मणेन्द्र मिश्रा ‘मशाल’ का लेख : वैश्विक कृषि विशेषज्ञ स्वामीनाथन

राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट में प्रो. स्वामीनाथन ने किसानों की कार्य कुशलता बढ़ाने और उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा से कदमताल करने में सक्षम बनाने के दिशा में भी महत्वपूर्ण उपाय बताए। जो प्रमुख रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत से कम से कम पचास प्रतिशत अधिक, कृषि उत्पाद की मौजूदा एवं भविष्य की कीमतों के अनुमानित आंकड़ों की उपलब्धता, उपज के विपणन,भंडारण एवं प्रसंस्करण से संबंधित कानून के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांडिग, पैकेजिंग और विकास को बढ़ावा के रूप में रेखांकित किए गए हैं। स्वामीनाथन ने समग्र रोजगार रणनीति में दो बिंदुओं को शामिल करने पर बल दिया।
भारत में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का निधन कृषि सुधारों की दिशा में एक युग का अंत है। उनका समूचा जीवन कृषि और उससे जुड़ी बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए समर्पित रहा। किसान और कृषि सुधार उनकी प्राथमिकता में रहे, जिसके कारण उन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा की नौकरी भी छोड़ दिया। कृषि विषयों पर बेहतर समझ और अनुभव को देखते हुए भारत सरकार ने 18 नवंबर 2004 को प्रो. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया, जिसकी पांच रिपोर्ट जारी हुईं। एनसीएफ (राष्ट्रीय किसान आयोग) की अंतिम रिपोर्ट में 11वीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य ‘ तेज और अधिक समावेशी विकास’ के लिए स्वामीनाथन ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए, जिसमें सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा, कृषि प्रणालियों की क्षमता सुधार, विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के किसानों के लिए विशेष कार्यक्रम, कृषि वस्तुओं की गुणवत्ता और लागत में बढ़ोत्तरी शामिल थे।
उनका जोर भारतीय किसानों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के साथ टिकाऊ कृषि के लिए पारिस्थितिक नीव के संरक्षण एवं सुधार के लिए निर्वाचित स्थानीय निकायों को मजबूत करना था। किसानों की उपज का लागत मूल्य न मिल पाने से किसानों की पीड़ा दूर करने हेतु निर्वाचित सरकारों को कारगर नीतियां बनाने के लिए उन्होंने अनेक उपाय बताए। भूमि सुधार, लाभकारी विपणन, पशुधन, जैव संसाधन, ऋण और बाजार के लिए नीतिगत निर्णय लेने से किसानों की पहुंच बुनियादी संसाधनों पर आसानी से हो सकेगी और उनके नियंत्रण में रहेंगी, इसीलिए प्रो. स्वामीनाथन कृषि को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल करवाना चाहते थे।
किसानों की आत्महत्या की समस्या के समाधान हके लिए प्रो. स्वामीनाथन ने अनेक ठोस कार्यक्रम प्रस्तुत किया। जिनमें किसानों के लिए किफायती स्वास्थ्य बीमा योजना, ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिकता के आधार पर आत्महत्या हॉटस्पाट स्थानों को चिह्नित कर स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बढ़ाना, राज्य किसान आयोग की स्थापना, आजीविका वित्त के रूप में माइक्रोफाइनेंस नीतियों का पुनर्गठन, वृद्धावस्था सहायता और स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान के साथ एक सामाजिक सुरक्षा जाल की सुनिश्चितता, वर्षा जल संरक्षण को बढ़ावा, जल उपयोग योजना का विकेंद्रीकरण, प्रत्येक गांव के लिए जल स्वराज का लक्ष्य जिसमें ग्राम सभाएं पानी पंचायत के रूप में सक्रिय हो जैसे प्रयास शामिल हैं।
