हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की विदेशों में चार गुना अधिक डोज दी जा रही, डब्ल्यूएचओ ने इस कारण क्लीनिकल ट्रायल पर लगायी रोक

कोरोना के इलाज में काफी प्रभावी मानी जा रही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के ट्रायल को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) के लगाए प्रतिबंध पर भारत ने ऐतराज जताया है। इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने डब्ल्यूएचओ को खत लिखकर कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दवा का सही तरह से ट्रायल नहीं हो पा रहा है। जिससे नतीजे अलग-अगल आ रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक,भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन के ट्रायल में बड़ा अंतर है। मौजूदा वक्त में भारत ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा को देने का प्रोटोकाल तय कर रखा है। जिसके मुताबिक पहले दिन मरीज को 400 एमजी का भारी डोज सुबह व शाम दिया जा रहा है।
इसके बाद अगले चार दिन इसी तरह 200एमजी का डोज सुबह-शाम दिया जा सकता है। ऐसे में मरीज 5 दिनो में 2400 एमजी का कुल डोज ले रहा है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहले दिन 800 एमजी की दो डोज दी जाती है और उसके बाद अगले 10 दिन 400 एमजी की दो-दो डोज दी जाती है।
इस तरह मरीज 11 दिनों में 9600 एमजी का कुल डोज ले लेता है। जो कि भारत की तुलना में 4 गुना ज्यादा है। भारत ने इस मामले में डब्ल्यूएचओ से अपनी शिकायत दर्ज कराते हुए कहा है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का परीक्षण अस्थाई रूप से स्थगित करने से पहले सभी रिपोर्ट को ध्यान से नहीं देखा गया है।
जब कम मात्रा में डोज दिया जा रहा है तो मरीज की रिकवरी तेज हो रही है,जबकि अधिक डोज देने पर दुष्प्रभाव स्वाभाविक है। बतादें कि कुछ दिन पहले द लैसेंट नामक एक स्वास्थ्य पत्रिका ने कहा था कि उसने करीब 15 हजार कोरोना मरीजों पर रिसर्च की है।
जिनमे हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का कोई खास असर नहीं हुआ। बल्कि इसके इस्तेमाल से कोरोना संक्रमितों की मृत्युदर बढ़ी है। इसके बाद 25 मई को डब्ल्यूएचओ ने इसके ट्रायल पर रोक लगा दी।
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