डॉ. कन्हैया त्रिपाठी का लेख : मानवाधिकारों के लिए एकजुट हों

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी का लेख : मानवाधिकारों के लिए एकजुट हों
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नाम इसमें प्रमुखता से शामिल है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1993 में भारत सरकार द्वारा की गई जो भारतीय जनमानस के मानवाधिकार के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य कर रहा है। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारतीय लोकतंत्र की 75 वर्षीय यात्रा पूर्ण हो चुकी है।

भारत अपने देश की जनता के कल्याण के लिए, उनके सम्मान के लिए समय-समय पर प्रभावकारी कदम उठाता रहा है। इसी कड़ी में विभिन्न आयोगों का गठन हुआ है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नाम इसमें प्रमुखता से शामिल है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1993 में भारत सरकार द्वारा की गई जो भारतीय जनमानस के मानवाधिकार (Human Rights) के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य कर रहा है। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारतीय लोकतंत्र की 75 वर्षीय यात्रा पूर्ण हो चुकी है। आज से ही सभी आयोग एनएचआरसी के साथ जुड़कर कार्य करें और जो आयोग इसमें अभी तक शामिल नहीं हों, उन्हें भी इसमें सम्मिलित किया जाए।

हर व्यक्ति चाहता है कि उसे पर्याप्त सम्मान मिले। आम जनमानस चाहता है कि उसकी निजता को प्रतिष्ठा मिले। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों के सार्वभौम घोषणा-पत्र को जब स्वीकार किया गया था तो उसकी प्रथम तीन धाराओं में ही ऐसे प्रावधान किए गए कि मनुष्य को सभी अधिकार प्राप्त हो जाएं। विडम्बना यही है कि भारत क्या पूरी दुनिया में अभी भी मानवाधिकारों के संवर्धन के लिए पुरजोर कोशिश की जा रही है। भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से एक अद्भुत पहल न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और उनके सहयोगी राजीव कुमार और ज्ञानेश्वर मुले द्वारा की गई जो भारत में मानवाधिकारों के ग्रोथ-रेट को बढ़ाने वाले हो सकते हैं। आयोग की ओर से अध्यक्ष और सदस्यों ने आह्वान किया है कि देश के सभी आयोग मिलकर मानवाधिकार संरक्षण के लिए कार्य करें। यह अपने आप में अद्भुत और नवाचारी कदम लगता है।

वैसे, भारत अपने देश की जनता के कल्याण के लिए, उनके सम्मान के लिए समय-समय पर प्रभावकारी कदम उठाता रहा है। इसी कड़ी में विभिन्न आयोगों का गठन हुआ है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नाम इसमें प्रमुखता से शामिल है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1993 में भारत सरकार द्वारा की गई जो भारतीय जनमानस के मानवाधिकार के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य कर रहा है। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारतीय लोकतंत्र की 75 वर्षीय यात्रा पूर्ण हो चुकी है। हम अमृत-काल के रूप में अपना वर्तमान सेलीब्रेट कर रहे हैं। सबसे अहम बात एक यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा पत्र जो 1948 में विश्व के मानवाधिकारों में विश्वास करने वाले देशों द्वारा स्वीकार किया गया था उसका भी यह 75वां वर्ष है। यदि इसे भी अमृतकाल से जोड़कर देखें तो सार्वभौम घोषणा-पत्र के मानव अधिकारों का यह अमृत वर्ष है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा का मानना है कि भारत के पास मानव अधिकारों के उल्लंघन के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक अद्वितीय संस्थागत तंत्र है जिसमें सात अन्य राष्ट्रीय आयोगों और इसके मानद सदस्यों की शक्ति है। इसके साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग-एनएचआरसी है हर उन मुद्दों के लिए सक्रिय है जिससे भारत के लोगों के जीवन स्तर में सुधार आए और लोग अपने अधिकार को जागरूक होकर उसे प्राप्त कर सकें। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मंचों में भाग लेने और उन्हें संबोधित करने के दौरान उन्होंने इस तथ्य को महसूस किया कि भारत को इसकी समग्र प्रगति, और इसके लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ-साथ उन्नति के लिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जो दुनिया में सबसे अच्छे हैं। उन्होंने यह माना कि सभी आयोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को पर्याप्त न्याय मिले जिसके वह हकदार हैं। प्रत्येक राष्ट्रीय आयोग अपने अधिकार क्षेत्र में मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए अथक प्रयास कर रहा है।

