अवधेश कुमार का लेख : जेहादी आतंक के खतरे को समझे कांग्रेस

अवधेश कुमार
अब जबकि संसद का मानसून सत्र शुरू हो गया है। पहले ही दिन से राष्ट्रपति चुनाव के बीच संसद में कांग्रेस आक्रामक दिख रही है। इस आक्रामकता के पीछे कांग्रेस की जो भी रणनीति हो, लेकिन यह अनायास नहीं है। कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, अग्निपथ और सीमा पर चीनी सैनिकों की घुसपैठ आदि मुद्दों पर संसद में सरकार को घेरना चाहती है, लेकिन तरीका आक्रामक है। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस ने अचानक 22 राज्यों में प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा की थी तो धारणा यही बनी कि कुछ बड़ा होने वाला है। कांग्रेस की दृष्टि में उसने भाजपा की जबरदस्त घेराबंदी की। केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी पर आतंकवादियों से सीधा रिश्ता होने के साथ आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिलवाने के आरोप से बड़ा कुछ नहीं हो सकता बशर्ते उनमें दम हो। प्रश्न यही है कि कांग्रेस ने इतने बड़े स्तर पर भाजपा को आतंकवाद के मामले में दोषी ठहराने के लिए पत्रकार वार्तायें क्यों आयोजित की थी? कांग्रेस ने मुख्यतः तीन आरोप लगाए। पहला, उदयपुर में कन्हैयालाल के हत्यारों में से एक रियाज अख्तरी भाजपा कार्यकर्ता है। दूसरे, अमरावती में केमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या का मुख्य सूत्रधार इरफान खान का निर्दलीय सांसद नवनीत राणा व उनके पति रवि राणा के साथ संबध थे और दोनों भाजपा के समर्थन से चुनाव जीते हैं। तीसरे, जम्मू कश्मीर में जनता द्वारा पकड़े गए लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकवादियों में से एक तालिब हुसैन शाह भाजपा के जम्मू कश्मीर अल्पसंख्यक मोर्चा के आईटी प्रकोष्ठ का प्रभारी है। इसके आधार पर कांग्रेस का आरोप लगाया कि भाजपा आतंकवादियों को पार्टी में लाती है और मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए हमले करवाती है। इस तरह कांग्रेस ने भाजपा को उस मुद्दे पर घेरने की कोशिश की है जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा तथा संघ परिवार की सबसे बड़ी यूएसपी है। क्या कांग्रेस के आरोपों को देश स्वीकार कर लेगा?
अदना आदमी भी राजस्थान की स्थिति देखकर स्वीकार करेगा कि उदयपुर घटना में अशोक गहलोत सरकार के लिए जन आक्रोश के बीच अपना बचाव कठिन है। यह जन आक्रोश का दबाव ही था कि गहलोत कन्हैयालाल के घर गए और 50 लाख का चेक दिया। जनता का आक्रोश नहीं होता तो गहलोत शायद ही जाते। गहलोत और उनकी पूरी सरकार घटना के कुछ समय बाद तक इसे सामान्य हत्या बता रही थी। वीडियो आने के बाद गहलोत सरकार एवं कांग्रेस के पास जवाब देने को कुछ था नहीं। स्पष्ट था कि कन्हैयालाल के फेसबुक पर नूपुर शर्मा के समर्थन का एक पोस्ट शेयर होने के बाद उसे जान से मारने की धमकियां मिली जिसकी सूचना स्थानीय पुलिस को थी और पुलिस ने दबाव डालकर उन लोगों के साथ समझौता कराया जो अपने जेहादी तौर तरीकों से हत्या का निर्णय कर चुके थे। इससे बड़ी विफलता राजस्थान पुलिस और खुफिया की कुछ हो नहीं सकती। बाद में पुनः धमकियां आई, पर दी हुई छोटी सुरक्षा वापस ले ली गई थी। जाहिर है, उसकी हत्या प्रदेश पुलिस की विफलता है और पुलिस राजनीतिक नेतृत्व की चाहत के अनुसार ही काम करती है। राजस्थान की आम जनता मानने को विवश है कि अशोक गहलोत सरकार ने वोट की लालच और स्वयं को सेकुलरवादी साबित करने के लिए बढ़ते मुस्लिम कट्टरवाद की न केवल अनदेखी की बल्कि चिन्हित कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई न करके उनका मनोबल बढ़ाया। इसी का परिणाम उदयपुर एवं इसके पहले की हत्याएं और हिंदू शोभा यात्राओं पर हुए हमले हैं। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार में कांग्रेस थी और इस्लामिक कट्टरवाद के प्रति उसकी नीति छिपी नहीं है। अमरावती हत्या और हिंदुओं को आ रहे धमकी भरे फोन के कारण पूरा प्रदेश उद्वेलित है। सच कहें तो पूरे देश में गुस्सा है। राजस्थान में हुए प्रदर्शन और 9 जुलाई को राजधानी दिल्ली में स्वतःस्फूर्त विशाल जन प्रदर्शन इसके प्रमाण हैं।
