Haribhoomi Explainer: आखिर क्या है समान नागरिक संहिता, इसके लागू होने से क्या होंगे बदलाव

Haribhoomi Explainer: एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) हमेशा से ही मुखर रही है। देश में दक्षिणपंथी गुट हमेशा से मांग करते हैं कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू होना चाहिए। लोग अपने धार्मिक कानूनों को खत्म नहीं करना चाहते हैं, यही वजह है कि कभी कोई सरकार इसे लागू करने का साहस नहीं कर पाई है। बीजेपी सरकार के प्रमुख एजेंडे में यह हमेशा से शुमार रहा है। अब अनुच्छेद 370, तीन तलाक और राम मंदिर की तरह यह भी बीजेपी सरकार की प्राथमिकता बन गया है। आइए जानते हैं क्या है यह कानून, क्यों इसे लेकर होती है बहस और इसे लागू करने में चुनौतियां क्या हैं।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
यूनिफॉर्म सिविल कोड एक पंथनिरपेक्ष या सेक्युलर कानून है। जिसके लागू होने के बाद सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे। अभी हिंदू, मुस्लिम, ईसाई समुदाय के अलग-अलग धार्मिक कानून हैं। हिंदू लॉ ही बुद्ध, जैन और सिख धर्मों के अनुयायियों पर भी लागू होता है। वसीयत और शादी जैसे विषयों पर इन कानूनों को मानना ही पड़ता है। तलाक और उसके बाद के भरण-पोषण को लेकर भी नियम पर्सनल लॉ के जरिए ही तय किए जाते हैं। ऐसे में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है, तो ये सभी व्यक्तिगत कानून खत्म हो जाएंगे और नागरिकों को एक समान नागरिक संहिता पर जोर देना होगा।
समान नागरिक संहिता की भारत में उत्पत्ति
समान नागरिक संहिता की भारत में उत्पत्ति भारत में तब हुई जब ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। यह भी सिफारिश की गई थी कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस तरह के संहिताकरण के बाहर रखा जाए।
समान नागरिक संहिता पर भारत का संविधान
संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिक को एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 44 क्या है
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रही हैं, जो वर्तमान में उनके संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। हालांकि, यह राज्य की नीति का एक निर्देशक सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि यह लागू करने योग्य नहीं है। इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं। जैसे संविधान के अनुच्छेद 47 में राज्य को नशीले पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर रोक लगाने का निर्देश देता है, लेकिन देश के अधिकांश राज्यों में शराब बेची जाती है।
गोवा में लागू है समान नागरिकता कानून
भारत में अभी सिर्फ एक राज्य है जहां यूनिफार्म सिविल कोड लागू है। वह राज्य गोवा है। इस राज्य में पुर्तगाल सरकार के समय से ही यूनिफार्म सिविल कोड लागू किया गया था। वर्ष 1961 में गोवा सरकार यूनिफार्म सिविल कोड के साथ ही बनी थी। गोवा में लागू इस कानून में उत्तराधिकार (कोई भी माता पिता अपने बच्चों को पूरी तरह अपनी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते) दहेज और विवाह के सम्बंध में सभी धर्मों के लिए एक कानून है। साथ ही गोवा में जन्मा या शादी का पंजीकरण गोवा में कराने वाला बहुविवाह नहीं कर सकता।
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उत्तराखण्ड लागू करेगा समान नागरिक संहिता कानून
उत्तराखंण्ड में पुष्कर सिंह धामी की सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है। सरकार द्वारा बनायी गयी कमेटी ड्राफ्ट का 90 फीसदी काम भी पूरा कर ली है। कमेटी का कहना है कि आने वाली 30 जून तक ड्राफ्ट का काम पूरा हो जायेगा। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के मुख्यमंत्री का कहना है कि उत्तराखण्ड समान नागरिक सहिंता कानून लागू करने वाला पहला राज्य बनने वाला है।
यूनिफार्म सिविल कोड कानून के फायदे
यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने से सभी धर्मों के लोगों को एक समान अधिकार मिलेगें। समान नागरिक सहिंता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार होगा। कुछ समुदाय के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित है। ऐसे में यदि यूनिफार्म सिविल कोड लागू होता है, तो महिलाओं को भी समान अधिकार मिलेगा। महिलाओं का अपने पिता की सम्पति पर अधिकार और गोद लेने से संबंधी सभी मामलों में एक सामान नियम लागू हो जायेंगे। इस कानून के लागू होने से न्यायपालिका पर दबाव कम होगा और धर्म के कारण वर्षों से पड़े केस जल्दी से सुलझा लिए जायेंगे और कोई भी आसानी से धर्म के आधार पर राजनीति नहीं कर पाएगा। यूसीसी लागू होने पर सभी समुदाय के लोगों में तलाक की प्रक्रिया एक समान होगी। आज हिंदू समुदाय में अगर शादी तोड़नी है, तो कोर्ट जाना पड़ेगा। जज 6 महीने का कूलिंग पीरियड दे सकते हैं, लेकिन मुस्लिमों में तलाक मौखिक रूप से हो रहे हैं। वे कोर्ट नहीं जाते हैं। तीन तलाक भले ही खत्म हो गया है, लेकिन कई तरह से अब भी तलाक हो रहे हैं। तलाक का ग्राउंड यूसीसी में सभी के लिए एकसमान होगा।
यूनिफार्म सिविल कोड का विरोध
भारत में यूनिफार्म सिविल कोड का विरोध सबसे ज्यादा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता है। उनका कहना है कि इसको लागू करने का मतलब है कि सभी धर्मों पर हिंदू कानून लागू करना। इस कानून के लागू होने से मुस्लिम शरीयत के अनुसार नहीं चल पायेगें। विरोध करने वाले यह भी कहते हैं कि इससे अनुच्छेद 25 के तहत मिले धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार का उल्लंघन होगा। मुस्लिम संगठन तर्क देते हैं कि संविधान में सभी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है और इसलिए वे इसका विरोध करेंगे। यहां समझना जरूरी है कि दुनिया के 125 देशों में एक समान नागरिक कानून लागू है, तो भारत में भी यह कानून क्यों नहीं।
हिंदू और मुस्लिम लॅा
भारत के मुसलमानों को उनकी शरीयत के अधीन विधान दिया गया है जो उनके विवाह, तलाक तथा उत्तराधिकार से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है। ठीक इसी प्रकार भारत के हिंदुओं को उनका अपना संहिताबद्ध विधान उनके व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने के लिए दिया गया है। यह हिंदू विधान हिंदू शास्त्रों और हिंदू उपविधियों के अधीन बनाया गया है। इस विधान में चार महत्वपूर्ण अधिनियम हैं जो हिंदुओं के व्यक्तिगत मामले अधिनियमित करते हैं। यह अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित किए गए हैं। इन अधिनियम में यह ध्यान रखा गया है कि कहीं पर भी यह अधिनियम हिंदू विधि की आस्थाओं पर प्रहार नहीं करें तथा जहां तक हो सके प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विधि के अधीन रहते हुए इन अधिनियमों को संहिताबद्ध करने का प्रयास भारत की संसद द्वारा किया गया है। भारत की संसद द्वारा हिंदू विधि से संबंधित 4 विशेष अधिनियम बनाए हैं जो हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षता अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 ये चार अधिनियम हिंदुओं के व्यक्तिगत मामले जिन्हें, स्वीय विधि (Personal Law) कहा जाता है, उन्हें नियंत्रित करते हैं।
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