अडाणी पर कांग्रेस की हकीकत

भारतीय कारोबार जगत की फितरत है कि जब भी कोई कारोबारी घराना उभरता है, उसकी सफलता को खास नजरिए से देखा जाता है। यह पहला मौका नहीं है, जब अडाणी जैसा कोई कारोबारी निशाने पर है। पिछली सदी के नब्बे के दशक को याद कीजिए। तब अंबानी घराना ऐसे ही निशाने पर रहता था। तब रिलायंस इंडस्ट्रीज के उभार पर सवाल उठते थे। सवाल तो उस बिरला घराने पर भी उठे हैं, जिसके प्रमुख घनश्याम दास बिरला गांधी जी के नजदीकी थे। यह भी दिलचस्प है कि अडाणी घराने की कंपनियां राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों के साथ काम कर रही हैं। फिर भी कांग्रेस के आलाकमान के निशाने पर अडाणी हैं।
हुल गांधी की अगुआई में जारी अभियान के चलते उद्योगपति गौतम अडाणी अरसे से चर्चा में हैं। जिस हिंडनबर्ग रिपोर्ट की वजह से अडाणी राहुल गांधी समेत तकरीबन समूचे नरेंद्र मोदी विरोधी राजनीतिक खेमे के निशाने पर हैं, उस रिपोर्ट पर मराठा दिग्गज शरद पवार ने सवाल उठा दिया है। शरद पवार ने कहा है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के पीछे विशेष एजेंडा की आशंका है। पवार के इस आरोप के बाद विपक्षी खेमे को सूझ नहीं रहा कि वह अडाणी मामले को किस हद तक आगे ले जाए।
भारतीय कारोबार जगत की फितरत है, जब भी कोई कारोबारी घराना उभरता है, उसकी सफलता को सिर्फ और सिर्फ खास नजरिए से देखा जाता है। यह पहला मौका नहीं है, जब अडाणी जैसा कोई कारोबारी निशाने पर है। पिछली सदी के नब्बे के दशक को याद कीजिए। तब अंबानी घराना ऐसे ही निशाने पर रहता था। दिलचस्प यह है कि तब रिलायंस इंडस्ट्रीज के उभार पर सवाल उठते थे। सवाल तो उस बिरला घराने पर भी उठे हैं, जिसके प्रमुख घनश्याम दास बिरला गांधी जी के नजदीकी थे। पिछली सदी के साठ के दशक में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के राज्यसभा सदस्य रहे बालकृष्ण गुप्ता ने बिरला को बेजा फायदे पहुंचाने को लेकर ना सिर्फ तब सोशलिस्टों के प्रमुख पत्र जन में धारावाहिक तौर पर लिखा था, बल्कि राज्यसभा में उस पर चर्चा की मांग की थी। बालकृष्ण गुप्त के उन भाषणों का संग्रह पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है।
वैसे अडाणी पर यह पहला मौका नहीं है, जब आरोप लगा है। यह भी दिलचस्प है कि अडाणी घराने की कंपनियां राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों के साथ काम कर रही हैं। फिर भी कांग्रेस के आलाकमान के निशाने पर अडाणी हैं। कुछ महीने पहले छत्तीसगढ़ के हसदेव इलाके में जारी खनन को लेकर अडाणी पर सवाल उठे थे। बीते साल दिसंबर महीने में एक- दो दिन छोड़कर लगातार अडाणी घराना निशाने पर रहा। भारत सरकार की नीतियों के अनुसार छत्तीसगढ़ की कोयला खदानों को राज्यों के बिजली बोर्डों को कैप्टिव पावर प्लांट को कोयले की सप्लाई के लिए दिया गया था। उनमें राजस्थान सरकार के निगम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को छत्तीगढ़ जंगल में खदाने आवंटित की गई। दिसंबर में आरोप लगा कि परसा केते खदान से कोयला निकालने के लिए अडाणी की कंपनी से जो समझौता किया है, उसके तहत राजस्थान सरकार अडाणी पर मेहरबान है।
छत्तीसगढ़ की सिविल सोसायटी की ओर से यह आरोप लगा कि जनवरी 2021 से दिसंबर 2021 के बीच परसा केते माइन्स से एक लाख 87 हजार 579 डब्बे कोयले की ढुलाई हुई। जिसमें राजस्थान को 49 हजार 229 वैगन कोयला नहीं गया। बल्कि मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों की कंपनियों को गया, जिसमें अडाणी ने मोटा मुनाफा कमाया। लेकिन अडाणी एंटरप्राइजेज का कहना है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के साथ हुए समझौते के तहत उसकी भूमिका बेहद सीमित है। उसका काम परसा और केंते खदान से निकलने वाले वाश्ड कोयले की ढुलाई राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के उन ताप विद्युत केंद्रों को करना है, जिन्हें निगम कहता है। इसलिए उस पर ऐसे आरोप बेहद निराधार हैं। