डाॅ. एल. एस. यादव : हथियारों की होड़ शांति में बाधक

डाॅ. एल. एस. यादव
सम्प्रति विश्व के विभिन्न देशों में सैन्य क्षेत्र में एक दूसरे से अधिक ताकतवर बनने की होड़ लगी हुई है। दुनिया के जो भी बड़े देश हैं वे भी अपने को सैन्य क्षेत्र में इतना अधिक शक्तिशाली बनाना चाहते हैं कि कोई देश उन पर आक्रमण करने से पहले अनेक बार विचार करे। ताकतवर राष्ट्र बनने की इस होड़ में वैश्विक सैन्य खर्च सर्वकालिक उच्च स्तर 2.1 ट्रिलियन डाॅलर यानि कि लगभग 160 लाख करोड़ रुपये सेे अधिक तक पहुंच चुका है। देखा जाए तो लगातार सात वर्षों से वैश्विक स्तर पर सैन्य खर्च में बढ़ोत्तरी हो रही हैै। स्वीडन की प्रख्यात संस्था स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ; एसआईपीआरआई की 25 अप्रैल को जारी की गई ताजा रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि वर्तमान में सबसे अधिक सैन्य खर्च करने वाला देश अमेरिका है। इसके बाद चीन दूसरे नम्बर पर और भारत तीसरे नम्बर पर है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन का सैनिक खर्च भारत के मुकाबले तकरीबन चार गुना अधिक है। इसके बाद ब्रिटेन चौथे नम्बर पर व रूस पांचवे स्थान पर है। इन पांचों देशों का कुल सैन्य खर्च विश्व के कुल सैन्य खर्च का 62 प्रतिशत है, बाकी 38 प्रतिशत में दुनिया के अन्य देश हैं।
उपर्युक्त आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि कोविड-19 महामारी के बीच भी विश्व का सैन्य खर्च रिकाॅर्ड स्तर तक बढ़ा है। सिपरी के सैन्य व्यय और शस्त्र उत्पादन कार्यक्रम के वरिश्ठ शोधकर्ता डाॅ. डिएगो लोप्स डा सिल्वा का कहना है कि वर्ष 2021 में मुद्रास्फीति के कारण वास्तविक विकास दर में मंदी थी, जबकि सैन्य खर्च में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। कोविड महामारी से आर्थिक सुधार के परिणामस्वरूप रक्षा खर्च वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 2.2 प्रतिशत था जबकि 2020 में यह आंकड़ा 2.3 प्रतिषत था। अमेरिका ने वैश्विक सैन्य खर्च में पहले स्थान पर रहकर वर्ष 2021 में 801 बिलियन डाॅलर खर्च किए लेकिन उसका यह खर्च वर्ष 2020 की तुलना में 1.4 प्रतिशत कम है। अमेरिका ने वर्ष 2012 से 2021 तक के दस वर्षोँ में सैन्य अनुसंधान एवं विकास के लिए धनराषि में 24 प्रतिशत की वृद्धि की और हथियारों की खरीद पर खर्च में 6.4 प्रतिशत की कमी की। वैसे अमेरिका अभी भी अगली पीढ़ी की नई सैन्य तकनीकों का विकास कर रहा है।
दूसरे स्थान पर रहने वाले चीन ने अमेरिका की तुलना में सैन्य खर्च में वृद्धि की। उसने वर्ष 2021 में 293 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च किए जो कि वर्ष 2020 की तुलना में 4.7 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2012 से 2021 तक की अवधि में चीन अपने रक्षा बजट में 72 प्रतिशत का इजाफा कर चुका है। यहां गौरतलब बात यह भी है कि रक्षा बजट के मामले में चीन अभी भी अमेरिका से काफी पीछे है, लेकिन चीन अमेरिका के बाद रक्षा पर सबसे अधिक खर्च करने वाला दूसरा देश बन गया है। अमेरिका का रक्षा बजट चीन के मुकाबले अभी भी लगभग चार गुना ज्यादा है। अमेरिका ने वर्ष 2021 के लिए अपना रक्षा बजट 740 अरब डाॅलर यानी कि लगभग 54 लाख करोड़ रुपये घोषित किया था। चीन का अमेरिका के साथ सैन्य एवं राजनीतिक तनाव बढ़ता ही जा रहा है। शायद इसीलिए चीन के रक्षा बजट ने पहली बार 209 अरब डाॅलर के आंकड़े को पार कर दिया है। तीसरे स्थान पर रहने वाले भारत का सैन्य खर्च वर्ष 2021 में वृद्धि के बाद भी 76.6 बिलियल अमेरिकी डॉलर रहा जो कि 2020 की तुलना में 0.9 प्रतिशत ज्यादा था। स्टाॅकहोम स्थित संस्थान के अनुसार भारत का यह खर्च 