सतीश सिंह का लेख : केंद्रीय बैंक में समायोजन रुख से आएगी मजबूती

सतीश सिंह का लेख : केंद्रीय बैंक में समायोजन रुख से आएगी मजबूती
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रिजर्व बैंक के समायोजन रुख से फिलवक्त अर्थव्यवस्था को संबल मिला है, लेकिन बढ़ती महंगाई और रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से रिजर्व बैंक अपने समायोजन रुख को ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रख सकता है, इसलिए, कयास लगाये जा रहे हैं कि जून में होने वाली मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में इजाफा कर सकता है। वैसे, बैंक क्रेडिट में वृद्धि होने लगी है और बैंक जमा में कमी आई है, जो यह दर्शाता है निजी खर्च और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है, इसलिए नीतिगत दरों में वृद्धि से अर्थव्यवस्था पर आंशिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन समग्रता में आने वाले दिनों में भी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रहेगी।

सतीश सिंह

आठ अप्रैल 2022 को भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया। रेपोदर 4 प्रतिशत पर, रिवर्स रेपो दर 3.35 प्रतिशत, मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी दर और बैंक दर 4.25 प्रतिशत पर यथावत है। इसका यह अर्थ हुआ कि केंद्रीय बैंक फिलहाल समायोजन के रुख को बरक़रार रखेगा। कुछ समय पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि अर्थव्यवस्था को सहारा देने और महामारी के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक को अभी समायोजन वाले अपने रुख को बरक़रार रखना होगा। हालांकि, बढ़ती महंगाई और रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से रिजर्व बैंक को आने वाले दिनों में अपने समायोजन के रुख में बदलाव करना पड़ सकता है, क्योंकि वैश्विक बाजार में अभी भी आपूर्ति श्रंखला बाधित है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार 11वीं बार रेपोदर में कोई बदलाव नहीं किया है। इससे पहले, केंद्रीय बैंक ने 22 मई 2020 को की गई मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में बदलाव किया था। बैंक रिजर्व बैंक से लिए कर्ज और बैंकों में जमा पैसे से जरूरतमंदों, कारोबारियों और उधमियों को ऋण देते हैं। रेपो दर कम होने का अर्थ होता है कि रिजर्व बैंक सस्ती दर पर बैंकों को कर्ज दे रहा है। जब बैंकों की पूंजी लागत कम होती है तो वह सस्ती दर पर ग्राहकों को ऋण देता है। रिवर्स रेपो दर, रेपो दर का उलट होता है। यह वह दर है, जिस पर बैंकों की ओर से जमा पर केंद्रीय बैंक ब्याज देता है। रिवर्स रेपो दर के जरिए भारतीय रिजर्व बैंक बाजार में तरलता को नियंत्रित करने का काम करता है। ताजा मौद्रिक समीक्षा में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और महंगाई दर दोनों के अनुमानों में संशोधन से इस बात का संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में नीतिगत दरों में वृद्धि की जा सकती है।

दस साल के बॉन्ड के ब्याज दर में भी बढ़ोतरी हो रही है और इसका प्रतिफल 3 साल के उच्च स्तर 7.12 प्रतिशत पर पहुंच गया है, जो 3 साल का उच्चतम स्तर है। इस साल इसका ब्याज दर 7.25 प्रतिशत पर पहुंचने का अनुमान है। पांच सालों का ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप भी 30 आधार अंक बढ़कर मई 2019 के बाद उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। ये सारे संकेत नीतिगत दरों में जल्द बढ़ोतरी किए जाने के हैं। वर्तमान परिदृश्य में बाजार को उम्मीद है कि जून की मौद्रिक समीक्षा में केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में इजाफा कर सकता है। एक अनुमान के अनुसार रेपो दर में वर्ष 2022 में 0.50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की जा सकती है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2022 के दौरान बैंक ऋण में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसमें खुदरा व कृषि ऋण का विशेष योगदान रहा है, जबकि वित्त वर्ष 2021 में बैंक ऋण में 5.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी।

