Haribhoomi Explainer: भारत छोड़ो आंदोलन ने हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत, ऐसे भारत छोड़ने को मजबूर हुए अंग्रेज

Haribhoomi Explainer: अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 81 साल पहले देश की आजादी के लिए सबसे बड़े अहिंसक आंदोलन (Nonviolent Movement) का शुरुआत हुआ था। इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) के लिए भारतीयों का संघर्ष कई वर्षों तक चला लेकिन साल 1942 में पूरे देश से एक सुर में स्पष्ट संदेश यही निकला कि 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' (British Leave India)। इस आंदोलन का संदेश बिल्कुल साफ था कि अब भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिल जाएगी। इस आंदोलन ने पूरी अंग्रेजी हुकूमत (British Rule) को ही हिला डाला था। 8 अगस्त को ही महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए कह दिया था और 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की आधिकारिक रूप से शुरुआत हुई थी। आइए आज के हरिभूमि एक्सप्लेनर के माध्यम से हम आपको भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के बारे में बताते हैं।
9 अगस्त 1942 को हुआ आंदोलन का शुरुआत
8 अगस्त को महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए कह दिया था। महात्मा गांधी कई और स्वतंत्रता सेनानियों (Freedom Fighters) के साथ जेल में बंद थे इसलिए 9 अगस्त को देशवासियों ने आजादी (Freedom) की इस लड़ाई में खुद ही मोर्चा संभाल लिया। सड़कों पर निकली भीड़ और आजादी के लिए अंदोलन को अंग्रेजों ने बुरी तरह कुचल दिया लेकिन अंग्रेज इस बात को समझ लिए थे कि अब भारतीय पीछे नहीं हटने वाले हैं।
क्रिप्स मिशन की असफलता बनी अहम वजह
भारत छोड़ो आंदोलन के पीछे की सबसे बड़ी वजह 1942 का क्रिप्स मिशन थी। जैसे जैसे दूसरे विश्व युद्ध के हालात बन रहे थे, वैसे-वैसे ही परेशान ब्रिटिश हुकूमत को भारतीयों के सहयोग की जरूरत भी महसूस होने लगी थी। इसी को ध्यान में रखते हुए मार्च 1942 में स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स ने एक विशेष योजना बनायी जिसे क्रिप्स मिशन नाम दिया गया।
स्टैफोर्ड क्रिप्स भारत में कांग्रेस नताओं और मुस्लिम लीग से मुलाकात करने पहुंचे थे। मिशन का मकसद था कि भारतीयों को स्वशासन दिया जाए और बदले में उनका सहयोग लिया जाए। हालांकि ऐसा हुआ नहीं और क्रिप्स मिशन के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने भारत को डोमिनियन का अधिकार दिया। भारत को आजादी नहीं मिली और तो और अब भारत के बंटवारे का भी प्रस्ताव रखा गया जो कि कांग्रेस को नामंजूर था।
महात्मा गांधी को हो गया था अहसास
महात्मा गांधी को क्रिप्स मिशन की असफलता ने इस बात का अहसास करा दिया था कि अब देश की आजादी के लिए हर भारतीयों को पूरे जीन जान से लड़ना पड़ेगा। शुरुआत में इस तरह के आंदोलन से गुरेज किया जा रहा था। आखिर में 'करो या मरो' के नारे के साथ देशवासियों ने अंग्रेजों का सामना करने की ठान ली। साल 1942 के जुलाई की वर्किंग कमेटी की आयोजित बैठक में फैसला लिया गया कि अब इस आंदोलन की पूरे देश भर में शुरुआत की जाए।
करो या मरो के मंत्र ने लोगों में भर दिया जोश
8 अगस्त 1942 में महात्मा गांधी ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में लोगों को संबोधित किया। उन्होंने ये नारा दिया कि 'करो या मरो' देश को आजाद कराओ या कोशिश करते करते जान दे दो। गुलामी की बेड़ियों से लड़ने के इस मंत्र ने लोगों में जोश भर दिया। तिरंगा फहराया गया और आधिकारिक तौर पर उस दिन भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत कर दी गई।
महात्मा गांधी समेत कई नेताओं को हुई जेल
महात्मा गांधी समेत कई नेताओं का जेल जाना भी अब लोगों को रोकने के लिए काफी नहीं था। भारतवासी अब देश के लिए जान देने को भी तैयार थे। ये लड़ाई अब अंग्रेजी हुकूमत और आम जनता के बीच ठन गई थी। लोगों ने इस आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया था। मुंबई, पुणे, अहमदाबाद सब जगहों पर भीड़ सड़कों पर थी। 10 अगस्त तक इस आंदोलन की आग दिल्ली, यूपी, बिहार भी पहुंच गई। धरना प्रदर्शन से लेकर हड़ताल और सड़कों पर मार्च, शहर शहर बस आजादी के लिए यही नजर आ रहा था। धीरे-धीरे छोटे शहर गांव कस्बों तक भी इस आंदोलन की गूंज सुनाई देने लगी। सितंबर तक कई सरकारी कार्यालयों को लोगों ने निशाना बनाया। कई जगहों पर काम ठप्प पड़ गया। रेलवे लाइनों को ब्लॉक कर दिया गया था। इसी दौरान कस्तूरबा गांधी की मृत्यु अगा खान पैलेस में हो गई।
आंदोलन ने हिला दी अंग्रेजी हुकूमत
इस आंदोलन के 5वें महीने इसे बुरी तरह से कुचल दिया गया। 60 हजार से भी ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया। यहां तक कि अंग्रेजों ने लाठीचार्ज भी किया। हालांकि लोगों के जोश और जज्बे के आगे उन्हें हार माननी पड़ी। आंदोलन भले ही खत्म हुआ पर अंग्रेजों को इस बात का अहसास हो गया था कि आजादी के लिए लड़ने वाले इन लोगों को संभालना अब मुश्किल है। आखिकार अंग्रेजों को 1947 में भारत छोड़ना ही पड़ा।
भारत छोड़ो आंदोलन के रोचक तथ्य
- आंदोलन के दौरान पूरे देश में हड़तालें और जुलूस हुए। ब्रिटिश सरकार ने गोलीबारी, लाठीचार्ज और गिरफ्तारियों से अपना आतंक फैला दिया था।
- प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की और सरकारी इमारतों पर हमला किया, रेलवे लाइनों को क्षतिग्रस्त कर दिया और डाक और टेलीग्राफ सेवाओं को बाधित कर दिया।
- पुलिस के साथ कई बार झड़पें हुई, ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन के बारे में किसी भी समाचार के प्रकाशन पर रोक लगा दी थी।
- 1942 के अंत तक लगभग 60,000 लोगों को जेल में डाल दिया गया और सैकड़ों लोग मारे गये।
- जय प्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, एसएम जोशी, राम मनोहर लोहिया और अन्य के नेतृत्व में क्रांतिकारी गतिविधियां दूसरे विश्व युद्ध की पूरी अवधि तक चली।
- ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा पैदा की गई दुर्दशा के अलावा, बंगाल में भयानक खाद्य संकट था जो लगभग 30 लाख लोगों की मौत का कारण था।
- इन सबके बाद जब 1944 में गांधी जी को जेल से रिहा किया गया तो उन्होंने 21 दिन का उपवास रखा। सौभाग्य से, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक, ब्रिटेन की स्थिति में भारी बदलाव आया, जिससे उनके लिए भारत पर शासन करना असंभव हो गया।
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