वतन के लिए कुलियों ने भी लड़ी थी लड़ाई, चीनी सैनिकों को दिखाया था भारतीयों का दम

लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी फौज ने धोखे और कायरता से भारतीय जवानों को ही नहीं मारा, बल्कि हमारे सैनिकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले पोर्टर यानी कुली भी उनकी बर्बरता का शिकार हुए हैं। सूत्रों के अनुसार,जब भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई, तो उस दौरान करीब चार दर्जन कुली भी वहां मौजूद थे।
दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प चल रही थी, तो उस दौरान अनेक कुली भी अपने वतन के लिए चीनी फौज से भिड़ गए थे। बताया गया है कि उस झड़प में कई कुली घायल हो गए और कुछ नीचे गिर पड़े। बता दें कि चीन से लगता बॉर्डर, जिसे बहुत मुश्किल माना जाता है, वहां सेना और अर्धसैनिक बलों को लॉजिस्टिक मदद देने के लिए कुली साथ रहते हैं। लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के ऐसे बहुत से हिस्से हैं, जहां पर ये कुली हमारे सैनिकों के साथ चलते हैं। जिस इलाके में सड़कें नहीं होती हैं, वहां सामान पहुंचाने के लिए इन्हीं कुलियों की मदद ली जाती है। ये कुली हमारे जवानों के साथ इस तरह घुल-मिल जाते हैं कि जैसे वे उन्हीं के परिवार के सदस्य हों।
काम खत्म होने के बाद ठहरते हैं सैन्य बैरकों में
काम खत्म होने के बाद उन्हें सैन्य बैरकों के आसपास ही ठहराया जाता है। आईटीबीपी के एक अधिकारी के अनुसार, इन कुलियों पर हमें पूरा भरोसा होता है। फर्क केवल यही होता है कि इनके पास वर्दी नहीं होती। जवानों की तरह इन्हें हर माह एक तय वेतन नहीं मिलता। चूंकि ये आसपास के गांवों में रहते हैं तो इन्हें एक फ्लोटिंग रेट पर रख लिया जाता है।
कुलियों और जवानों के बीच भाईचारे का मजबूत रिश्ता
खास बात है कि इन कुलियों और जवानों के बीच भाईचारे का एक मजबूत रिश्ता बना रहता है। जब कभी ये कुली फुर्सत में होते हैं, तो कहते हैं कि साहब जी, हम फौज में न सही, लेकिन जरूरत पड़ने पर दुश्मन को मार कर ही दम लेंगे। अगर ये कभी बीमार होते हैं तो उनका इलाज सेना या अर्धसैनिक बलों के अस्पताल में करा देते हैं। इन्हें फोर्स की ओर से खाना भी मिलता है। कभी-कभार ये जवानों का मनोरंजन भी करते हैं। उन्हें अपनी संस्कृति के बारे बताते हैं। गाने और कहानियां सुनाते हैं। आजकल तो पढ़े-लिखे युवा भी कुली का काम कर रहे हैं। आईटीबीपी के पास अनेक कुली ऐसे हैं, जो बीए तक पढ़े हैं।
सप्लाई चेन टूटने पर जोड़ने में करते हैं मदद
यदि बीच राह में सप्लाई चेन टूटती है, तो उसे जोड़ने में ये कुली बहुत मदद करते हैं। जिस ऊंचाई पर ये काम करते हैं, वहां दूसरी जगह से आए जवान कुछ देर के लिए थक सकते हैं, मगर ये लगातार अपने काम में लगे रहते हैं। सैन्य बलों को इन पर भरोसा होता है, इसलिए कई बार ये हमारी सेना या अर्धसैनिक बल को इलाके से जुड़ी अहम जानकारी भी मुहैया कराते हैं। जब इन्हें वापस अपने गांव जाना होता है, तो ये सेना या दूसरे बलों की गाड़ियों में बैठ जाते हैं। उच्चपदस्थ सूत्र बताते हैं कि गलवान घाटी की झड़प के बाद इनकी संख्या और स्थिति का पता लगाया जा रहा है।
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