ब्राजील के बाद बोलिविया की जेलों में किताबें पढ़कर कैदी पा सकते हैं जल्द रिहाई, यह शर्ते जरूरी

ब्राजील के बाद बोलिविया की जेलों में किताबें पढ़कर कैदी पा सकते हैं जल्द रिहाई, यह शर्ते जरूरी
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ब्राजील के बाद अब बोलिविया की जेलों में भी कैदियों को किताबें पढ़ाने का प्रयोग किया जा रहा है। इसका उद्देश्य कैदियों को शिक्षा के माध्यम से अपराध से दूर रखना है। साथ ही जेल के बाद अच्छी आजीविका भी कमा सकें।

ब्राजील (Brazil) के बाद अब बोलिविया (Bolivia) की जेलों (Prison) में भी कैदियों को किताबें पढ़ाने का प्रयोग किया जा रहा है। इसके तहत यहां की जेलों में बड़ी लाइब्रेरी (Big Library) स्थापित की जा रही हैं। इन लाइब्रेरियों में हर क्षेत्र की किताबें उपलब्ध हैं। अगर अपराधी किताबें पढ़कर कोई परीक्षा (Examination) पास कर लेते हैं तो उनकी जल्द रिहाई संभव है। इस प्रयोग का मुख्य उद्देश्य यह है कि कैदियों को शिक्षा के माध्यम से अपराध से दूर रखा जाए और सजा के बाद वे अच्छी आजीविका भी कमा सकें।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील में मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान नहीं है, लेकिन वहां भी मुकद्दमों की लंबी अवधि के कारण आरोपियों को लंबा समय जेल के भीतर गुजारना पड़ जाता है। इससे कई कैदी ऐसे होते थे, जो अगर अपराधिक वारदात में जेल जाते तो शिक्षा से वंचित रह जाते थे। इस वजह से उनका जीवन बर्बाद हो जाता था। ऐसे में ऐसा प्रयोग किया गया है। इसके तहत कैदी किताबें पढ़कर अपनी रिहाई समय से पहले करा सकते हैं। हालांकि इसके लिए एक बोर्ड है, जो तय करता है कि किताबें पढ़ने वाले कैदी की रिहाई कितने समय या कितने दिन पहले हो सकती है।

बोलीविया के लोकपाल कार्यालय के मुताबिक यह कार्यक्रम 47 जेलों में शुरू किया गया है। अब तक 865 कैदी ऐसे हैं, जो कि किताबें पढ़कर अपने ज्ञान का वर्धन कर रहे हैं। कई कैदी तो ऐसे हैं, जो कि एक या दो नहीं, बल्कि तीन से चार परीक्षाएं भी उत्तीर्ण कर चुकी हैं। उन कैदियों के लिए यह बेहतर कदम इसलिए साबित हो रहा है कि इससे जहां एक तरफ उन्हें समय से पहले रिहाई मिल सकती है तो वहीं आय न होने की वजह से पढ़ाई पूरी नहीं कर सके थे।

बता दें कि अमेरिका में भी पहले से कैदियों को किताबें पढ़ाई जाती हैं। यहां पहली बार वर्ष 1790 में जेल में लाइब्रेरी खोली गई थी। अब अमेरिका के सभी राज्य और फेडरल जेलों में लाइब्रेरी है। पहले कैदियों को जेलों के भीतर केवल धार्मिक किताबें ही पढ़ने के लिए दी जाती थीं, लेकिन बाद में हर प्रकार की ज्ञानवर्धक किताबें उपलब्ध कराई जा रही हैं।

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