अरविंद जयतिलक का लेख : ब्रिटेन की उम्मीदों के ऋषि

भारत के लिए सुखद क्षण है कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री होंगे। दो सौ साल तक भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों के देश को अब एक भारतवंशी चलाएगा। यह भारत को आह्लादित और रोमांचित करने वाली घटना है। ऋषि सुनक को कंजरवेटिव पार्टी का निर्विरोध नेता चुन लिया गया है। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल पेनी माॅरडाॅन्ट और पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया है। सुनक की लोकप्रियता और स्वीकार्यता का आलम यह है कि उन्हें 200 से अधिक सांसदों का सहयोग-समर्थन हासिल है।
उल्लेखनीय है कि पेनी माॅरडाॅन्ट और बोरिस जाॅनसन दोनों नेताओं के समर्थकों द्वारा सौ-सौ सांसदों के समर्थन का दावा किया गया था, लेकिन वे समर्थकों की सूची पेश नहीं कर सके। अंततः उनकी चुनौती व गोलबंदी धरी की धरी रह गयी। वैसे भी कंजरवेटिव पार्टी बोरिस जाॅनसन को दोबारा नेता और देश का प्रधानमंत्री चुनने के पक्ष में नहीं था। इसलिए कि वे न सिर्फ एक विफल प्रधानमंत्री साबित हुए हैं बल्कि कंजरवेटिव पार्टी की लोकप्रियता और साख को बरकरार रखने में भी विफल रहे। कंजरवेटिव पार्टी को स्पष्ट ज्ञात था कि बोरिस जाॅनसन के नेतृत्व में कंजरवेटिव पार्टी अगला चुनाव नहीं जीत सकती। उल्लेखनीय है कि अगला यूनाइटेड किंगडम आम चुनाव जनवरी 2025 के बाद होने वाला है। ऐसे में कंजरवेटिव पार्टी बोरिस जाॅनसन और पेनी माॅरडाॅन्ट पर दांव क्यों लगाती? सच तो यह है कि कंजरवेटिव पार्टी को ऐसा नेता चाहिए जो वित्तीय स्थिरता बहाल करने के साथ-साथ महंगाई कम करने, टैक्स कटौती और पार्टी को एकजुट रखने की रणनीतिक कसौटी पर खरा उतरे। साथ ही वह कंजरवेटिव पार्टी को अगला चुनाव भी जीताए। कंजरवेटिव पार्टी इसहलए भी चिंतित थी कि ताजा जनमत सर्वेक्षण के मुताबिक अगर ब्रिटेन में चुनाव करवाए जाते तो उसे बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में वह कमजोर किरदार पर दांव लगाकर धारदार कुल्हाड़ी पर पैर रखने का जोखिम नहीं ले सकती थी। यह तथ्य है कि कंजरवेटिव पार्टी पिछले 12 साल से सत्ता में है। यह सच्चाई है कि कोई भी दल लंबे समय तक सत्ता में बना रहता है तो उसके खिलाफ एंटी इनकमबेंसी का माहौल निर्मित हो जाता है।
कंजरवेटिव पार्टी के लिए भी कमोवेश ऐसा ही माहौल है। अब उसकी कोशिश इस धारणा को तोड़कर नए प्रधानमंत्री के जरिए अगला चुनाव जीतना है, लेकिन उसके साथ समस्या यह है कि विगत छह साल से नेतृत्व संकट से जूझ रही है। उसके शीर्ष नेता अच्छी तरह जानते हंै कि जब तक उनके पास करिश्माई नेता नहीं होगा तब तक उसके लिए अगला चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। ऋषि सुनक के रूप में अभी एक भरोसेमंद नेता मिल गया है। ब्रिटेन की मौजूदा परिस्थिितियों पर नजर दौड़ाएं तो ब्रेग्जिट के फैसले के बाद से ही ब्रिटेन अनापेक्षित संकट से दो-चार है। ऐसे में उसे एक ऐसे प्रधानमंत्री की जरुरत है जो देश को राजनीतिक-आर्थिक तौर पर मजबूती और स्थिरता दे। लोगों का भरोसा जीत जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरे। याद होगा कि जब लिज ट्रस ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो कहा कि वह जनमत का सम्मान और उनसे किए वादों को पूरा न करने के कारण पद छोड़ रहीं हैं। अब नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए जनमत का सम्मान और किए गए वादों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती होगी। चूंकि कंजरवेटिव पार्टी की छवि और नीति कर कटौती की पक्षधरता वाली रही है ऐसे में उन्हें लिज ट्रस के दौरान उपजी आर्थिक चुनौतियों से सबक लेना होगा। लिज ट्रस ने कठोर कर कटौती की पहल की थी, लेकिन बढ़ती महंगाई के कारण उनका दांव उल्टा पड़ गया।
