अरविंद जयतिलक का लेख : केवल दोषियों पर हो कार्रवाई

अरविंद जयतिलक
यह राहतकारी है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने संयुक्त कार्रवाई कर 15 राज्यों में पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई) के 93 ठिकानों पर छापेमारी कर सौ से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इस संगठन का संबंध आतंकी संगठनों से होने की आशंका है। एनआईए की मानें तो छापेमारी आतंकवादियों को धन मुहैया कराने, आतंक की ट्रेनिंग देने और लोगों को बरगलाने के मामले में हुई है। एनआईए ने सबसे पहले तेलंगाना और आंध्रपदेश के उन 32 जगहों पर छापेमारी की जहां जूडो-कराटे ट्रेनिंग के जरिए आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाया जा रहा था। पीएफआई की भूमिका को लेकर जांच एजेंसियां पहले ही सतर्क थी और समय-समय पर इस संगठन के सदस्यों ने देशविरोधी होने का सबूत भी दिया। उत्तर प्रदेश की जांच एजेंसियां पहले ही खुलासा कर चुकी हैं कि इस संगठन के सदस्यों ने हाथरस में जातीय हिंसा फैलाने की भरपूर कोशिश की। साल 2020 में नागरिकता कानून के विरोध में हुई हिंसा में भी इस संगठन का नाम सामने आ चुका है। याद होगा वर्ष 2012 में दक्षिण भारत में उत्तर भारतीयों के खिलाफ कैंपेन चलाया गया था। इसके तहत पीएफआई और हरकत-उल-जिहाद-उल-इस्लामी द्वारा उत्तर भारतीयों को मैसेज भेजकर डराया गया। नतीजा उत्तर भारतीयों को कुछ इलाकों से जाना पड़ा था। बेंगलुरु से ही महज तीन दिन में 30 हजार से ज्यादा उत्तर भारतीयों को जाना पड़ा।
फिलहाल जांच एजेंसियां इस नतीजे पर भी हैं कि कर्नाटक में हिजाब आंदोलन में भी पीएफआई का हाथ है। देश के कुछ राज्यों में पीएफआई की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि अब यह संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बना चुका है। केरल में कई बार इस संगठन पर हत्या, दंगे, धमकाने और आतंकी संगठनों से जुड़े होने का आरोप लग चुका है। याद होगा 2012 में केरल के तत्कालीन मुख्ण्मंत्री ओम्मन चांडी के नेतृत्व में कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया था कि पीएफआई प्रतिबंधित सिमी का ही स्वरूप है। यही नहीं तत्कालीन केरल सरकार ने एक शपथपत्र के जरिए उच्च न्यायालय के समक्ष यह भी उद्घाटित किया कि पीएफआई का असल मकसद समाज का इस्लामीकरण करना है। 2010 में भी पीएफआई के सिमी से कनेक्शन के आरोप लगे थे। 2017 में एक स्टिंग आॅपरेशन में पीएफआई के संस्थापक सदस्यों में से एक अहमद शरीफ ने स्वीकारा था कि उसके संगठन का मकसद भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना है। यह भी तथ्य सामने आ चुका है कि भारत को इस्लामिक राज्य बनाने के लिए पीएफआई को इस्लामिक देशों से फंडिंग होती है। वर्ष 2020 में ईडी ने जांच के बाद दावा किया था कि 4 दिसंबर, 2019 से 6 जनवरी, 2020 के बीच पीएफआई से जुड़े दस एकाउंट्स में 1.04 करोड़ रुपये आए। इसी दौरान पीएफआई ने अपने खातों से 1.34 करोड़ रुपये निकाले थे। गौरतलब है कि 6 जनवरी के बाद ही सीएए के खिलाफ विरोध तेज हुए थे।
