भाजपा की रैलियों पर रोक : अलोकतांत्रिक आचरण कर रही ममता सरकार

यह कैसी विडंबना है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकतंत्र विरोधी नीतियों का झंडा बुलंद किए हुए हैं। वह अब केंद्र सरकार व भाजपा के खिलाफ तानाशाही भरे रवैये का परिचय देने में भी संकोच नहीं कर रही हैं? यह समझ से परे हैं कि उनकी सरकार ने अमित शाह को जाधवपुर में रैली करने की इजाजत क्यों नहीं दी। तृणमूल सरकार ने भाजपा अध्यक्ष के हेलीकॉप्टर को उतरने की भी मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इसके चलते रैली रद करनी पड़ी।
जाधवपुर में रैली रद होने पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि मेरी यहां तीन रैलियां होनी थीं। जयनगर में तो आ गया मगर दूसरी जगह ममता दीदी के भतीजे की सीट थी। वहां पर हमारे जाने से ममता जी डरती हैं कि भाजपा वाले इकट्ठे होंगे तो भतीजे का तख्त उल्टा हो जाएगा।
इसलिए उन्होंने सभा की इजाजत नहीं दी। इससे पहले उन्होंने बालूरघाट में भाजपा की रैली को संबोधित करने के लिए वहां जाने की तैयारी कर रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर को उतरने की अनुमति नहीं दी?
इस मनमानी रोक के चलते उन्हें फोन से ही रैली को संबोधित करना पड़ा था। यह किसी राज्य सरकार की ओर से विरोधी दल के नेताओं को अपने यहां सभा-सम्मेलन करने से रोकने का दुर्लभ उदाहरण है और ममता बनर्जी ऐसे दुर्भाग्य उदाहरण पेश करने में माहिर होती जा रही हैं।
इससे पहले ममता सरकार ने लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान के लिए भाजपा की रथ यात्रा की मंजूरी नहीं दी थी। इसे लेकर दोनों पार्टियां सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। यह भी आरोप है कि वह प्रधानमंत्री की रैलियों के दौरान पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं कर रही है।
उधर, छठे चरण के मतदान से पहले शनिवार रात एक बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या हो गई, जबकि दो अन्य को गोली मार दी गई, जिनकी हालत गंभीर बनी हुई है। झारग्राम में रविवार को मतदान शुरू होने से पहले भारतीय जनता पार्टी के बूथ कार्यकर्ता रामेन सिंह का शव मिला था।
इसी तरह पूर्वी मेदिनीपुर के भगवानपुर में पिछली रात बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं को गोली मार दी गई, जिनकी पहचान रंजीत मैती और अनंत गुचैत के तौर पर की हुई है। दोनों का इलाज चल रहा है। यह कैसी राजनीति है।
अवैध प्रवासियों पर के मसले पर भी ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीधी जंग पर उतारू हो गई थी। बीजेपी ने अवैध प्रवासी मुस्लिमों को निकाले जाने के लिए एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक का मुद्दा प्रमुखता से उठाया तो दीदी भड़क गई।
यहां तक कि उन्होंने प्रधानमंत्री तक को थप्पड़ माने की बात कह डाली थी। आखिर ऐसी सरकार की मुखिया को लोकतांत्रिक कैसे कहा जा सकता है? माना कि ममता बनर्जी अपने गुस्से के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने अपने इसी गुस्से के दम पर माकपा के हाथों से बंगाल की सत्ता छीनी थी,
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों और मर्यादाओं को ताक पर रख दें। मुश्किल यह है कि वह ऐसा डंके की चोट पर कर रही हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें यह भान ही नहीं है कि वह एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं और उन्हें अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति ऐसा रवैया शोभा नहीं देता।
इस तरह का रवैया लोकतांत्रिक परंपराओं के विपरीत है। इससे केवल पश्चिम बंगाल ही नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक छवि को भी चोट पहुंचती है। ममता बनर्जी अपने मनमाने तौर-तरीकों से खुद को ही नुकसान पहुंचा रही हैं।
आखिर राजनीतिक विरोधियों के प्रति असहिष्णुता दिखा रहा कोई नेता प्रधानमंत्री बनने का सपना कैसे देख सकता है? अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रति ममता का असहिष्णु रवैया कुल मिलाकर उन वामदलों की ही याद दिला रहा है जिनके कठोर शासन से उकता कर लोगों ने ममता बनर्जी को सत्ता सौंपी थी,
लेकिन अब ममता तो वाम दलों को भी मात दे रही हैं। वह भाजपा और मोदी सरकार के प्रति इस हद तक असहिष्णुता से भरी हुई हैं कि केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को ठुकराने के साथ ही केंद्रीय एजेंसियों के प्रति भी दुर्भावना का प्रदर्शन करने में लगी रहती हैं।
कौन भूल सकता है कि प. बंगाल में सीबीआई को ही बंदी बना लिया गया था। इस पर यकीन करना कठिन है कि यह वही ममता बनर्जी हैं जो संघीय ढांचे की रक्षा के लिए चिंता जताया करती थीं।
उनकी सरकार का रवैया तो संघीय ढांचे की मूल भावना पर ही प्रहार करने वाला है। क्या ममता बनर्जी को साथ लेकर महागठबंधन बनाने वाले नेता यह देखेंगे कि उनकी एक सहयोगी कैसा अलोकतांत्रिक आचरण कर रही हैं?
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