डाॅ. एन.के. सोमानी कस लेख : चीन को बदलना होगा नजरिया

डाॅ. एन.के. सोमानी कस लेख : चीन को बदलना होगा नजरिया
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आतंकवाद से मुकाबले को लेकर चीन के दावों की एक बार फिर कलई खुल गई है। चीन ने दुर्दांत पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के भारत और अमेरिका के साझे प्रयासों पर पानी फेर दिया है। यह पहला अवसर नहीं है, जब चीन ने आतंकवाद को लेकर सुरक्षा परिषद की कार्रवाई को बाधित किया है। इससे पहले भी वह पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और उसके आका अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किए जाने की कार्रवाई को वीटो के जरिये बाधित कर चुका है। चीन को नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद विरोधी नीति पर दुनिया से अलग चलना भविष्य में उसके लिए पीड़ादायक हो सकता है।

डाॅ. एन. के. सोमानी

आतंकवाद से मुकाबले को लेकर चीन के दावों की एक बार फिर कलई खुल गई है। चीन ने दुर्दांत पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने के भारत और अमेरिका के साझे प्रयासों पर पानी फेर दिया है। यह पहला अवसर नहीं है, जब चीन ने आतंकवाद को लेकर सुरक्षा परिषद की कार्रवाई को बाधित किया है। इससे पहले भी वह पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और उसके आका मौलाना मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किए जाने की कार्रवाई को वीटो के जरिये बाधित कर चुका है। एक दशक के अथक प्रयासों के बाद मई 2019 में भारत संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवा पाने में सफल हुआ था।

1 जून को भारत और अमेरिका ने संयुक्त रूप से सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की 1267 आईएसआईएल (दाएश) और अलकायदा प्रतिबंध समिति के तहत मक्की को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कराने के लिए यूएनएससी में प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन ऐन वक्त पर चीन ने टेक्निकल होल्ड का हवाला देकर प्रस्ताव पर सहमति से इंकार कर दिया। चीन के वीटो कर दिए जाने के कारण मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने का प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। अब छह माह बाद भारत और अमेरिका को पुनः इसके लिए नए सिरे से प्रस्ताव लाना होगा। प्रस्ताव पर वीटो किए जाने से ठीक छह दिन पहले ही ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहारों की बैठक में जब आतंकवाद का मुद्दा उठा था उस वक्त चीन ने ब्रिक्स देशों से आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का वादा किया था, लेकिन अब चीन ने जिस तरह से प्रस्ताव पर वीटो किया है, उससे आतंकवाद के प्रति उसका दोहरा चरित्र एक बार फिर दुनिया के सामने उजागर हो गया है। सवाल यह है कि जिस अब्दुल रहमान मक्की को बचाने के लिए चीन फरिश्ता बनकर उसकी मदद कर रहा है। वह आखिर है कौन। अब्दुल रहमान मक्की लश्कर-ए-तैयबा के सरगना एवं 26/11 के मुंबई हमलों का मुख्य साजिश कर्ता हाफिज मोहम्द सईद का चचेरा भाई व लश्कर-ए-तैयबा जिसका नया नाम जमात-उद-दावा है, का डिप्टी कमांडर है। वह जमात-उद-दावा की अंतरराष्ट्रीय विंग और राजनीतिक प्रकोष्ठ का मुखिया है। वह पाकिस्तान इस्लामिक वेलफेयर आॅर्गेनाइजेशन अहल-ए-हदीथ से भी जुड़ा हुआ है। 1948 में पाकिस्तान के पंजाब राज्य के बहावलपुर में पैदा हुआ मक्की एक समय में सऊदी अरब के मदीना में स्थित इस्लामिक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहा है। 2017 में उसके बेटे ओवैद रहमान मक्की को जम्मू और कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मार दिया गया था। मक्की को तालिबान के सर्वोच्च कमांडर मुल्ला उमर का भी करीबी समझा जाता है। पाकिस्तान में भारत विरोधी भाषणों के लिए मक्की काफी लोकप्रिय है। भारत के खिलाफ आतंकियों को तैयार करने, उनको वितीय मदद उपलब्ध कराने तथा जम्मू व कश्मीर में अनेक आतंकी वारदातों को अंजाम देने के अलावा वह भारत में कई बड़े आतंकी हमलों में शामिल रहा है। 26/11 के मुंबई हमले व दिसंबर 2000 में लाल किले पर किए गए हमले में मक्की का नाम सामने आया है। इसी प्रकार 2008 में रामपुर कैंप व 2018 में बारामुला, श्रीनगर हमले में भी मक्की का हाथ होने के सबूत मिले हैं। साल 2019 में पाकिस्तान सरकार ने फाइनेंशियन एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का दबाव के चलते मक्की को आतंकी वारदातों को अंजाम देने के जुर्म में गिरफ्तार भी किया था। पाकिस्तान की एक कोर्ट ने मक्की को आतंकी गतिविधियों के लिए वित्तीय मदद देने का दोषी मानते हुए कारावास की सजा सुनाई है। यूस डिपार्टमेंट आॅफ स्टेटस रिवार्डस फाॅर जस्टिस प्रोगाम के तहत मक्की के बारे में जानकारी देने के लिए 2 मिलियन डाॅलर का इनाम घोषित किया हुआ है।

