सीताराम व्यास का लेख : बदला नहीं जा सकता संविधान

सीताराम व्यास
वर्ष 2014 में स्पष्ट बहुमत के साथ नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्ता में आई। विरोधी दलों ने भारतीय जनता पार्टी तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आरोप लगाना प्रारम्भ किया कि इनका संविधान बदलने का एजेंडा है। प्रश्न उठता है कि जो संविधान बदलने की चर्चा करते हैं; उनको जानकारी है कि संविधान क्या है? आरोप लगाने वाले क्या संविधान शब्द का अर्थ जानते हैं? संविधान कोई किताब नहीं है जो बदली जा सकती है। जो संविधान बदलने की बात करते हैं वे लोग हैं जिन्होंने आपातकाल में बयालीसवां संशोधन करके दूसरा लघु संविधान बना दिया। उस समय हमारे गणतंत्र को वंशवाद बना दिया था। अगर बयालीसवां संशोधन बना रहता तो एक नया संविधान अस्तित्व में आता; पर जनता पार्टी की सरकार ने बयालीसवें संशोधन को निरस्त कर दिया। इस घटना का इतिहास साक्षी है।
हमारे संविधान का तत्वज्ञान प्रस्तावना में निहित है। इसमें स्पष्ट बताया गया है कि 'हम भारत के लोग' सार्वभौम है। यह जनता ही शासनकर्ताओं को अधिकार सौंपती है। हमारे संविधान का अध्ययन करने से ध्यान में आता है कि संविधान में परिस्थिति अनूकुल संशोधन किया जा सकता है, पर बदला नहीं जा सकता। केशवानन्द भारती फैसले से स्पष्ट हो जाता है कि संविधान को बदला नहीं जा सकता, इसलिए संविधान बदलते जाने की भाषा बोलने वालों का राजनीतिक स्टंट है। जो राजनेता संविधान बदलने की भाषा बोलता है उसके पीछे की दूषित मनोवृति सत्ता सुख से वंचित हो जाना है। हमारा देश सदियों तक सुल्तानों, मुगलों तथा अंग्रेजों के अधीन रहा। सुलतान और मुगल अपनी सनक और कुरान से शासन चलाते थे। अंग्रेज आर्थिक हित को देखकर राज्य करते थे। हम स्वाधीन हुए और स्वराज मिला। अपना शासन चलाने के लिए जनहित को ध्यान में रखकर कानून बने। व्यक्ति की स्वतंत्रता ओर लोककल्याण, न्याय के लिए संविधान की आवश्यकता होती है। अपना देश मुसलमानों की गुलामी से पूर्व राजधर्म के अनुसार चलता था। इस राजधर्म को अब संविधान कहते हैं। हमारे संविधान वेताओं ने दो वर्ष ग्यारह महीने अट्ठारह दिन में संविधान को बना दिया और 26 जनवरी 1950 को देश में लागू कर दिया। सदियों पुराना हमारा गणतंत्र नए परिवेश में आकर खड़ा हो गया।
संविधान बदलने का आरोप लगाने वालों ने 2019 के चुनाव को अंतिम सार्वजनिक चुनाव होना बताया। इसके पीछे उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ दुष्प्रचार करना था। ऐसे लोग आधा अधूरा ज्ञान रखने वाले होते हैं और उनका अपना स्वार्थ होता है। संघ पर आरोप जड़ने वाले लोगों को यह पता नहीं है कि संघ सांस्कृतिक क्षेत्र में काम कर रहा है। उनका काम चुनाव लड़ना और सत्ता हथियाना नहीं है। संघ का मूलभूत कार्य संस्कार युक्त, देशभक्त, चरित्रवान नागरिकों का निर्माण करना है। इनका कार्य हिन्दू समाज में आयी कुरीतियों को दूर कर समाज में समता और ममता के भाव को जागरण करना है। लोकतंत्र में जिस दल को जनता सत्ता सौंपती वह शासन चलाता है। इस सारे प्रकरण में संघ कहीं भी नहीं आता। संविधान राज्य से संबंधित है। राज्य के तीन प्रकार के काम है- कानून बनाना, कानून को लागू करना एवं न्याय प्रदान करना। हमारे देश की जनता के विवेक पर निर्भर है कि वह किसको सत्ता सौंपती है। भारत का संविधान सर्वोच्च कानून है। इस सर्वाेच्च कानून को कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। हमारे देश में संविधान के अनुसार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद, मंत्री मंडल कार्य करते हैं। इनमें से कोई भी संवैधानिक नियम का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो सर्वोच्च न्यायालय रोक देता है। कभी-कभी लोकतंत्र में मतदान के जरिये तानाशाही प्रवृत्ति के शासन चुन लिए जाते हैं। जैसे भारत में 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने 'गरीबी हटाओ' का नारा देकर बहुमत प्राप्त कर लिया। 