Udaipur Chintan Shivir: उदयपुर में नव संकल्प चिंतन शिविर का समापन, जानें कैसा रहा कांग्रेस की स्थापना से 2014 तक पार्टी का इतिहास

उदयपुर में कांग्रेस का तीन दिवसीय नव संकल्प चिंतन शिवर का आज समापन हो गया। यहां नव संकल्प शिविर का ऐलान किया गया। कांग्रेस चिंतन शिविर में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि कांग्रेस 2 अक्टूबर से भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने जा रही है। देशभर में भारत जोड़ो यात्रा निकालेंगे। साथ ही पार्टी के इस चिंतन शिविर में अन्य मुद्दों पर भी सहमति जताई।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी 'एक परिवार, एक टिकट' नियम और पांच साल की पार्टी भूमिका में उच्च प्रदर्शन करने वालों के लिए छूट, संगठन को मजबूत करने के लिए नई मंडल समिति, सभी 23 फसलों के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत एमएसपी, कृषि ऋण राहत आयोग, सार्वजनिक क्षेत्र के पुश पोस्ट पर वापसी के प्रस्तावों का समर्थन किया। उदारीकरण और अन्य प्रमुख प्रस्तावों के अलावा नौकरियों में निजी क्षेत्र कोटा की मांग की गई है।
उदयपुर नव संकल्प ऐलान में इन बातों पर दिया जोर
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कोख से जन्मी 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' असीम संघर्ष, त्याग और बलिदान की बुनियाद पर खड़ी है। करोड़ों देशवासियों ने कांग्रेस के नेतृत्व में जिस क्रांति का आगाज किया था, वह ब्रितानवी हुकूमत से आज़ादी लेकर अपना शासन और अपने संविधान के लिए तो था ही, उस संघर्ष के मूल में चौतरफा असमानता, भेदभाव, कट्टरता, रूढ़िवादिता, छुआछूत और संकीर्णता को खत्म करने की कवायद भी थी।
देश-प्रेम व बलिदान की भावना से ओत-प्रोत आजादी के आंदोलन का आधार था 'सबके लिए न्याय'। करोड़ों कांग्रेसजनों ने स्वतंत्रता संग्राम में जेल की अमानवीय यातनाएं सहीं व भारत मां की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। साल 1885 से 1947 तक के 62 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद स्वतंत्रता आंदोलन की यह क्रांति भारत की आजादी के रूप में परिणित हुई। न्याय, संघर्ष, त्याग और बलिदान की इस परिपाटी ने आजादी के बाद अगले 70 वर्षों तक भारत की एकता, अखंडता, प्रगति व उन्नति का रास्ता प्रशस्त किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व उसके नेतृत्व ने कट्टरवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद व हिंसा का रास्ता अपनाकर भारत के बहुलतावादी व समावेशी सिद्धांतों को चुनौती देने वाली हर ताकत से लोहा लिया। भारतीय मूल्यों की रक्षा के इस संघर्ष में महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी व असंख्य कांग्रेसजनों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।
सन 1947 में भारत को राजनीतिक आजादी तो हासिल हो गई, पर देश के सामने अनगिनत चुनौतियां थीं। न पर्याप्त अनाज पैदा होता था, न उद्योग-धंधे थे, न सुई तक बनाने के कारखाने थे, न स्वास्थ्य सुविधाएं थीं, न शैक्षणिक संस्थान थे, न सिंचाई की सुविधा थी, न पर्याप्त बिजली का उत्पादन था, न यातायात और संचार के साधन थे, न देश की सुरक्षा का पूर्ण इंतजाम। देश को सैकड़ों रियासतों की सामंतशाही से मुक्त करा एक सूत्र में पिरोना ही अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी थी। अर्थात् भारत की आजादी के साथ उस समय के अविकसित भारत में चुनौतियों का अंबार भी हमें मिला, जिसे कांग्रेस नेतृत्व के दृढ़ संकल्प ने अवसर में तब्दील कर दिया। एक मजबूत, शांतिप्रिय, समावेशी और प्रगतिशील भारत की नींव रखी।
भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल व उनके सहयोगियों ने न केवल देश को एक सूत्र में पिरोया, बल्कि योजना आयोग तथा पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से खाद्यान्न, बांध एवं सिंचाई, बिजलीघर, परमाणु ऊर्जा, सड़क, रेल, संचार, सुरक्षा, शिक्षण संस्थान, शोध संस्थान, कारखाने व ढांचागत विकास की बुनियाद खड़ी की। पंडित नेहरू ने सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू), आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालयों, बड़े सिंचाई बांधों व परियोजनाओं, बड़ी स्टील फैक्ट्रियों, अंतरिक्ष परियोजनाओं, एटॉमिक एनर्जी कमीशन, डीआरडीओ की स्थापना की व उन्हें आधुनिक भारत के मंदिरों की संज्ञा दी।
1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस ने देश में हरित क्रांति का सूत्रपात किया। देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश के साधारण जनमानस के लिए बैंकिंग व्यवस्था के दरवाजे खोले। भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाली ताकतों के दांत खट्टे किए तथा बांग्लादेश के निर्माण में एक निर्णायक भूमिका निभाई।
1980 के दशक में एक बार फिर कांग्रेस ने 21वीं सदी के भारत की नींव रखी। एक तरफ दूरसंचार क्रांति का उदय हुआ, तो दूसरी तरफ पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकाय संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देकर सत्ता का विकेंद्रीयकरण किया। कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति ने आधुनिक भारत के निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाई, जिसके सुखद परिणाम आज भी देखने को मिल रहे हैं। 1990 के दशक में, जब विपक्षी सरकारों ने भारत का सोना तक गिरवी रख अर्थव्यवस्था को जीर्ण-शीर्ण कर दिया था, तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बार फिर देश को आर्थिक उदारीकरण व वैश्वीकरण से जोड़कर भारत की तरक्की व अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी।
2004 से 2014 का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कार्यकाल देश में सदैव समावेशी विकास, अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति, अधिकार संपन्न भारत व आम नागरिकों के सशक्तीकरण के मील पत्थर स्थापित करने के लिए जाना जाएगा। एक तरफ सत्ता त्याग देने की सोनिया गांधी की साहसिक कुर्बानी, तो दूसरी ओर डॉ. मनमोहन सिंह की आर्थिक विद्वता ने देश को नई ऊँचाईयों पर ला खड़ा किया। सोनिया गांधी, डॉ. मनमोहन सिंह, राहुल गांधी के सामूहिक नेतृत्व व दूरदर्शिता ने एक अधिकार संपन्न भारत की संरचना की, जिसमें हर नागरिक को मनरेगा के तहत 'काम का अधिकार', 'भोजन का अधिकार', 'शिक्षा का अधिकार', आदिवासी भाईयों को 'जल-जंगल-जमीन का अधिकार', किसानों को भूमि के 'उचित मुआवज़े का अधिकार', नागरिकों को सरकार की जवाबदेही के लिए 'सूचना का अधिकार' मिले।
एक तरफ देश ने पहली बार ''डबल डिजिट ग्रोथ'' को पार कर लिया, तो दूसरी तरफ 14 करोड़ लोग गरीबी रेखा से उबर पाए व देश में एक सशक्त व प्रगतिशील ''मध्यम वर्ग'' तबके का उभार हुआ। देशवासियों ने आकांक्षाओं व तरक्की की नई बुलंदियां छुईं। चारों तरफ सामाजिक सौहार्द्र भी था, शांति व भाईचारा भी था, प्रगति व तरक्की भी थी, और आगे बढ़ते रहने की नई अभिलाषा भी।
कई प्रकार की षडयंत्रकारी ताकतों को अधिकार संपन्न भारत, सामाजिक सौहार्द्र व समावेशी विकास रास नहीं आया तथा दुष्प्रचार का एक कुचक्र रचकर नियोजित रूप से सत्ता अर्जित कर ली। पर पिछले 8 वर्षों में जैसे देश की तरक्की, प्रगति, सामाजिक सौहार्द्र, आकांक्षाओं व अपेक्षाओं को जानबूझकर गहरे अंधकार में धकेल दिया गया। कभी नोटबंदी के नाम पर देश के रोजगार व व्यवसाय पर हमला बोला गया, तो कभी मनमानी जीएसटी से छोटे-छोटे और मंझले उद्योगों को तालाबंदी के कगार पर ला खड़ा किया।
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