What Is Ropeway: जानें क्या है रोपवे सिस्टम और सबसे पहले किस देश में इस्तेमाल हुई ये तकनीक

What Is Ropeway: जानें क्या है रोपवे सिस्टम और सबसे पहले किस देश में इस्तेमाल हुई ये तकनीक
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ट्रॉली में बैठकर तारों के जरिए एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचना। एक विद्युत उपकरण जो एक नीची जगह से ऊपर की ओर जाता है और आता भी है।

एक जगह से दूसरी जगर पर तारों के जरिए पहुंचने की तकनीक हो ही रोपवे (Ropeway) कहा जाता है। आसान शब्दों में यही इसका मतलब है। जैसा कि आप रोपवे के नाम से अनुमान लगा सकते हैं रोप का अर्थ है रस्सी, और वे का अर्थ है रास्ता। ट्रॉली में बैठकर तारों के जरिए एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचना। एक विद्युत उपकरण जो एक नीची जगह से ऊपर की ओर जाता है। एक ही रास्ते पर आने और जाने की सुविधा होती है। सबसे ज्यादा इस तकनीक का इस्तेमाल हिल स्टेशनों पर किया जाता है।

कहते हैं कि हजारों साल पहले रिवहन की समस्याओं को पहले से ही रस्सियों की मदद से हल किया जाता था। नदियों और घाटियों को पार करने का काम जानवरों की खाल या पौधों के रेशों से बुनी हुई रस्सी की मदद से किया जाता था। यूरोप में मध्य युग के दौरान किलेबंदी के निर्माण के लिए पहली बार रोपवे का उपयोग किया गया था। इस तकनीक को 1862 में फ्रांस के ल्यों में पहला शहरी केबल-वे बनाया। आधुनिक रोपवे ने 19वीं शताब्दी में अपनी पहली उपस्थिति यहां दर्ज कराई थी।

लेकिन भारत के कई पहाड़ी राज्यों में नदियों को पार करने के लिए देसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। एक रस्सी में ट्रॉली बांधकर रस्सी को खिंचा जाता है। ताकि एक जगह से दूसरे जगह पर लोग पहुंच सकें। भारत में आधुनिक रोप-वे भी शुरू हो गया है। भारत का सबसे आधुनिक रोपवे गुजरात के जूनागढ़ के गिरनार पर्वत पर साल 2020 में शुरू हो गया था।

ऐसे काम करती है रोपवे तकनीक

रोपवे एक ऐसी तकनीक है, जो ट्रॉली, केबल की तार और दो स्टेशन यानी आने जाने की जगहों पर पहुंचा जा सके। ट्रॉली में बैठकर तारों के द्वारा एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक एक विद्युत उपकरण की मदद से पहुंचा जाता है। एक नीची जगह से ऊपर जाता है और आता है। ये केबल आमतौर पर स्टील के तार से बने होते हैं। बहुत मजबूत होते हैं। स्टेशनों को एक सीधी रेखा में जोड़ते हैं।

यह जमीन के ऊपर परिवहन के साधनों में से एक है। जो हमें सड़क पर यातायात से बचाता है। एक लंबी दूसरी को कम कर देता है। रोपवे में एक बैठने की जगह होती है। जिसमें 8 से 12 लोग एक साथ सफर कर सकते हैं। यह सुविधा ज्यादातर पहाड़ी इलाकों और मंदिरों पर ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। टॉरिस्ट प्लेस पर भी इसकी डिमांग रहती है। भारत ही नहीं तस्मानिया, जेरूसलम, शिकागो और मोम्बासा में इस तकनीक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है।

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