1970 से 1977 का कालखंड भारत के इतिहास में सुखद नहीं रहा। देश में महंगाई प्रचंड मात्रा में बढ़ी। भ्रष्टाचार भी चरम सीमा पर था। बाबू जयप्रकाशनारायण के नेतृत्व में नवनिर्माण आन्दोलन आरम्भ हुआ। दूसरी तरफ 1973 में केशवानन्द भारती मामले का निर्णय आया। सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनों की समीक्षा का अधिकार अपने पास रखा। इधर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जेएमएल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को चुनाव में भ्रष्टाचार मामले में दोषी करार देकर छह वर्ष तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इंदिरा गांधी को इस्तीफा देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। इंदिरा गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने स्थगनादेश दे दिया। फैसले में लिखा कि वह प्रधानमंत्री पद पर रह सकती है। यह फैसला 24 जून 1975 को सुनाया गया और 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी गई। 25 जून 1975 की अर्द्धरात्रि के पश्चात विपक्षी दलों के नेताओं (अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई, बाबू जयप्रकाशनारायण, लाल कृष्ण आडवानी, बीजू पटनायक इत्यादि) को जेल में अनिश्चित काल के लिए डाल दिया। इसके साथ संघ पर प्रतिबन्ध लगाकर सरसंघचालक बालासाहब देवरस एवं कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया। 25 जून 1975 हमारे संविधान का काला दिवस था। इंदिरा गांधी ने एक प्रकार से अपने पिता की विरासत को धब्बा लगाया। यह इसलिए उल्लेखनीय है कि संविधान को बनाने में पंडित नेहरू का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्हीं की पुत्री ने संविधान को अपने सत्ता सुख के लिए तोड़ मरोड़ कर रख दिया। 1975 के आपातकाल का वर्णन लिखने का मकसद केवल इतना ही हे कि जो मोदी सरकार और संघ पर संविधान बदलने का आरोप लगाने वाले राजनेता उसी मानसिकता के लोग हैं जिन्होंने 1975 में संविधान को ताक में रहकर सत्ता सुख भोगा और भारत के गणतंत्र को एक परिवार की चौखट में बन्दी बना दिया। संघ का कोई राजनीतिज्ञ एजेंडा भी नहीं है। जिन लोगों को सत्ता प्राप्त नहीं करनी, सत्ता चलानी नहीं वे संविधान बदलने का कार्य क्यों करेंगे। संविधान की आत्मा 'हम भारत के लोग' में निवास करती है।
हमारे संविधान को लागू हुए 72 वर्ष हो चुके हैं। प्राचीन राष्ट्र की परम्परा में यह छोटा काल खंड ही माना जायेगा। इस कालखंड में हमारा गणतंत्र निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। हमारे संविधान ने भारत को सार्वभौम प्रभुसत्ता सम्पन्न लोकतंत्र बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारा देश विविधता से परिपूर्ण है; इसको एक सूत्र में बांधने वाला हमारा संविधान है। हमारा संविधान ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का द्योतक है। यह संविधन भारत को वैश्विक स्तर पर गौरवपूर्ण स्थान दिलाने वाला है। भारत के संविधान का बनना एक ईश्वरीय विधान है। विश्व मंगल कामना का विधान है। भारत को एकता, अखंडता, बन्धुत्व के त्रिसूत्र में बांधने वाला संविधान है, इसलिए संविधान को बदलना थोथा प्रलाप है। हमारा संविधान बदला नहीं जा सकता परिस्थिति अनुसार संशोधित किया जा सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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