अच्छी बात है कि ईडी पीएफआई मनी लाॅन्िड्र्ंग की जांच कर रही है। चूंकि पीएफआई के सदस्यों पर आतंकी संगठनों से जुड़े होने का आरोप लगता रहा है। किसी से छिपा नहीं है कि केरल के कई युवाओं का इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ाव साबित हो चुका है। कुछ वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र की 26वीं रिपोर्ट में यह आशंका जाहिर की जा चुकी है कि भारत के केरल व कर्नाटक राज्य में बड़ी संख्या में इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी छिपे हो सकते हैं। गत वर्ष पहले इस्लामिक स्टेट आतंकी समूह जिसे आईएसआईएस, आईएसआईएसएल या दाएश के तौर पर भी जाना जाता है, ने भारत में नया प्रांत स्थापित करने का ऐलान किया था। तब इस संगठन ने कहा था कि उसकी नई शाखा का अरबी नाम 'विलायाह आॅफ हिंद' (भारत प्रांत) है। ऐसे में आवश्यक है कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां देश में छिपे इन आतंकी संगठनों के सदस्यों का ढूंढ कर निकाले और उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे। ध्यान दें तो पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और आंध्रपदेश सरीखे राज्यों से दर्जनों इस्लामिक स्टेट के समर्थकों की गिरफ्तारी हो चुकी है। गत वर्ष पहले न्यूयार्क टाइम्स द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में भी कहा गया था कि हैदराबाद के इस्लामिक स्टेट से जुड़े समर्थक सीधे सीरिया स्थित आतंकियों से संचालित होते हैं। जांच एजेंसियों की मानें तो देश के विभिन्न हिस्सों में युवा इस्लामिक स्टेट का हिस्सा बन रहे हैं। केरल से ही दो दर्जन से अधिक युवा इस्लामिक स्टेट में शामिल होने का खुलासा हो चुका है। यह तथ्य भी सामने आ चुका है कि भारत के कई इस्लामिक स्टेट समर्थक युवा सीरिया और इराक की जंग में आईएसआईएस की तरफ से लड़ते हुए मारे जा चुके हैं। सबसे खतरनाक बात यह है कि इस्लामिक स्टेट पढ़े-लिखे और तकनीक से जुड़े युवाओं पर अपना प्रभाव बढ़ाने में कामयाब रहा है।
ध्यान देना होगा कि भारत को सिर्फ आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन से ही खतरा नहीं है। अलकायदा भी भारत के लिए चिंता का सबब है। गत वर्ष पहले उसके सरगना अल जवाहिरी ने भारतीय उपमहाद्वीप में कायदात अल जिहाद बनाने, जिहाद का परचम लहराने और इस्लामिक शरीयत की बदौलत खलीफा राज लागू करने का एेलान किया था। गौर करें तो अलकायदा इस नतीजे पर है कि अगर उसने भारत में अपनी ताकत का विस्तार नहीं किया तो जिहादी मुस्लिम युवा इस्लामिक स्टेट की ओर आकर्षित हो जाएंगे। यह सच्चाई भी है कि पाकिस्तान के कबायली इलाकों में अमेरिकी ड्रोन हमलों की मार से अलकायदा लहूलुहान रहा है और पिछले कई वर्षों से उसे न सिर्फ लड़ाकों की कमी से जूझना पड़ा है बल्कि बम और गोला-बारूद की किल्लत से भी दो-चार हो रहा है। मौजूदा समय में इस्लामिक स्टेट द्वारा फंड जुटाने के लिए अलकायदा के सभी स्रोतों पर कब्जा कर लिया गया है। ओसामा बिन लादेन और अल जवाहिरी की मौत के बाद अब अलकायदा को सऊदी अरब से मिलने वाला 90 फीसदी फंड बंद हो चुका है। अभी तक अलकायदा का प्लान था कि 2014 के अंत तक जब नाटो फौज अफगानिस्तान से विदा हो जाएगी तो वह खुद को प्रासंगिक बना लेगा। लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान के शासन और इस्लामिक स्टेट के बढ़ते दबाव ने उसके गेम प्लान को खराब कर दिया। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के जिहादी युवाओं में अब अलकायदा को लेकर वह आकर्षण नहीं जैसे कभी ओसामा बिन लादेन के समय हुआ करता था, लेकिन भारत के संदर्भ में गौर करें तो चाहे आईएसआईएस हो या अलकायदा अभी तक किसी की भी दाल गली नहीं है। एक सच यह भी है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद अब भारतीय सेना ने आतंकी संगठनों की रीढ़ तोड़ दी है। ऐसी में अगर आतंकी संगठन पीएफआई जैसे मजहबी संगठनों को अपना मोहरा बनाकर भारत को इस्लामिक राज्य के रूप में देखना चाहते हैं तो आवश्यक है कि आस्तीन के इन सापों के फन को कुचला जाए।
( ये लेखक के अपने विचार हैं। )
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