कोई व्यक्ति ग्लोबल टेररिस्ट है या नहीं इसका फैसला यूएन सुरक्षा परिषद करती है। परिषद में 5 स्थायी सदस्यों के अलावा दस अस्थायी सदस्य होते हैं। ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करने के लिए सभी स्थायी सदस्यों की सहमति होना जरूरी है। यूएनएससी में आतंकवाद से संघर्ष के लिए दो प्रकार की समितियां काम करती हैं। पहली, 15, अक्टूबर 1999 को यूएनएससी ने अपने प्रस्ताव संख्या 1267 के द्वारा अलकायदा और तालिबान को प्रतिबंधित करने के लिए गठित की थी, जबकि दूसरी समिति प्रस्ताव संख्या 1373(2001) और प्रस्ताव संख्या 1624( 2005) के तहत गठित की गई है। इन समितियों का मुख्य उदेश्य उक्त आतंकवादी संगठनों और उसके नेताओं पर उन प्रतिबंधों को लागू करना था जिन्हें यूएनओ के सदस्य लागू पारित करते हैं। 26/11 के बाद लश्कर-ए-तैयबा और उसके अग्रणी संगठनों के कई नेताओं को भारत के आग्रह पर इस सूची में शामिल किया गया था। इस सूची में नाम आने के बाद वह व्यक्ति ग्लोबल टेररिस्ट घोषित हो जाता है। ग्लोबल टेररिस्ट घोषित होने के बाद संबंधित व्यक्ति की संपत्ति जब्त करने, देश के भीतर और बाहर यात्रा पर प्रतिबंध लगाने और किसी भी प्रकार का हथियार रखने पर प्रतिबंध जैसी कार्रवाई की जाती है। यूएनएससी के पांच स्थायी( अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और रूस) और दस अस्थायी सदस्यों में से कोई भी सदस्य देश इस तरह का प्रस्ताव ला सकता है। सदस्य देश इस पर अपना मत रखते हैं। स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर होता है, अर्थात प्रस्ताव पर पांचों स्थायी सदस्यों का सहमत होना जरूरी होता है। अगर कोई सदस्य देश सहमत नहीं होता है, तो प्रस्ताव पास नहीं हो पाता है। प्रस्ताव आने के बाद 10 कार्य दिवसों तक इस आपत्तियां मांगी जाती हैं। अगर कोई स्थायी सदस्य आपत्ति दर्ज नहीं करवाता है, तो प्रस्ताव पास हो जाता है। एक बार आपत्ति होने के बाद प्रस्ताव छह महीने के लिए रुक जाता है। यह आपत्ति तीन महीने के लिए और बढ़ाई जा सकती है। इसके बाद फिर नए सिरे से प्रस्ताव लाया जा सकता है।

भारत को मई 2019 में संयुक्त राष्ट्र में उस वक्त बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल हुई थी जब यूएनएससी ने पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर किया था। अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करवाने की कार्रवाई में भारत को करीब एक दशक का समय लग गया था। भारत ने साल 2009, 2016 और 2017 में अजहर के विरुद्ध प्रस्ताव पेश किए थे, लेकिन चीन की हठधर्मिता के चलते भारत तीनों बार असफल हो गया था। अमेरिका आज अपने सहयोगियों व अन्य कई देशों के सहयोग से हिंद प्रशांत और साउथ चाइना सी में चीन के खिलाफ एक नई सुरक्षा व्यवस्था के निर्माण में जुटा हुआ है। दूसरी ओर अल कायदा और आईएस के रूप में बीजिंग के सामने आतंकवाद की वही चुनौतियां खड़ी हैं, जो बाकी दुनिया के सामने हैं। चीन को यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद विरोधी नीति पर दुनिया से अलग चलना भविष्य में उसके लिए पीड़ादायक हो सकता है।

(लेखक असिस्टेंट प्रोफेसर हैं ये उनके अपने विचार हैं।)

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