डॉ. रहीस सिंह का लेख : आजादी की चाहत में सड़क पर चीन

डॉ. रहीस सिंह का लेख : आजादी की चाहत में सड़क पर चीन
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चीनी विश्वविद्यालयों के छात्र क्लासरूम से बाहर निकलकर अपने कम्युनिस्ट शासन से दशकों बाद यह कहने की ताकत जुटा ले गये हैं कि ‘वायरस के नाम पर लोगों के अधिकारों पर, उनकी आजादी और जीवनयापन पर लगाई जा रही पाबंदियों का हम विरोध करते हैं।” वास्तव में चीन में इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था। लेकिन आज ऐसा हो रहा है। फिलहाल चीन सड़क की ओर बढ़ रहा है और ‘कोरे कागज’ के जरिए आंदोलन खामोशी के साथ विस्तार ले रहा है। इसके निहितार्थों का फलक बड़ा है। इसमें अभी भविष्य की आभासी झलक का अनुमान तो लगाया जाता सकता है लेकिन वास्तविकता तस्वीर अभी सामने आनी बाकी है।

डॉ. रहीस सिंह

वी डोन्ट वांट कोविड टेस्ट, वी वांट फ्रीडम', 27 नवम्बर को जब कोविड टेस्ट्स और लॉकडाउन के खिलाफ चीनी युवाओं की आवाज शंघाई की सड़कों से बीजिंग के सत्ता प्रतिष्ठान तक पहुंची होगी तो शी चिनफिंग और उनके कम्युनिस्ट जुंटा को उसने ठीक से चौंकाया अवश्य होगा। दरअसल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और चिनफिंग यह सोच भी नहीं सकते थे कि उरुमकी में एक फ्लैट में लगने वाली आग ठीक वैसे ही चीन में जन संघर्ष के उभार के लिए एपीसेंटर साबित होगी जैसी कि कभी ट्यूनीशिया में बाउजिजो जैसे एक सामान्य सब्जी व फल विक्रेता के आग लगा लेने की घटना ने अरब स्प्रिंग को जन्म दे दिया था। जो भी हो, आज शंघाई, बीजिंग, शेनझेन ...जैसे कई शहर चीनियों के प्रदर्शन के साक्षी बनकर चीन में एक नया इतिहास लिखे जाने का संकेत दे रहे हैं। विश्वविद्यालयों के छात्र क्लासरूम से बाहर निकलकर चीन के कम्युनिस्ट शासन से दशकों बाद यह कहने की ताकत जुटा ले गये हैं कि 'वायरस के नाम पर लोगों के अधिकारों पर, उनकी आजादी और जीवनयापन पर लगाई जा रही पाबंदियों का हम विरोध करते हैं।" वास्तव में चीन में इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था। लेकिन आज ऐसा हो रहा है।

सवाल यह उठता है कि चीन में ऐसा क्यों हुआ? क्या यह जनप्रतिक्रिया उरुमकी के किसी फ्लैट में आग लगने मात्र का परिणाम है जिसमें कुछ लोगों की मृत्यु हो गयी ? या फिर वजहें कुछ और हैं ? दरअसल कोविड 19 को लेकर चीन की कम्युनिस्ट सरकार शुरू से ही अविश्वसनीयता के दायरे में रही। सबसे पहले तो दुनिया ने कोविड 19 महामारी के लिए इसे ही दोषी माना। अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने तो कोविड वायरस को 'वुहान वायरस' का नाम ही दे डाला था। यह पूरी तरह से गलत भी नहीं माना जा सकता। इसका परिणाम यह हुआ कि चीन पर दुनिया का भरोसा घटा। चीन ने इसकी भरपाई जीरो कोविड नीति का छद्म प्रचार कर की। इस प्रचार से उसने दुनिया भर में एक नए बाजार का निर्माण किया जिसे कोविड टेस्ट किट - मेडिकल डिवाइस कॉम्प्लेक्स नाम दिया जा सकता है। इसमें चीन सफल भी रहा। उसकी कंपनियों ने इस बाजार से खासी कमाई भी की। उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं कि एंडन हेल्थ, जो कि शेनझेन लिस्टेड कंपनी है, ने कोविड टेस्ट और मेडिकल डिवाइस से अकेले 2022 के तीसरे क्वार्टर में गत वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 32 हजार प्रतिशत निवल लाभ (नेट प्रॉफिट) कमाया। महत्वपूर्ण बात यह है कि उसकी 35 बड़ी कंपनियां जो कि कोविड 19 टेस्ट किट बना रही हैं, 2022 के प्रथमार्द्ध में 150 बिलियन यूआन (यानि 21 बिलियन डॉलर ) के 'न्यू जेनरेशन ऑफ पैंडमिक टाइकून' के रूप में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं।

