Haribhoomi Explainer: क्या ASI सर्वेक्षण से सुलझ जाएगा सैकड़ों वर्ष पुराना विवाद, यहां पढ़िए ज्ञानवापी का इतिहास

Haribhoomi Explainer: वाराणसी (Varanasi) की एक अदालत ने शुक्रवार को हिंदू पक्ष (Hindu Side) के हक में फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) में पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को इजाजत दे दी है। अदालत के इस फैसले से हिंदू पक्षकारों में खुशी की लहर है, तो वहीं मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) की याचिका खारिज हो जाने से वे उच्च न्यायालय (High Court) का रुख करने की बात कह रहे हैं। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से हम आपको बताते हैं क्या है वाराणसी मामले में विवाद की वजह, साथ ही बताएंगे कि क्या है क्या है पुरातत्व सर्वेक्षण, जिसमें होगी कार्बन डेटिंग जांच।
वाराणसी की एक अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) को ज्ञानवापी मस्जिद का वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Scientific Survey) करने की अनुमति दे दी है। वजू खाना, जहां हिंदू द्वारा शिवलिंग होने का दावा किया गया है, उस स्थान से संबंधित सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के पहले के आदेश के बाद सर्वेक्षण का हिस्सा नहीं होगा, जहां मुस्लिम अनुष्ठान करते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सर्वेक्षण करेगा और 4 अगस्त तक अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा - जिस दिन अगली सुनवाई होनी है।
ज्ञानवापी मस्जिद दशकों से विवाद का केंद्र
हाल के दिनों में याचिकाकर्ता, जो स्थानीय पुजारी हैं, उन्होंने 1991 में वाराणसी अदालत (Varanasi Courts) में एक याचिका दायर कर परिसर के भीतर पूजा करने की अनुमति मांगी थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब (Aurangzeb) के आदेश पर उसके शासनकाल के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के एक हिस्से को तोड़कर किया गया था। एक मीडिया एजेंसी के अनुसार, वह याचिका साल 1998 में ही खारिज कर दी गई थी। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) पर फैसला आया, तो उसके के बाद यह मामला फिर से सुर्खियों में आया। जिसके बाद वाराणसी के एक वकील विजय शंकर रस्तोगी (Vijay Shankar Rastogi) ने ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण में अवैधता का दावा करते हुए निचली अदालत में याचिका दायर की। याचिका में उन्होंने विवादित स्थल के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग की। उनकी याचिका पर वाराणसी अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को एक सर्वेक्षण करने और एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।
हालांकि, ज्ञानवापी मस्जिद को चलाने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के साथ मिलकर याचिका और मस्जिद के सर्वेक्षण के अदालत के आदेश का विरोध किया। मामला जब इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा, तो हाईकोर्ट ने सर्वे करने के एएसआई के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दिया। उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को मौजूद पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में कोई भी बदलाव निषिद्ध है। हालांकि, मार्च 2021 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ पूजा स्थल अधिनियम की वैधता की जांच करने के लिए सहमत हुई। फिर 18 अगस्त, 2021 को पांच हिंदू महिलाओं ने वाराणसी अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें विरोधियों को ज्ञानवापी संरचना के अंदर मूर्तियों को नुकसान न पहुंचाने के अलावा, नियमित रूप से देवताओं (श्रृंगार गौरी, गणेश, हनुमान और नंदी) की पूजा करने की अनुमति मांगी गई।
सर्वेक्षण में मिला था शिवलिंग की आकृति