औद्योगिक क्षेत्र में ऋण वृद्धि एमएसएमई की गतिविधियों में आई तेजी के कारण संभव हुआ है। बड़े उद्योगों की गतिविधियों में भी धीरे-धीरे तेजी आ रही है। सितंबर 2021 तक कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में वृद्धि रुक सी गई थी, लेकिन अक्टूबर 2021 से खासकर खुदरा और औद्योगिक क्षेत्र को दिए जा रहे कर्ज में तेजी आई। पहली छमाही में पिछले साल की तुलना में ऋण वृद्धि दर 5.5 से 6.7 प्रतिशत के बीच रही और उसके बाद इसमें तेज वृद्धि हुई। बैंकों ने वित्त वर्ष 2022 में 9.41 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिए हैं, जबकि वित्त वर्ष 2021 में 5.8 लाख करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020 में 5.99 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिए। वित्त वर्ष 2022 के कुल कर्ज में 1.78 लाख करोड़ रुपये कर्ज 25 मार्च, 2022 को समाप्त अंतिम पखवाड़े में दिए गए। वहीं, वित्त वर्ष 2022 में जमा में वृद्धि 8.94 प्रतिशत रही, जो वित्त वर्ष 2021 में 11.4 प्रतिशत थी। बैंकों में वित्त वर्ष 2022 के अंतिम पखवाड़े में 1.89 लाख करोड़ रुपये जमा किए गए। बैंक ऋण में वृद्धि से यह पता चलता है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है, वहीं, बैंक जमा में कमी आना इस बात का सूचक है कि निजी खर्च में तेजी आ रही है, जिससे मांग और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आने की संभावना है। अप्रैल 2021 से फरवरी 2022 के दौरान 11 महीनों में खुदरा क्षेत्र में 11.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है और 3.12 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया है। अप्रैल 2020 और फरवरी 2021 के बीच खुदरा कर्ज में वृद्धि दर 8.9 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2022 के 11 महीनों में औद्योगिक क्षेत्र में ऋण वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत रही, जबकि फरवरी 2021 में इसमें 2.6 प्रतिशत संकुचन हुआ था।

रिजर्व बैंकने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी वृद्धि 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जबकि पहले 7.8 प्रतिशत का अनुमान जताया था। श्री दास के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर के 16.2 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.2, तीसरी तिमाही में 4.1 और चौथी तिमाही में 4 प्रतिशत रह सकता है। रिजर्व बैंक के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति 5.7 प्रतिशत रह सकता है, जो अप्रैल से जून 2022 में 6.3 प्रतिशत, जुलाई से सितंबर 2022 में 5 प्रतिशत और अक्टूबर से दिसंबर 2022 में 5.4 चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में 5.1 प्रतिशत रह सकता है। रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण कच्चे तेल एवं धातु की कीमत में भारी उछाल देखा जा रहा है। घरेलू बाजार में पिछले 15 दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमत में 10 रुपये प्रति लीटर तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। मुंबई में पेट्रोल (पावर) 125 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचा जा रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में महंगाई की समस्या और भी गंभीर हो सकती है।

मौद्रिक समीक्षा के दौरान श्री दास ने कहा कि अब यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस(यूपीआई) का उपयोग करते हुए सभी बैंकों और एटीएम नेटवर्क पर कार्ड-रहित नकद निकासी की सुविधा उपलब्ध कराएगा। ऐसे लेनदेन का समायोजन एटीएम नेटवर्क से किया जाएगा। अभी 10,000 से 20,000 तक का लेनदेन इस सुविधा के माध्यम से किया जा रहा है। कुछ बैंक इस सुविधा के एवज में अपने ग्राहकों से अतिरिक्त शुल्क की वसूली कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि रिजर्व बैंक के समायोजन रुख से फिलवक्त अर्थव्यवस्था को संबल मिला है, लेकिन बढ़ती महंगाई और रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से रिजर्व बैंक अपने समायोजन के रुख को ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रख सकता है, इसलिए, कयास लगाये जा रहे हैं कि जून में होने वाली मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में इजाफा कर सकता है। वैसे, बैंक क्रेडिट में वृद्धि होने लगी है और बैंक जमा में कमी आई है, जो यह दर्शाता है निजी खर्च और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है, इसलिए नीतिगत दरों में वृद्धि से अर्थव्यवस्था पर आंशिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन समग्रता में आने वाले दिनों में भी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रहेगी।

( ये लेखक के अपने विचार हैं। )

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