उज्जबेकिस्तान के इस आईलैंड पर जिंदा रहना आसान नहीं, सागर तक सूख गया, जानिये चौंकाने वाला रहस्य

प्रकृति का अलग-अलग अंदाज देखकर जहां खुशी मिलती है तो वहीं कई जगह डर भी महसूस होता है। कुछ जगह तो ऐसी भी हैं, जहां जाकर इंसान का जीवित बचना (Deadliest Places on Earth) मुश्किल है। ऐसा ही एक आईलैंड उज्जबेकिस्तान (Uzbekistan) के पास है। अगर कोई व्यक्ति इस आईलैंड पर चला जाए तो बचकर लौट नहीं आ सकता। यहां के हालात इतने खतरनाक है कि सागर तक सूख चुका है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हम उज्जबेकिस्तान के नजदीक एरल सी (Aral Sea) के पास स्थित vozrozhdeniya जगह का जिक्र कर रहे हैं। इस जगह के बारे में सोवियत आर्मी (Soviet Army) के रिटायर्ड कर्नल और माइक्रोबायोलॉजिस्ट गेनाडी लेपायोशकिन (Gennadi Lepyoshkin) ने मीडिया इंटरव्यू (Media Interview) के दौरान खुलासा किया था। इसके बाद से दुनिया को पता लगा था कि यह जगह कितनी खतरनाक है।
दरअसल, इस जगह की तलाश सोवियत संघ (Soviet Union) ने की थी। सोवियत संघ ऐसी जगह चाहता था, जहां जैविक हथियारों की टेस्टिंग (Biological Weapons Testing) हो सके और इंसानों तक इसकी पहुंच से दूर हो। सोवियत संघ ने इस जगह को तलाशने के बाद 1948 में यहां जैविक हथियारों की टेस्टिंग शुरू कर दी। इस टेस्टिंग का असर इंसानी जिंदगियों पर नहीं पड़ सका, लेकिन यह जगह खतरनाक बन गई।
यह जगह इतनी जोखिम वाली थी कि अगर टेस्टिंग के लिए 300 बंदर लाए जाते तो कुछ ही दिनों में इनकी मृत्यु हो जाती थी। गेनाडी लेपायोशकिन ने यहां करीब 18 साल काम किया था। उन्होंने बताया कि जैविक हथियारों का परीक्षण करने के बाद भी इन्हें नष्ट भी कर दिया, लेकिन एंथ्रैक्स सालों तक मिट्टी में रहती है। इस वजह से यहां का तापमान भी 60 डिग्री तक पहुंचता है। उन्होंने खुलासा किया था कि जैविक प्रयोगशाला के लिए इसे वॉरफेयर के तौर पर पहचाना जाने लगा था। उन्होंने कहा कि सोवियत संघ ने 1948 में भी जैविक हथियारों की टेस्टिंग बंद कर दी है, लेकिन आज भी यह आईलैंड इंसानी जिंदगी के लिए सुरक्षित नहीं हैं।
यहां जैविक हथियारों की टेस्टिंग के साथ ही कई महामारियों पर भी परीक्षण किए गए। इनमें प्लेग, एंथ्रैक्स, स्मॉलपॉक्स, ब्रूसेलॉसिस, तुलारेमिया, बॉट्यूनिम, इंनसेफिलाइटिस आदि बीमारियों की टेस्टिंग होती थी। इस जगह ने इंसानी जीवन को कई बीमारियों से बचाने के लिए अहम योगदान दिया, लेकिन साथ ही इंसानों के लिए यहां तक पहुंचना भी नामुमकिन कर दिया है।
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