योगेश कुमार सोनी का लेख : बच्चों की सुरक्षा हो प्राथमिकता

योगेश कुमार सोनी का लेख : बच्चों की सुरक्षा हो प्राथमिकता
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राजधानी दिल्ली में कोरोना ने फिर एक बार दस्तक दे दी है जिसकी वजह से लोग विचलित होना शुरू हो गए हैं। यदि बीते कुछ दिनों के आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। यदि शिक्षा की बात करें तो बीते दो वर्षों से स्कूल व कॉलेज न जाने की वजह से विद्यार्थी उतनी बेहतर तरीके से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए हैं जैसे होनी चाहिए। एक बार फिर से लोगों में तनाव की स्थिति देखने को मिल रही है और सबसे ज्यादा उन अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है जिनके बच्चे छोटे हैं और वह स्कूल जा रहे हैं। अभिभावकों चिंता जायज भी है चूंकि आठवीं कक्षा तक बच्चा कोरोना के नियमों का पालन नहीं कर पाता। ऐसे में स्कूली बच्चों के लिए कुछ अलग से तरकीब सोचनी पड़ेगी।

योगेश कुमार सोनी

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना ने फिर एक बार दस्तक दे दी है जिसकी वजह से लोग विचलित होना शुरू हो गए हैं। यदि बीते कुछ दिनों के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा केस आने लगे और सरकार ने दोबारा मास्क लगाने के लिए हिदायत दी है, मास्क न लगाने पर फिर पांच सौ रुपये जुर्माना भी कर दिया गया है। कोरोना के बीते कालखंडों में किस तरह मानव जीवन की हानि हुई यह हमने खुली आंखों से देखा और यदि पिछले साल इस ही समय की बात करें तो वैसा मौत का तांडव शायद ही कभी हुआ हो। अप्रैल-मई का महीना सबसे खतरनाक था और अब भी वो ही समय चल रहा है। जैसे ही थोड़ा सा कुछ सही होता है वैसे ही तुरंत कोरोना फिर घेरने लगता है। आर्थिक,मानसिक व शारीरिक कष्टों से घिरे लोगों पर मानो काला साया सा आ जाता है और यदि शिक्षा की बात करें तो बीते दो वर्षों से स्कूल व कॉलेज न जाने की वजह से विद्यार्थी उतनी बेहतर तरीके से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए हैं जैसे होनी चाहिए।