भारतीय किसानों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में सुधार, किसानों की शुद्ध घरेलू आय सिविल सेवकों की आय के बराबर एवं जैव विविधता के पारंपरिक अधिकारों को कानूनी आधार दिलाने के लिए प्रो. स्वामीनाथन ने विशेष प्रयास किए। किसान क्रेडिट कार्ड, फसल बीमा योजना के साथ ग्रामीण विकास कोष, स्वयं सहायता समूह, जल उपयोगकर्ता संघ के लिए उन्होंने अनेक सुझाव दिए, जिसके आधार पर सरकार ने किसान हितैषी नीतियां बनाकर उनका क्रियान्वयन करवाया। राष्ट्रीय किसान आयोग के बतौर अध्यक्ष प्रो. स्वामीनाथन ने सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लागू करने की अनुशंसा करते हुए सकल घरेलू उत्पाद का कुल सब्सिडी एक प्रतिशत करने की वकालत की। परंपरागत खेती से किसानों के जीवन में चले आ रहे संकट के समाधान के लिए कम जोखिम और कम लागत वाली प्रौद्योगिकी की सिफारिश करते हुए प्रो. स्वामीनाथन ने किसानों को अधिकतम आय प्रदान करने वाली नीति निर्माण को सरकार की प्राथमिकता में शामिल कराने की दिशा में अनेक कार्य किए।
राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट में प्रो. स्वामीनाथन ने किसानों की कार्य कुशलता बढ़ाने और उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा से कदमताल करने में सक्षम बनाने के दिशा में भी महत्वपूर्ण उपाय बताए। जो प्रमुख रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत से कम से कम पचास प्रतिशत अधिक, कृषि उत्पाद की मौजूदा एवं भविष्य की कीमतों के अनुमानित आंकड़ों की उपलब्धता, उपज के विपणन,भंडारण एवं प्रसंस्करण से संबंधित कानून के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजारों की ग्रेडिंग, ब्रांडिग, पैकेजिंग और विकास को बढ़ावा के रूप में रेखांकित किए गए हैं। गरीबी का दंश झेलते हुए भारतीय किसानों के लिए रोजगारपरक नीति निर्माण के लिए प्रो. स्वामीनाथन ने भारत में समग्र रोजगार रणनीति में दो बिंदुओं को शामिल करने पर बल दिया।
पहला उत्पादक रोजगार के अवसर पैदा करना और दूसरा कई क्षेत्रों में रोजगार की गुणवत्ता में सुधार जिससे उत्पादकता में सुधार के माध्यम से वास्तविक मजदूरी बढ़े। इसके साथ ही कृषि से जुड़े उप क्षेत्रों को विकसित कर गैर कृषि रोजगार के अवसरों का प्रोत्साहन शामिल है, जिससे भारतीय किसान व्यापार, रेस्तरां/होटल, परिवहन, निर्माण, मरम्मत और इनसे जुड़ी सेवाओं के माध्यम से संपन्न हो सके। कृषि के माध्यम से प्रो. स्वामीनाथन का जोर पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता पर केंद्रित था। जैव संसाधन से जुड़ी नीतियों के क्रम में उन्होंने पोषण और आजीविका सुरक्षा को आधार बनाया। जिसमें पारंपरिक अधिकारों को संरक्षित करने जैसे विचार शामिल हैं।
प्रो. स्वामीनाथन के निधन ने कृषि और किसानों के लिए नीति विशेषज्ञ के क्षेत्र में रिक्तता पैदा कर दी है, जिसकी निकट भविष्य में भरपाई संभव नहीं है, लेकिन निश्चय ही उनकी ज्ञान परंपरा एवं कार्य लंबे समय तक किसानों के जीवन को खुशहाल बनाने में लाभकारी होंगे। प्रो. स्वामीनाथन के हरित क्रांति से भारत में अन्न संकट, भुखमरी का स्थाई निदान संभव हो सका। उनके सुझावों को नीतियों के माध्यम से त्वरित क्रियान्वयन ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मणेन्द्र मिश्रा ( लेखक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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