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित परसा-केते कोयला ब्लॉक से कैप्टिव पावर प्लांट के लिए 2013 से ही कोयला निकाला जा रहा है, जिसमें करीब डेढ़ हजार स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है। अडाणी एंटरप्राइजेज का कहना है कि कंपनी छत्तीसगढ़ सरकार के दिशा निर्देशों और राजस्थान बिजली बोर्ड के आदेशानुसार सिर्फ कोयले की ढुलाई करती है।
अडाणी पर आरोप लगता रहा है कि हसदेव क्षेत्र के जंगल को भी उनकी कंपनियां नुकसान पहुंचा रही हैं, लेकिन अडाणी एंटरप्राइजेज का कहना है कि खदान का काम पर्यावरण मंत्रालय और छत्तीसगढ़ सरकार के दिशानिर्देशों के मुताबिक होता है। इसके लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने 38 सौ हेक्टेयर जमीन पर खदान की अनुमति छत्तीसगढ़ सरकार से ली है और इसके लिए निर्धारित शुल्क भी निगम ने ही चुकाया है। इसलिए अडाणी एंटरप्राइजेज की भूमिका पर सवाल कैसे उठता है, यह समझ के परे है। समझौते के मुताबिक, अगर एक पेड़ खुदाई कार्य के लिए काटा जाता है तो उसके बदले साठ पेड़ लगाने होते हैं। अडाणी एंटरप्राइजेज ऐसा कर रहा है। इसे दिखाने को भी एंटरप्राइजेज तैयार है।
छत्तीसगढ़ सरकार के दिशा निर्देश के मुताबिक खदान वाले इलाके में कारपोरेट सोशल रिस्पॉंसबिलिटी के लिए काम करने की जिम्मेदारी अडाणी एंटरप्राइजेज को है। इसके तहत अडाणी फाउंडेशन इलाके में लगातार कार्य चला रहा है, जिसके तहत अडाणी विद्या मंदिर नाम से इलाके में स्कूल चल रहा है, जिसमें स्थानीय समुदाय के करीब 800 बच्चे पढ़ रहे हैं। उन्हें मुफ्त में वर्दी, किताब-कॉपी समेत तमाम स्टेशनरी, दोपहर का खाना और घर से स्कूल लाने-ले जाने के लिए वाहन की सुविधा भी दी जा रही है। अडाणी फाउंडेशन इलाके में कौशल विकास कार्यक्रम भी चला रहा है। जिसके तहत वह करीब चार हजार स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित कर चुका है। इतना ही नहीं, इन युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए कैंपस प्लेसमेंट कार्यक्रम भी चला रहा है। अडाणी फाउंडेशन खनन वाले इलाकों में अच्छी सड़कें, स्कूल भवन, सामुदायिक भवन, आदि बनवा रहा है या बनवा चुका है। इसके साथ ही पानी की आपूर्ति के साथ ही मोबाइल अस्पताल भी चला रहा है।
अडाणी फाउंडेशन और अडाणी एंटरप्राइजेज का कहना है कि बयानबाजी करना और सवाल उठाना अलग बात है, लेकिन हकीकत कुछ और है। उसका कहना है कि उसे जो काम राजस्थान बिजली बोर्ड के बिजली उत्पादन निगम से मिला है, उसे वह निभा रहा है। उसका काम सिर्फ कोयले को राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के निर्धारित और निर्देशित केंद्रों तक पहुंचाना है और इसी काम को वह अंजाम दे रहा है। पिछले साल अक्टूबर में राजस्थान में हुए निवेशक सम्मेलन में गौतम अडाणी ने राजस्थान में 65 हजार करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की थी। तब अडाणी की कंपनियों पर कुछ देर के लिए आरोप थमे थे। वैसे गौतम अडाणी एक प्रमुख प्रकाशन समूह को विशेष साक्षात्कार देकर अपना पक्ष रख चुके हैं, इसके बावजूद हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर संसदीय और राजनीतिक हंगामा नहीं थमा, लेकिन लगता है कि शरद पवार के बयान के बाद अब विपक्षी राजनीति अडाणी के मुद्दे पर पहले की तरह संगठित नहीं रह पाएगी। अडाणी की कंपनियों की ओर से आई सफाई और पवार के बयान के बाद शायद राजनीति कुछ हद तक थमे...
उमेश चतुर्वेदी (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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