अप्रैल 2022 में पांच महिलाओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए वाराणसी के सिविल जज रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी मंदिर और आसपास के स्थानों की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया। जिसके बाद मई 2022 में सर्वेक्षण शुरू हुआ, लेकिन वकीलों की एक टीम को मस्जिद के अंदर प्रवेश से इनकार करने के बाद बीच में ही सर्वेक्षण रोक दिया गया। हालांकि, फिर वाराणसी कोर्ट ने कहा कि सर्वे जारी रहेगा और इसे पूरा कर 17 मई तक रिपोर्ट सौंपी जाए।
याचिकाकर्ता पक्ष के अनुसार, सर्वेक्षण में परिसर के एक तालाब से पानी निकालने के बाद एक शिवलिंग मिला। वाराणसी जिला अदालत ने बाद में जिला मजिस्ट्रेट को उस क्षेत्र को सील करने का आदेश दिया, जहां कथित तौर पर शिवलिंग पाया गया था और क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
जुलाई में सुप्रीम कोर्ट में हुई थी सुनवाई
जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद द्वारा दायर एक आवेदन पर वाराणसी जिला न्यायाधीश के आसन्न फैसले का इंतजार करेगी, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में दर्शन की मांग करने वाली पांच महिला याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि अदालत ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के पक्ष में फैसला सुनाया, तो महिलाओं द्वारा किया गया मुकदमा स्वाभाविक रूप से खत्म हो जाएगा और यदि उन्होंने वादी के पक्ष में फैसला सुनाया, तो देखभाल करने वाले अन्य न्यायिक निवारण का प्रयास कर सकते हैं।
मामले में अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील शमीम अहमद ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद एक वक्फ संपत्ति है और अदालत को इस मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं है। दलील दी गई कि मस्जिद से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई का अधिकार सिर्फ वक्फ बोर्ड को है।
इस विवाद के बाद पांच हिंदू याचिकाकर्ताओं में से चार ने शिवलिंग की आकृति की कार्बन डेटिंग की मांग की। दायर याचिका में पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को निर्देश देने की मांग की गई थी। मुस्लिम पक्ष ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि एएसआई सर्वेक्षण से परिसर को नुकसान हो सकता है। याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने निर्देश दिया है कि एएसआई द्वारा वैज्ञानिक सर्वेक्षण सुबह 8 से 12 बजे के बीच होगा। साथ ही यह भी कहा गया कि नमाज पर कोई प्रतिबंध नहीं लगेगा और न ही मस्जिद को नुकसान पहुंचाया जाएगा।
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि मुझे सूचित किया गया है कि मेरा आवेदन मंजूर कर लिया गया है और अदालत ने वाजू टैंक को छोड़कर जिसे सील कर दिया गया है, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का एएसआई सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया है।
आइए अब जानते हैं पुरातत्व सर्वेक्षण जिसमें होगी कार्बन डेटिंग जांच
क्या है कार्बन डेटिंग
कार्बन डेटिंग जिसे रेडियोकार्बन डेटिंग भी कहा जाता है, ये जांच की एक वैज्ञानिक तकनीक है। यह शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के द्वारा 60,000 वर्ष पुरानी किसी भी वस्तु की आयु मापने की अनुमति देता है। इस पद्धति का निर्माण 1940 के दशक में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर विलार्ड लिब्बी द्वारा किया गया था।
कैसे काम करता है कार्बन डेटिंग
शिकागो विश्वविद्यालय की वेबसाइट के अनुसार, यह ब्रह्मांडीय किरणों से शुरू होती है, जो पदार्थ के उप-परमाणु कण, जो लगातार सभी दिशाओं से पृथ्वी पर बरसते हैं। जब ब्रह्मांडीय किरणें पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में पहुंचती है, तो भौतिक और रासायनिक परस्पर क्रिया से रेडियोधर्मी आइसोटोप कार्बन-14 बनता है। जीवित जीव इस कार्बन-14 को अपने ऊतकों में अवशोषित करते हैं। एक बार जब वे मर जाते हैं, तो अवशोषण बंद हो जाता है, और कार्बन-14 बहुत धीमी गति से एक अनुमानित दर पर अन्य परमाणुओं में परिवर्तित होने लगता है। कितना कार्बन-14 बचा है, इसे मापकर वैज्ञानिक यह अनुमान लगा सकते हैं कि कोई विशेष कार्बनिक वस्तु कितने समय से मृत है।
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