डीडीएमए के मुताबिक कोविड-19 के नए वैरिएंट बी.1.10, बी.1.12 के शुरुआती संकेत मिलने के बाद सब परेशान हैं। एक बार फिर से दिल्लीवासियों में तनाव की स्थिति देखने को मिल रही है और सबसे ज्यादा उन अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है जिनके बच्चे छोटे हैं और वह स्कूल जा रहे हैं। बीते दो वर्षों से स्कूल नहीं खुले थे और अब कुछ राहत मिली ही थी कि एक बार फिर से संकट आ गया। ऐसे में अभिभावकों चिंता जायज भी है चूंकि आठवीं कक्षा तक बच्चा स्वयं का ख्याल अर्थात कोरोना के नियमों का पालन नहीं कर पाता। दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने पुन स्कूल बंद करने का फैसला नहीं लिया। हालांकि स्थिति अभी इतनी भयावह नहीं है, लेकिन हालात बिगड़ते देर नहीं लगती। चूंकि बीते समय ने हमें बहुत कुछ ऐसा दिखाया था कि जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। बहरहाल, अब शायद स्थिति यही बन रही है कि कोरोना काल में हमें जीना पड़ेगा। कहते हैं जिंदगी किसी के लिए नहीं रुकती, लेकिन ऑनलाइन क्लॉस से बच्चों की शिक्षा बहुत प्रभावित हुई है, जिसके हमने कई दुष्परिणाम भी देखे। दरअसल जो छोटी कक्षा में हैं जैसे कि पहली से पांचवीं तक के बच्चों के माता-पिता का चिंतित होना सही भी है, चूंकि इतने छोटे बच्चे सोशल डिस्टेंसिंग व अन्य नियम का पालन नही कर पाते। अभिभावकों का कहना यह है कि यदि किसी के घर में कोरोना पेशेंट हुआ और उस बच्चे से स्कूल के बाकी बच्चों हो गया तो सब प्रभावित हो सकते हैं। स्वाभाविक है कि छोटे बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों की अपेक्षा कम होती है। हालांकि किसी भी लहर में बच्चे प्रभावित नहीं हुए, लेकिन ध्यान रखना जरूरी है। लोगों का सुझाव है कि कक्षा पांच तक के बच्चों के लिए स्कूल फिर से बंद कर दिए जाएं। कुछ लोगों ने तो फिर से अपने बच्चों को स्कूल जाना बंद करा दिया। ऐसे अभिभावक और स्कूल प्रशासन की बीच रोज झड़प भी होती रहती है, लेकिन हालात को देखकर दोनों अपनी जगह सही हैं। अब मामला शिक्षा का है, स्वास्थ्य का भी है इसलिए पेचीदा हो रहा है। अब प्राइवेट स्कूलों में हर रोज झगड़े होते नजर आते हैं। इस मामले पर अधिकतर स्कूल प्रशासन का कहना है कि पिछले दो वर्ष ऑनलाइन कक्षा से बच्चों की शिक्षा बहुत प्रभावित हुई है। चूंकि अधिकतर बच्चों ने गंभीरता से कक्षा नहीं ली, जिसकी वजह से पढ़ाई में बहुत पिछड़ गए। उदाहरण के तौर पर तीसरी कक्षा में जो बच्चा था वह बीते दो वर्षों में उतना योग्य नहीं हो पाया कि वह पांचवीं कक्षा की शिक्षा के योग्य हो, लेकिन कक्षा पांच तक के बच्चे को फेल भी नहीं कर सकते। उसको हाल ही व आगे भी और ज्यादा समस्या आ सकती है।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अधिकतर बच्चे घर पर उतनी मेहनत व लगन से नहीं पढ़ पाए जितना स्कूल में पढ़ते हैं। मोबाइल में क्लास लेने के बहाने के बच्चे गेम खेलते रहे या अन्य चीजों में लगे रहे और अपनी व्यस्तता के चलते अभिभावक ध्यान नहीं दे पाए। इसके अलावा स्कूल की ओर से यह भी कहा गया कि कोरोना के बाद से यदि पूरे भारत के पहली से बारहवीं के बच्चों की नंबरों व ग्रेड की प्रतिशत में बहुत कमी आई है। बीते दो वर्षों में प्रैक्टिकल न होने की वजह से भी के साइंस के विद्यार्थियों का बहुत नुकसान हुआ है। अब लोगों को कोरोना से राहत मिली ही थी कि अब फिर वही स्थिति बन रही है, लेकिन जो अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने का विरोध कर रहे हैं उनके नजरिये को भी समझा जाए तो उनकी बात भी जायज लगती है। जिस तरह कोरोना का इलाज वयस्कों का होता है कल्पना की जाए वैसे बच्चों का होना असंभव है। पूरे भारत में यदि महानगरों की स्थिति पर चर्चा करें तो हालात बहुत खराब रहे हैं और आंकड़े भी दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों बहुत डराने वाले थे, इसलिए इन राज्यों की जनता का अधिक परेशान होना स्वाभाविक लगता है। शिक्षाविदों के आधार पर यह माना जाता है कि यदि स्कूली शिक्षा मजबूत नही होगी तो आने भविष्य में अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक व अन्य देश को संचालित करने वाले लोगों की कमी आ जाएगी और यदि मिलेंगे तो बेहतर नहीं मिलेंगे। कुछ अभिभावकों का कहना है कि घर में रहकर उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए यह अलग बात है, लेकिन वह डिप्रेशन के शिकार हो गए जो बेहद चिंताजनक मामला बन गया। एक बेहद हैरान करने वाली बात सामने आई कि कुछ बच्चेे क्लास की आड़ में अश्लील सामग्री देखने लगे थे, दरअसल उस प्रकरण में गलती उनकी नहीं थी। चूंकि आजकल सोशल माध्यम पर अश्लील सामग्री आती है। बहुत गंदे टाइटल के साथ वीडियो आते हैं जो हर दो पोस्ट या विज्ञापन के बाद दिख जाते हैं। चूंकि बच्चों में इतना ज्ञान नहीं होता और वह उन सभी बातों को समझ नहीं पाते। कुछ बच्चे इसका गलत रूप से शिकार भी हुए हैं। बहरहाल, हर घटना के सिक्के की तरह दो पहलू होते हैं, लेकिन जिंदगी को सुरक्षा के साथ जीना भी जरूरी है तो इसलिए स्कूली बच्चों के लिए कुछ अलग से तरकीब सोचनी पड़ेगी।

बीते मार्च में सरकार ने पहली बार 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कोरोना वैक्सीन लगाने का अभियान शुरू किया था। तब से 15 से 18 वर्ष के बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं। इस कारण बड़े बच्चों के स्कूल खोलने में भी आसानी हुई थी। अब 12 वर्ष के बच्चों को भी टीका लगाने से छोटे बच्चों को भी स्कूल भेजने में कोई समस्या नहीं मानी जा रही और जिन बच्चों का जन्म वर्ष 2008, 2009 व 2010 में हुआ है, उन्हें टीके लगाने का अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन इसके बाद के वर्ष में किसी को लिए अब तक सरकार के पास कोई रणनीति नहीं है। स्पष्ट है कि छोटे बच्चों को लेकर स्वयं ही ऐहतियात बरतने होंगे। किसी के पास भी इतना बड़ा दिल नहीं जो बच्चों पर रिस्क लें। अब सरकार के सामने शिक्षा व सुरक्षा का जिम्मा है। देखना यह होगा कि किस नीति के तहत इस काम को अंजाम दिया जाएगा, क्योंकि छोटे बच्चों के मामले में अतिरिक्त ऐहतियात की जरूरत है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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