Uttarakhand Tunnel Tragedy: सिलक्यारा सुरंग से बचाए गए 41 श्रमिकों का होगा मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन, पढ़ें इसके पीछे की खास वजह

Uttarakhand Tunnel Tragedy: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन से फंसे 41 श्रमिकों का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाएगा। इसके अलावा यह भी देखा जाएगा कि ह्रदय और लीवर जैसे अंगों पर इस प्राकृतिक आपदा का कैसा असर पड़ा है। हालांकि एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक और सीईओ प्रोफेसर मीनू सिंह की मानें तो शुरुआती जांच में सभी श्रमिकों की स्थिति सामान्य नजर आ रही है।
मीडिया से बात करते हुए प्रोफेसर मीनू सिंह ने बताया कि सुरंग से बाहर निकाले गए सभी श्रमिक स्वस्थ नजर आ रहे हैं। कई शारीरिक जांच की गई, जिसमें वो पूरी तरह से सामान्य पाए गए हैं। उन्होंने कहा कि सुरंग के भीतर लंबे समय तक फंसे रहने से श्रमिकों के मस्तिष्क और लीवर समेत कई संवेदनशील अंग प्रभावित होते हैं। यह देखने के लिए हम कई तरह की जांच कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हम श्रमिकों का बुनियादी मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी करेंगे।
#WATCH उत्तराखंड: सुरंग से बचाए गए 41 श्रमिकों पर एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक और सीईओ प्रोफेसर मीनू सिंह ने कहा, "वे बिल्कुल सामान्य हैं, मैं उन्हें मरीज़ भी नहीं कहूंगी। वे बिल्कुल सामान्य महसूस कर रहे हैं, वे बिल्कुल सामान्य व्यवहार कर रहे हैं। उनका रक्तचाप, ऑक्सीजनेशन -… pic.twitter.com/M09Eujn9Kg
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 29, 2023
पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर बेहद खतरनाक
मीडिया रिपोर्ट्स में हेल्थ एक्सपर्ट्स के हवाले से बताया गया है कि सुरंग में फंसे लोगों को पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से बचाए रखना बड़ी चुनौती है। यह ऐसी स्थिति है, जब व्यक्ति किसी मुसीबत में फंस जाने से पहले में फंसी मुसीबत को याद करके जंग लड़ना छोड़ देता है। मुसीबत से लड़ने की बजाए वो हथियार डालने लगता है। यही नहीं, वो इमरजेंसी में स्वयं की सहायता करने और अपने किसी परिजन की सहायता करने में भी डर जाता है। यही कारण है कि श्रमिकों का बुनियादी मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रत्येक श्रमिक का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन अलग होता है और उसी हिसाब से इलाज दिया जाता है।
पीएम मोदी और धामी सरकार ने किया अभूतपूर्व कार्य
उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने रोजाना श्रमिकों से बातचीत करके उनका हौंसला बढ़ाया। यही नहीं, रोजाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी संदेश श्रमिकों तक पहुंचाया गया। यही कारण रहा कि श्रमिकों को लगा कि सरकार उनके साथ है और आज नहीं तो कल सुरंग से बाहर निकल आएंगे। सीएम धामी ने भी मीडिया से बातचीत के दौरान एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि एक श्रमिक की आंखों में आंसू इसलिए नहीं आए क्योंकि वो घबरा गए थे बल्कि वो इस बात पर भावुक थे कि उनको बचाने के लिए सभी प्रयास कर रहे थे। मनोवैज्ञानिक हरीश तनेजा ने बताया कि ऐसे हालात में जीवित रहने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। अगर खाना पीना होता और कोई मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रोत्साहित न करता तो इन श्रमिकों की हालत और खराब हो सकती थी। उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार ने मिलकर जिस तरह से श्रमिकों का हौंसला बढ़ाया है, उसकी सराहना करना बनता है।
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