सभी आयोगों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के काम के बीच और अधिक तालमेल बनाने की आवश्यकता है ताकि देश में अधिकार-आधारित संस्कृति का माहौल बनाया जा सके। यह निश्चय ही एक अच्छे समय की आहट है। यदि सब मिलकर अपने कार्य संस्कृति को बढ़ाएं, सभी के बीच तालमेल हो, सबके बीच सूचनाओं और रणनीतियों के भी समन्वय हों, तो भारत की मुश्किल से मुश्किल समस्याओं का निदान किया जा सकता है। मानवाधिकारों के लिए यह साथ-साथ चलने की मुहिम भले इतने वर्षों बाद आई हो लेकिन यदि सभी आयोग साथ-साथ कार्यसंस्कृति को विकसित करेंगे तो निश्चय ही मानव अधिकारों से भारत की अधिकतम आबादी लाभान्वित हो सकेगी। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और उनके साथ आयोग के सदस्यद्वय ज्ञानेश्वर मुले और राजीव जैन आयोग को अधिक सक्रिय बनाने में लगे हुए हैं। यह इस बात से पता चलता है क्योंकि वह आयोग की मंशा स्पष्ट करते हैं और आयोग के द्वार सभी आयोगों के लिए खुले रखना चाहते हैं।

न्यायमूर्ति मिश्रा के ये शब्द कि वैधानिक आयोग के मानद सदस्य ऐसे किसी भी मामले को एनएचआरसी के संज्ञान में ला सकते हैं जिस मामले में उन्हें आगे की जांच करने और अधिकारों के उल्लंघन के पीड़ित को वास्तविक राहत की संस्तुति करने की जरूरत महसूस हो, यह अपने आप में बड़ी बात है। सदस्य राजीव जैन मानवाधिकार नेट पोर्टल पर बोर्डिंग के पक्षधर हैं तो वहीं ज्ञानेश्वर मुले का यह सुझाव कि प्राचीन युग से लेकर आज तक भारतीय कला और संस्कृति में मानवाधिकारों को दर्शाने के लिए देश में मानवाधिकारों का एक संग्रहालय बनाने की आवश्यकता है, यह अपने आप में आयोग को किस ऊंचाई पर ले जाने की बात हो रही है, इसको समझा जा सकता है। ज्ञानेश्वर मुले तो इस बात के हिमायती हैं कि अधिक से अधिक लोगों में मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़े। वह इसके लिए मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण की भारतीय विरासत को दिखाने के लिए संयुक्त रूप से एक उत्सव आयोजित करने का भी सुझाव भी देते हैं। हां, एनएचआरसी के साथ मानवाधिकार की व्याप्ति के और अधिक इनिशिएटिव और इनोवेटिव आइडिया मूर्त रूप ले तो सबके साथ काम करने और एक निश्चित लक्ष्य प्राप्त करने में आसानी हो सकती है।

मसलन, यदि मानवाधिकार की बात की जा रही है तो आज जल और स्वच्छता भी मानव अधिकार के रूप में व्याख्यायित किया जा रहा है। इन दोनों का कोई एक आयोग तो नहीं है लेकिन केन्द्रीय जल आयोग को भी साथ आयोग के साथ आना चाहिए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी इस महान लक्ष्य की प्राप्ति में साथ जोड़ना चाहिए। भारत में गरीबी, भुखमरी, जलवायु के कारण उत्पन्न संकट को रेखांकित करना है। भारत में जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को कम करना है। भारत के बच्चों, महिलाओं और जरूरतमंद लोगों को न्यायपूर्ण जीवन देना है। कारागर में बंदियों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करना है तो इसके लिए उन मुद्दों का रेखांकन करना आज आवश्यक है जिससे किसी भी प्रकार के मानवाधिकारों का पूर्णतया लाभ हर भारतीय को मिल सके। उन्हें भी गरिमा मिले जो शरणार्थी जीवन जी रहे हैं।

जब दुनिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वभौम घोषणा पत्र के अमृत महोत्सव जैसे आयोजन हो रहे हों तो भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा सभी आयोगों को एकजुट करना सराहनीय कदम प्रतीत होता है। यह वास्तव में मानवीय धरातल पर एक गंभीर चिंतनपूर्ण पुनीत कार्य है। यदि मानवाधिकारों के लिए यह कटिबद्ध कदम उठाए गए तो भारत की इसमें व्यापक व समग्र प्रगति की संभावनाएं नज़र आती हैं। आवश्यकता अब इस बात की है कि इस पहल को अमल में लाया जाए। आज से ही सभी आयोग एनएचआरसी के साथ जुड़कर कार्य करें, उन्हें भी इसमें सम्मिलित किया जाए, क्योंकि देखा जाए तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इन सबका काम मनुष्यता के लिए है।

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी लेखक ( राष्ट्रपति के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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