2012 की तुलना में 33 प्रतिशत ज्यादा था। ज्ञातव्य है कि भारत ने स्वदेशी हथियार उद्योग को मजबूत करने के लिए वर्ष 2021 के सैन्य बजट में 64 प्रतिशत पूंजीगत परिव्यय घरेलू रूप से उत्पादित हथियारों के लिए निर्धारित किया था। भारत चार साल पहले पांचवे स्थान पर था और तब उसका सैन्य खर्च 5.1 लाख करोड़ रुपये था। चीन जैसी शक्तियों से निपटने के लिए भारत लगातार अपनी सामरिक शक्ति को बढ़ाने में लगा हुआ है। वर्तमान में चीन के बाद भारत के पास ही सबसे बड़ी सेना है। देश में हथियारों के उत्पादन को तेज करने के लिए भारत सरकार ने बड़े सैन्य बजट का ऐलान किया था। अब हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भर बनने के लिए भारत अधिक धन खर्च कर रहा है।
भारत के संदर्भ में गौरतलब बात यह है कि चीन और पाकिस्तान के साथ लगती सीमाओं पर लगातार विवादों के चलते रहने के कारण उसकी प्राथमिकता यह है कि वह अपनी सेनाओं के आधुनिकीकरण और हथियारों के उत्पादन के मामले में मजबूत हो जाए। इसीलिए वह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा दिया जा रहा है। अभी हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 21 अप्रैल को सेना के कमांडर सममेलन को संबोधित करते हुए कहा कि चीन के साथ एलएसी विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए बातचीत लगातार जारी है और इसी से एलएसी पर तनावग्रस्त इलाकों से सेनाओं की वापसी हो सकेगी। भारत की सशस्त्र सेनाएं देश की अखण्डता की रक्षा करने के लिए चुनौतीपूर्ण हालातों में दुश्मन की हर प्रकार की चुनौती से निपटने हेतु पूरी मुस्तैदी से डटी हुई हैं।
चैथे स्थान पर रहने वाले ब्रिटेन ने वर्ष 2021 में सैन्य क्षेत्र पर 68.4 अरब डाॅलर खर्च किए जो 2020 की तुलना में तीन प्रतिशत ज्यादा रहा। वर्ष 2021 में सैन्य क्षेत्र पर 65.9 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च करने वाला रूस पांचवें स्थान पर है। उसका यह सैन्य खर्च वर्ष 2020 की तुलना में 2.9 प्रतिशत ज्यादा था। रूस ने काफी पहले से ही यूक्रेन सीमा पर अपनी सेना को गतिषील कर रखा था। यह उसके विशेष सैन्य विकास का लगातार तीसरा वर्ष था। इस दौरान रूस का सैन्य खर्च उसके जीडीपी का 4.1 प्रतिशत तक पहुंच गया। बीते वर्ष ऊर्जा की कीमतों की बढ़ोत्तरी ने उसके सैन्य खर्च को बढ़ाने में सहायता की। इसके अलावा कतर, ईरान और यूक्रेन भी सैन्य खर्च बढ़ाने में आगे रहे। वर्ष 2021 में कतर का सैन्य खर्च 11.6 अरब डाॅलर था। कतर मध्य पूर्व में पांचवां सबसे अधिक रक्षा पर खर्च करने वाला देश बना। 11 वर्षोँ में उसका सैन्य खर्च 434 फीसदी बढ़ा। ईरान का सैन्य खर्च चार साल में पहली बार बढ़कर 24.6 अरब डाॅलर हो गया। उसने वर्ष 2021 में अपना सैन्य खर्च 14 फीसदी तक बढ़ाया। यदि यूक्रेन की बात की जाए तो उसने वर्ष 2021 में अपनी जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रक्षा पर खर्च किया। इसके अलावा भी कई देश अपना सैन्य खर्च बढ़ाकर विश्व शांति को चुनौती प्रस्तुत कर रहे हैं।
उपर्युक्त विवेचन यह स्पष्ट करता है कि पूरी दुनिया सैन्य खर्च के द्वारा बढ़ते संहारक हथियारों के कारण महाविनाश के लिए तैयार बैठी है। विश्व में कई देश ऐसे हैं जिनके बीच वर्तमान में ऐसा तनाव है जो कभी भी युद्ध में तब्दील हो सकता है। इसलिए विश्व के प्रमुख देशों को चाहिए कि दुनिया में फैली तनावपूर्ण स्थितियों को समाप्त कर विश्व शांति की तरफ आगे बढ़े जिससे महाविनाश की स्थितियों को टाला जा सके।
(लेखक सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक रहे हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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