चीन एलएसी पर एक इंच भी पीछे नहीं हटा, भारतीय सेना भी मुस्तैद

चीन एलएसी पर एक इंच भी पीछे नहीं हटा, भारतीय सेना भी मुस्तैद
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लद्दाख के गलवान घाटी में पिछले दिनों भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव अब भी कायम है। चीन पीछे हटने को तैयार नहीं है, वहीं भारत के जवान पूरी तरह मुस्तैद हैं। दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर्स की बैठक मंगलवार होगी। इस बीच, भारत को अगले महीने राफेल मिल जाएंगे, ये अंबाला में तैनात किए जाएंगे।

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर करीब दो महीने से जारी भारी तनाव को कम करने के लिए मंगलवार सुबह चुशूल में करीब साढ़े दस बजे से भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक होगी। इसमें भारत की ओर से लेह स्थित सेना की 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन के दक्षिणी शिनजियांग सैन्य प्रांत के प्रमुख मेजर जनरल लियु लिन अपने-अपने सैन्य प्रतिनिधिमंडलों के साथ भाग लेंगे।

दोनों देश एलएसी विवाद का हल करने के लिए बातचीत प्रक्रिया को जारी रखने के पक्ष में हैं। इसे देखते हुए भविष्य में भी भारत और चीन के बीच सैन्य से लेकर कूटनीतिक स्तर की बातचीत जारी रहने की संभावना है। सेना के सूत्रों ने बताया कि 30 जून को भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच एलएसी विवाद हल करने के लिए होने वाली यह तीसरी बैठक होगी। इससे पहले दोनों बीते 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद तनाव को खत्म करने के लिए 16 और 22 जून को भी दो अहम बैठकें कर चुके हैं।

इसमें दोनों ही बैठकों में चीन द्वारा एलएसी पर शांति कायम करने और सेनाओं की वापसी को लेकर सहमति दिए जाने के बावजूद आज तक एक इंच भी अपनी सेना को एलएसी की तमाम विवादित जगहों से पीछे नहीं हटाया है। इसका मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना भी पूरी मुस्तैदी से डटी हुई है। मौजूदा हालात में पूर्व में हुई दोनों बैठकें फिलहाल बेनतीजा साबित हुई हैं। उधर चीनी सेना के लद्दाख के एक अन्य अहम सामरिक ठिकाने देपसांग प्लेंस और दौलत बेग ओल्डी के आसपास भारत के इलाके में अतिक्रमण कर काफी संख्या में फौज और सैन्य साजो-सामान के साथ प्रवेश करने के भी साफ संकेत मिल रहे हैं। इसके अलावा पेंगांग त्सो झील के इलाके में भी चीनी सेना बड़ी तादाद में आकर भारत पर दवाब बनाने की कोशिश कर रही है।

आज इन मुद्दों पर होगी चर्चा

इस बैठक के मुख्य एजेंड़े में एलएसी के तमाम विवादित इलाकों से भारत और चीन की सेनाओं की क्रमबद्ध वापसी से जुड़े भावी जमीनी एक्शन प्लान की रूपरेखा पर दोनों सैन्य कमांडरों की बातचीत शामिल है। इसमें भारत एलएसी पर गश्त की पुरानी स्थिति बहाल करने, चीनी सेना के जमावड़े को कम करने के अलावा भारत सरकार द्वारा भविष्य में एलएसी पर होने वाले किसी भी विवाद को हल करने के लिए सैन्य कमांडरों को हालिया दी गई कार्रवाई करने की छूट को चीन के समक्ष पूरी दमदारी से रख सकता है। वहीं चीन भारत को एलएसी के तमाम समझौतों के पालन की एकतरफा नसीहत दे सकता है।

इधर, केन्द्रीय गृह मंत्री शाह ने जयशंकर, गोयल से मुलाकात की

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बैठक में इन तीन मंत्रियों के बीच हुई चर्चा के विषयों के बारे में तत्काल पता नहीं चल सका है। लद्दाख में भारतीय और चीनी सेना के बीच चल रहे गतिरोध के बीच यह बैठक हुई है।

पहले पीछे हटने का तैयार हो गया था चीन

दूसरे दौर की वार्ता में 22 जून को दोनों पक्षों के बीच पूर्वी लद्दाख में तनाव वाले स्थानों पर 'पीछे हटने' के लिए 'परस्पर सहमति' बनी थी। अब मंगलवार को हाेने वाली वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह करेंगे। चीनी पक्ष का नेतृत्व तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट के कमांडर कर सकते हैं।

पूर्व सेना प्रमुख का दावा, तंबू की आग से बिगड़े हालात

पूर्वी लद्दाख के गलवां घाटी में भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प की वजह को लेकर पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह ने नया दावा किया है। वीके सिंह का कहना है कि चीनी सैनिकों के तंबू में अचानक लगी आग से हालात बिगड़े और सैनिकों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई। उनके मुताबिक, यह कह पाना मुश्किल है कि चीनी सैनिकों ने तंबू में क्या रखा हुआ था जिससे आग लगी। हालांकि, वीके सिंह का यह दावा अबतक के अनुमान से थोड़ा अलग है। अबतक कहा जा रहा था कि चीनी सैनिकों के पीछे न हटने पर दोनों ओर के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। वीके सिंह ने बताया कि 15 जून की रात जब कमांडिंग ऑफिसर संतोष बाबू पेट्रोलिंग प्वांइट 14 पर पहुंचे तो, उन्होंने पाया कि चीन ने वहां से तंबू नहीं हटाए थे। जबकि बातचीत में तय हुआ था कि तंबू को हटा लिया जाएगा। चीन ने तंबू यह देखने के लिए लगाए थे कि भारतीय सेना पीछे गई या नहीं।

27 जुलाई तक भारत आएगी राफेल की पहली खेफ

भारत को छह राफेल युद्धक विमानों की पहली खेप 27 जुलाई तक मिलने की संभावना है। इन विमानों से भारतीय वायु सेना की लड़ाकू क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। विमानों का पहला स्क्वाड्रन वायुसेना के अंबाला स्टेशन पर तैनात किया जाएगा जिसे भारतीय वायुसेना के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ठिकानों में से एक माना जाता है। भारत ने सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ लगभग 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह विमान कई शक्तिशाली हथियारों को ले जाने में सक्षम है। इसमें यूरोपीय मिसाइल निर्माता एमबीडीए का मेटॉर मिसाइल शामिल है। राफेल विमानों का दूसरा स्क्वाड्रन पश्चिम बंगाल में हासिमारा बेस पर तैनात किया जाएगा। वायुसेना ने इस संबंध में दोनों अड्डों पर बुनियादी ढांचों के विकास के लिए लगभग 400 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इन 36 राफेल विमानों में 30 युद्धक विमान होंगे जबकि छह प्रशिक्षण विमान होंगे।

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