लगातार जन समर्थन खोती एवं दुर्बल होती कांग्रेस को इसका आभास होगा कि उसके लिए यह आगामी विधानसभा चुनावों एवं 2024 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा आघात साबित हो सकता है। इसलिए उसने रणनीति के तहत भाजपा पर जवाबी हमले किए ताकि जिहादी कट्टरवाद और आतंकवाद की अनदेखी करने के व्यवहार पर प्रश्न न उठाया जा सके। कोई प्रश्न उठाएगा तो कहा जाएगा कि जब उदयपुर से जम्मू कश्मीर तक के आतंकवादी भाजपा के लोग हैं तो हमारा कहां दोष है? आईएस, तालिबान और अन्य ऐसे जेहादी आतंकवादी संगठनों की शैली में हुई हत्याओं और हत्याएं करने की धमकियों के बाद सभी पार्टियों को जेहादियों और जेहादी आतंकवाद के प्रति अपनी नीति- राजनीति पर पुनर्विचार कर संशोधन परिवर्तन करना चाहिए था। भयंकर भूल स्वीकारने की बजाए आतंकवाद की ऐसी जघन्य घटनाओं के लिए भी कांग्रेस भाजपा को दोषी साबित कर रही है। यह स्थिति दिल दहलाने वाली है। अमेरिका में डेमोक्रेट और लिबरल एक समय जॉर्ज बुश की नीतियों की खिल्लियां उड़ाते थे। जब अमेरिकी ठिकानों पर हमले शुरू हो गए तो उन्हें भूल का एहसास हुआ। डेमोक्रेट ने भी भूल सुधारी, आक्रामक नीति अख्तियार की तथा आरोप-प्रत्यारोप का दौर खत्म हुआ। भारत में इसके उलट स्थिति है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। अगर भाजपा में कोई कट्टरपंथी जेहादी है तो इसकी भनक खुफिया पुलिस को होनी चाहिए? शोभा यात्राओं पर हमले के बाद साफ हो गया था कि राजस्थान में जेहादी तत्व मजबूत हैं एवं आम मुसलमानों के बीच उनकी पैठ हो चुकी है। बावजूद पुलिस ने छानबीन कर जड़ तक पहुंचने की कोशिश नहीं की। जब गहलोत हर घटना के लिए संघ, भाजपा को जिम्मेदार ठहराएंगे तो उनकी पुलिस और खुफिया इसके विपरीत जाकर सच्चाई सामने नहीं लाएगी। तो मुख्य कारण गहलोत सरकार की यही नीति है। इसी कारण उदयपुर पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझने की कोशिश नहीं की, धमकी देने वाले को पकड़ने की बजाय मुक्त छोड़ दिया व कन्हैयालाल की ही सुरक्षा हटा दी। महाराष्ट्र में नवनीत राणा के विरुद्ध जिस ढंग की कार्रवाई हुई और उनके गैरकानूनी रिश्ते तलाशे गए। बावजूद जिहादी तक जांच नहीं पहुंची। छानबीन होती तो शायद वह व्यक्ति पकड़ा जाता और उमेश कोल्हे की हत्या नहीं होती। जब कांग्रेस और राकांपा के प्रभाव में उद्धव और उनके नेतृत्व वाली शिवसेना मानने को तैयार नहीं थी कि जेहादी कट्टरपंथ व आतंकवाद जड़े जमा चुका है तो कार्रवाई होती कैसे?
लगता है कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक आत्महत्या करने का प्रण ले लिया है। देश में मजहबी कट्टरवाद और जेहादी सोच के विरुद्ध आक्रोश है और कांग्रेस ने ऐसी पत्रकार वार्ताओं से अपने विरुद्ध उसमें घी डालने की भूमिका निभा लिया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि लंबे समय शासन करने वाली पार्टी जेहादी आतंकवाद के खतरे को न समझ कर खतरनाक और आत्मघाती बचकाना राजनीति कर रही है जो उसके ही लिए घातक होगा। अब संसद में भी हंगामा की राजनीति करती दिख रही है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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