भीमा-कोरेगांव हिंसा पर देशभर में सियासत तेज, मुख्य आरोपी हैं लापाता

महाराष्ट्र के पुणे में स्थित भीमा-कोरेगांव में 2018 की शुरूआत में भड़की हिंसा के मामले मे पुलिस ने कई शहरो में छापेमारी कर 5 कथित नक्सल समर्थकों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन इस हिंसा को भड़काने में अहम रोल जिन व्यक्तियों का है वे अभी तक शांति से छिपे बैठे हैं।
भीमा कोरेगांव हिंसा ने देश में चारों तरफ एक हिंदु-मुस्लिम, दलित विरोधी विचारधाराओं को भड़काने के संकेत दिये है। समाज में अजारकता फैलाना इस तरह की हिंसाओं का मुख्य कारण बन जाता है।
लेकिन जांच ऐजेंसियों के चुंगल से वे अजारकता तत्व बच निकल जाते हैं जो हिंसा का मुख्य कारण होते हैं ठीक उसी तरह से भीमा-कोरेगांव हिंसा के मुख्य व्यक्ति अभी तक बचे हुए हैं। इस हिंसा पर देशभर में सियासत भी तेज होती जा रही है।
1 जनवरी को मुंबई समेत पुणे ने जो आफत झेली उस मंजर के पीछे दो शख्स हैं जिनको अभी भी राहत की सांसे आ रही हैं। जो पूरे राज्य में अराजकता फैलाने को किसी पुरस्कार के रूप में देखते हैं। भिड़े गुरुजी के नाम से मशहूर 85 वर्षीय संभाजी भिड़े और 56 साल के मिलिंद एकबोटे ने कोई पहली बा हमारे और उनके' बीच की जंग नहीं छेड़ी है।
बता दें कि 2008 में संमभा जी भिड़े राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छा गए थे। संमभा जी भिड़े के समर्थकों ने फिल्म जोधा-अकबर रिलीज होने के विरोध में सिनेमा हॉल्स में तोड़फोड़ मचाई थी।
2009 में उन्होंने अपने गृहनगर सांगली को पूरी तरह से बंद करा दिया था, जब एक गणेश मंडल में एक कलाकार की रचना को प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं दी गई थी। कलाकार ने शिवाजी महाराज द्वारा आदिल शाह के सेना कमांडर अफजल खान की हत्या के बारे में अपनी धारणा को प्रस्तुत किया था।
इसी तरह का हाल कुछ एकबोटे का है। एकबोटे के खिलाफ कई बार दंगे भड़काने के आरोप है। 1997 से 2002 के बीच पुणे में बतौर बीजेपी नगर निगम पार्षद के अपने पहला कार्यकाल के दौरान एकबोटे ने हज हाउस के निर्माण मुद्दे पर एक मुस्लिम पार्षद के साथ मारपीट की थी।
भिड़े और एकबोटे ने राज्य में हिंदुत्ववादी ताकतों को दलितों के खिलाफ खड़ा कर किया था। एक महार गोविंद गायकवाड़ की समाधि का अपमान करके वे ऐसा कर पाए। गोविंद गायकवाड़ को शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी राजे भोसले के अंतिम संस्कार का श्रेय दिया गया था।
उन्होंने उस समय में ऐसा कर दिखाया जब कोई भी संभाजीराजे भोसले के शव को छूने की हिम्मत नहीं कर सकता था। क्योंकि ऐसा करने से वह मुगलों के क्रोध का शिकार बन सकता था।
विडंबना ये है कि देश में जांच ऐजेंसियों के दायरे से इस तरह के अजारकता तत्व कैसे बच निकलने कामयाब हो जाते हैं या इनको बचाने में पॉलिटिकल लोगों का हाथ होता है।
इसी तरह से इस हिंसा में चिंगारी डालकर संभाजी भिड़े और एकबोटे आराम से बैठें है और हिंसा का मामला पूरे देश में गरमा गया है। इस हिंसा में जिन लोगों की गिरफ्तारियां होई हैं उन गिरफ्तारियों पर देश में सियासत होने लगी है। और इसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो रही हैं।
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