Haribhoomi Explainer: जलते मणिपुर को शांत करने पहुंचे अमित शाह, यहां पढ़िये हिंसा के पीछे की असल वजह

Haribhoomi Explainer: मणिपुर में एक ऐसा कानून है जिसके तहत घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न तो बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं। लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नागा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं। इसी कानून के चलते घाटी में रह रहे मैतई समुदाय ने भी कोर्ट के जरिये पहाड़ों पर रहने व जमीन खरीदने की मांग किया था, जिसके विरोध से ही मणिपुर हिंसा की आग मे जल रहा है।
क्या है हिंसा की वजह
मणिपुर की जनसंख्या लगभग 30-35 लाख है। यहां तीन मुख्य समुदाय हैं मैतई, नागा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं, तो कुछ मैतई मुसलमान भी हैं। नागा और कुकी ज्यादातर ईसाई हैं, ये दोनों जातियां जनजाति में आते हैं। हालांकि, जनसंख्या में मैतई ज्यादा हैं। मणिपुर के 10 प्रतिशत घाटी (भूभाग) पर मैतेई समुदाय का दबदबा है। ये समुदाय इम्फाल वैली में बसा है। बाकी 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाके में प्रदेश की मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इन पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच विवाद बहुत पुराना है।
मैतई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति समूह का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका भी डाली हुई है। मैतई समुदाय की दलील है कि 1949 में जब मणिपुर का भारत में विलय हुआ था तब मैतेई को यहां जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। इस समूह की दलील है कि उनके पूर्वजों की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए मैतेई को जनजाति का दर्जा जरूरी है। लेकिन जो जनजातियां हैं वे मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही हैं, इसी मणिपुर में हिंसा हो रही है।
जनजातियों का कहना है कि मैतेई समुदाय आदिवासी नहीं हैं। उनको पहले से ही ओबीसी आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का आरक्षण मिला हुआ है और उनकी भाषा भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है। ऐसे में मैतेई समुदाय को अगर जनजाति समूह का दर्जा मिल जायेगा, तो इन्हें भी पहाड़ों पर भी जमीन खरीदने की इजाजत मिल जाएगी और इससे जनजाति समूह हाशिये पर चली जाएगी।
सत्ता से हटाना की साजिश
मणिपुर सरकार के समर्थकों का कहना है कि जनजाति समूह अपने हितों को साधने के लिए मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को सत्ता से हटाना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने ड्रग्स के खिलाफ जंग छेड़ रखी है।
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कोर्ट के फैसले से भड़की हिंसा
मणिपुर हाईकोर्ट ने पिछले दिनों मैतेई समुदाय को जनजाति समूह में शामिल करने पर राज्य सरकार को विचार करने को कही थी। इस आदेश के बाद नागा और कुकी जनजातियां भड़क उठी। 3 मई को चूराचांदपुर जिले में मैतेई समुदाय को एसटी का दर्ज देने के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) की ओर से आदिवासी एकजुटता मार्च निकाल कर विरोध किया। इस दौरान जिले के तोरबंग क्षेत्र में हिंसा शुरू हो गई। कहा गया कि प्रदर्शन में शामिल हथियारबाद लोगों ने कथित तौर पर मैतेई समुदाय के लोगों को निशाना बनाने की कोशिश की। इसके बाद वार-पलटवार का दौर शुरू हो गया और देखते ही देखते पूरा राज्य हिंसा की आग में जलने लगा।
अब तक कितनी मौतें
दो समुदायों के बीच हो रहे बवाल से कई परिवारों की जिंदगी उजड़ गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर में हुई हिंसा में अब तक 75 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और वहीं 150 से ज्यादा घायल हैं। सेना के मुताबिक, हिंसा प्रभावित क्षेत्र से अब तक 23 हजार से अधिक लोगों को निकालकर राहत शिविरों में पहुंचाया गया है। पड़ोसी राज्य असम के सीमावर्ती जिले कछार में भी हजारों की तादाद में मणिपुर के लोगों ने शरण ले रखी है।
21 मई को फिर भड़की थी हिंसा
मणिपुर पिछले कुछ दिनों की हिंसा से उबरने की कोशिश कर ही रहा था कि 21 मई को फिर से मणिपुर हिंसा की आग में जलने लगा। स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो पा रही है। आर्मी चीफ से लेकर देश के गृह मंत्री मणिपुर के हालात को शांत करने में लगे हैं, अब देखना यह होगा कि दो समूहों की बीच की लड़ाई मणिपुर को कितना तबाह कर कब शांत होगी।
मणिपुर दौरे पर अमित शाह
मणिपुर में हिंसा की आग लगभग एक महीने से जारी है। हालात काबू करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह राज्य में कल से तीन दिन के दौरे पर हैं। सबको उम्मीद है कि गृह मंत्री के दौरे से जातीय संकट का समाधान निकलेगा। अमित शाह कूकी, मैतेई समुदाय के संगठनों से और पीड़ितों से भी मुलाकात करेंगे। गृह मंत्री ने लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए राहत और पुनर्वास की प्रक्रिया में तेजी लाने पर जोर दिया है।
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