मजेदार बात यह कि लिज ट्रस ने टैक्स कटौती का वादा करके ही प्रधानमंत्री बनी थी। 23 सितंबर को जब उनकी सरकार के वित्तमंत्री ने बजट पेश किया तो उसमें किए गए प्रावधानों ने वित्तीय बाजार को अस्थिर कर दिया। पाउंड गिरने लगा। उनकी चतुर्दिक आलोचना शुरू हो गयी और कंजरवेटिव पार्टी भी दबाव में आ गयी। पार्टी के भीतर उठने वाले विरोध के कारण प्रधानमंत्री लिज ट्रस को अपने वित्तमंत्री क्वासी क्वारतेंग को हटाना पड़ा। फिर गृहमंत्री को चलता किया गया। जब नए वित्त मंत्री ने पद संभाला तो बजट प्रावधानों को वापस ले लिया। बाजार संभला लेकिन सियासी हलचल बढ़ गयी। आर्थिक जानकार और विपक्षी नेता सवाल दागने लगे कि सरकार न तो अपने चुनावी वादे पर खरा उतरी और न ही उसके पास समस्याओं से निपटने का ठोस रोडमैप है। लिहाजा पार्टी के भीतर से ही लिज ट्रस का विरोध शुरू हो गया। नाराजगी इस कदर बढ़ा कि उन्हें वित्तीय अस्थिरता के लिए देश से माफी मांगनी पड़ी। उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि मैं ज्यादा टैक्स की वजह से महंगे हुए बिजली के बिल से लोगों को राहत देना चाहती थी, मगर हमने बहुत जल्दी बहुत दूर जाने की कोशिश की। लिज ट्रस की यह माफी पर्याप्त साबित नहीं हुई। हालांकि लिज ट्रस की माफी में एक साफगोई और कड़वी सच्चाई थी। इसलिए कि उनकी सरकार द्वारा टैक्स कटौती करना एक दूरदर्शितापूर्ण कदम था। उनके मिनी बजट में लाखों परिवारों को राहत देने के उद्देश्य से ढेर सारी कर कटौतियों के साथ-साथ राजकोषिय पैकेज भी दिए गए थे। इससे आमजन के हालात बेहतर होते। करों में कटौती से राजस्व में वृद्धि होती और अर्थव्यवस्था को गति मिलती। इसी उद्देश्य से उनकी सरकार ने कर को 45 फीसद से घटाकर 40 फीसदी करने का निर्णय लिया। कराधान को 20 फीसदी से घटाकर 19 फीसद करने का प्रस्ताव रखा। यह भी तय था कि काॅरपोरेट टैक्स की दरों को भी 19 फीसदी पर रखा जाएगा। इस तरह करीब 45 अरब की टैक्स कटौती होती और देश की अर्थव्यवस्था गुलजार होती। आगे चलकर लोगों को राहत मिलती। लेकिन ये कर कटौतियां और राहतकारी पैकेज न तो बाजार को रास आए और न ही आम जनता को। आम जनता को तत्काल महंगाई और बढ़ते कर से राहत चाहिए था। लेकिन लिज सरकार इसमें नाकाम रही। बाजार संभलने के बजाए बिगड़ता गया।
आमजन की नाराजगी से कंजरवेटिव पार्टी भी डर गयी। सरकार ने ताबड़तोड़ गिरावट को संभालने के लिए बाॅंन्ड बाजार में हस्तक्षेप किया। लेकिन बात नहीं बनी। अंततः लिज ट्रस को प्रधानमंत्री पद छोड़ने का एलान करना पड़ा। अब ब्रिटेन को एक तेजतर्रार, भरोसेमंद व दृढ़ निश्चयी प्रधानमंत्री के तौर पर ऋषि सुनक मिल गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे ब्रिटेन की राजनीतिक-आर्थिक स्थिरता को मजबूती देंगे और जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरेंगे। फिलहाल ब्रिटेन रिकार्डतोड़ महंगाई संकट से जूझ रहा है। यूक्रेन संकट के चलते गैस व पेट्रो उत्पादों की कीमतें बढ़ी हुई हैं।
(लेखक अरविंद जयतिलक, वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS