्यक्ष ने विधेयक पेश किए जाने के दौरान कुछ सदस्यों की आपसी बातचीत को सदन की गरिमा के खिलाफ बताते हुए कहा कि लोकसभा प्रक्रियाओं से चलती है। इसकी मर्यादाओं को बनाए रखना हम सभी का दायित्व है। सदस्यों को आपसी चर्चा करने से बचना चाहिए। ऐसा करने वाले कुछ सदस्यों का नाम लेने पर कांग्रेस के सदस्यों ने विरोध जताया।
संसद को अदालत न बनाएं
रविशंकर प्रसाद ने विपक्ष के कुछ सदस्यों की आपत्ति को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि संविधान के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए अनुच्छेद 15 (3) में यह बात कही गई है कि महिलाओं और बच्चों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। लेकिन विपक्षी सदस्य इसे एक समुदाय पर केंद्रित और संविधान का उल्लंधन करने वाला बता रहे हैं।
उन्होंने कहा कि देश की जनता ने हमें कानून बनाने के लिए भेजा है। कानून पर बहस और उसकी व्याख्या करने का काम अदालत में होता है। संसद को अदालत नहीं बनने देना चाहिए।उन्होंने कहा कि यह सवाल सियासत और धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। बल्कि नारी न्याय, गरिमा और इंसाफ से जुड़ा हुआ है।
मंत्री ने सवाल किया कि जब सर्वोच्च-न्यायालय के फैसले के बाद भी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक जारी रहने से पीड़ित हैं। तो क्या संसद को इस पर विचार नहीं करना चाहिए? सरकार को विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिली है कि 2017 के बाद से तीन तलाक के 543 मामले सामने आए हैं। जिसमें 229 मामले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद और 31 मामले सरकार द्वारा अध्यादेश लाने के बाद सामने आ चुके हैं।
विपक्ष की आपत्तियां
बिल पेश किए जाने का विरोध करते हुए कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कहा कि हम इसके प्रारूप और व्याख्या दोनों का विरोध कर रहे हैं। इसे किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं रहना चाहिए। थरूर के बाद आरएसपी के एन.के.प्रेमचंद्रन और एआईएमआईएम के असासुद्दीन ओवैसी ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंधन बताते हुए सभी समुदाय के लोगों के लिए समान कानून बनाने की जरूरत बताई।
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