ऐसे और भी उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि चीन का कोविड इण्डस्टि्रयल कॉम्प्लेक्स जिस दौर में नए मुकाम गढ़ रहा था उसी दौर में दूसरी अर्थव्यवस्थाएं सफर कर रहीं थीं। लेकिन बाद में यह दिखने लगा कि उसकी जीरो कोविड नीति दरअसल वैश्विक बाजार पर धाक जमाने और कमाई करने का छद्म हथियार की तरह थी, जिसकी कलई कुछ समय बाद ही उतरने लगी थी। कोई भी देख सकता है कि अत्यधिक सख्ती के बाद भी वहां कोविड थमा नहीं है, इसलिए वहां की सरकार बार-बार लॉकडाउन का सहारा ले रही है। इस जीरो कोविड नीति ने चीन के लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित किया। लोग बीमारी से भले ही बच गयें हों लेकिन भूख से मरने लगे। इसे शासन की सक्षमता तो नहीं ही कहा जाएगा कि जहां कोई कोविड केस मिल गया, वहां उसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया। जैसे-अक्टूबर 2022 में डिज्नी पार्क को कोविड केस मिल जाने से अकस्मात बंद कर दिया गया। लोग फंस गये जो बाद में किसी तरह से दीवारें फांदकर भागे। यह कैसी जीरो कोविड नीति ? दूसरा यह कि विगत दस वर्षों में शी चिनफिंग कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए, लेकिन फिर भी कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति शी चिनफिंग को माओत्से तुंग के बाद सबसे ताकतवर नेता अथवा तानाशाह बना दिया।

ध्यान से देखें तो शी चिनफिंग ने उस व्यवस्था को बदल दिया है जो माओ के बाद के नेताओं ने कई दशकों में निर्मित की थी। शी चिनफिंग ने उसे पूरी तरह से बदल दिया। अब वे तीसरे कार्यकाल के साथ पार्टी के सर्वशक्तिमान नेता बन गये है लेकिन सच यही है कि शी चिनफिंग अभी भी उस सपने से बहुत दूर खड़े हैं जो उन्होंने दस वर्ष पहले चीनियों के सामने रखा था। इसके बदले में कम्युनिस्ट पार्टी उन्हें क्रांति दूत के रूप में पेश करने की कोशिश पिछले काफी समय से कर रही है। आज शी चिनफिंग का दर्जा डेंग श्याओपिंग ही नहीं बल्कि शायद माओ से भी ऊपर उठ चुका है। कारण यह कि माओ त्से तुंग इतिहास हैं और शी चिनफिंग वर्तमान। ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी शी चिनफिंग की उन नीतियों पर आंख बद कर मुहर लगाती रह सकती है जो एक तरफ रेड कार्पेट पर विदेशी उद्यमियों एवं मित्रों का 'ग्रेट हाल ऑफ द पीपल्स' में स्वागत करती रहें और दूसरी तरफ आम चीनी जनता के बीच शी चिनफिंग को ड्रैगन के नए अवतार में पेश करती रहें। हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी ऐसा करने में असफल रही।

हालांकि शी चिनफिंग इसके बावजूद भी 'ड्रीम चाइना' का वादा कर सत्ता पर पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब हुए। लेकिन ब्रिटेन की एक प्रतिष्ठित मैगजीन लिखती है कि चीन की आम जनता उन्हें इस पर पूरी तरह से विफल मान रही है। चीन के लोग मानते हैं कि सख्त जीरो कोविड नीति के तहत सख्ती से किए गये लॉकडाउन ने उनकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। नागरिकों की तरफ से भारी विरोध न हो इसके लिए नागरिक अधिकारों का दमन आवश्यक है। सरकार वह करती भी रही और इस उद्देश्य से आंतरिक स्थितियों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार का विरोध करने वालों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किए गये। इसके विकल्प के रूप में सोशल मीडिया पर विरोध शुरू हुआ जिससे चीनी सरकार की बेचैनी बढ़ गयी। उल्लेखनीय है कि चीन की सोशल मीडिया साइट 'वीबो' पर मंडारिन में सरकार विरोधी पोस्ट हटा दिए जाते हैं।

इसे देखते हुए यूजर्स ने चीन के अधिकारियों को समझ में न आने वाली हांगकांग की 'कैंटोनीज' भाषा का उपयोग करना शुरू कर दिया है ताकि चीनी अधिकारी उसे समझ न सकें। ऐसा माना जा रहा है चीनी अधिकारी इस कैंटोनीज नामक सीक्रेट भाषा को डिकोड नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि यूजर्स ने इसे आपस में समझने के दृष्टि से विकसित किया है। अब लोगों ने चिनफिंग के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी। किसी भी चीनी राष्ट्रपति के लिए यह अनूठा और दुर्लभ संयोग माना जाएगा। फिलहाल चीन सड़क की ओर बढ़ रहा है और 'कोरे कागज' के जरिए आंदोलन खामोशी के साथ विस्तार ले रहा है। इसके निहितार्थों का फलक बड़ा है। इसलिए इसमें अभी भविष्य की आभासी झलक का अनुमान तो लगाया जाता सकता है लेकिन वास्तविकता तस्वीर अभी सामने आनी बाकी है। हां लोग यह शंका अवश्य कर रहे हैं कि चीन कहीं सांस्कृतिक क्रांति के नए दौर में न प्रवेश कर जाए क्योंकि यह विरोध एक दुर्लभ वैश्विक आंदोलन के रूप लेता हुआ दिखायी दे रहा है।

( लेखक विदेशी मामलों के जानकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )

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