बंडारू दत्तात्रेय का लेख : बाधा दूर कर नए अवसरों का सृजन

सामाजिक न्याय हमारे सामूहिक संकल्प और कार्रवाई के मूल में है, ताकि बिना किसी को पीछे छोड़ते हुए संपूर्ण विकास हासिल किया जा सके। 20 फरवरी, 2023 का दिन विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप से ‘सामाजिक न्याय की राह में आने वाली बाधाओं को दूर कर नए अवसरों के सृजन‘ के रूप में मनाया जा रहा है। यह सभी जरूरतमंदों के साथ संवाद कायम कर वैश्विक प्रयासों के अनुरूप समावेशी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने के संकल्प के लिए उत्तम अवसर है। इस समावेशन के माध्यम से समाज के सभी वर्गों का सशक्तिकरण सुनिश्चित करना होगा। यद्यपि प्राचीन काल से बिना किसी भेदभाव के एक समान मानवीय विकास सामाजिक विमर्श का एक अभिन्न अंग रहा है, परंतु समकालीन वर्षों के आर्थिक और सामाजिक संकटों को देखते हुए सामाजिक न्याय की आवश्यकता बहुत अधिक महसूस की जा रही है।
विशेषज्ञ इस बात पर लगभग एकमत हैं कि दलितों के सशक्तिकरण के बिना समाज का सतत विकास संभव नहीं है। चुनौती न केवल लोगों की दैनिक समस्याओं का समाधान करने की बल्कि उन्हें समग्र रूप से सशक्त बनाने की भी है। इसके लिए, हमें गरीबी, लैंगिक असमानता, बेरोजगारी, मानवाधिकारों के दुरुपयोग और समाज के कमजोर वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनी होगी एवं स्वतंत्रता, सम्मान तथा नैतिक मूल्यों के संबंध में बिना किसी भेदभाव के एक पूर्ण समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है केवल तभी इन समस्याओं का समाधान कर मनुष्य को आर्थिक और सामाजिक विकास के पथ पर आगे ले जाया जा सकता है। सामाजिक न्याय की बात करते हुए स्वामी विवेकानंद द्वारा की गई कुछ प्रमुख टिप्पणियों का उल्लेख करना जरूरी है, जिसमें उन्होंने अनुभव किया कि भारत के पिछड़ेपन का प्रमुख कारण यह था कि देश के लिए वास्तविक संपदा उत्पन्न करने वाले मेहनतकश वर्ग और महिलाओं की न केवल उपेक्षा की गई। उन्होंने कहा ‘जब तक लाखों लोग भूख और अज्ञानता में रहते हैं, तब तक मैं हर उस हर व्यक्ति को देशद्रोही मानता हूं, जो उनका शोषण कर उनके खर्चे पर शिक्षित होने के बावजूद भी उन पर तनिक भी ध्यान नहीं देता है।’ उन्होंने यहां तक कहा ‘पहले महिलाओं को शिक्षित करो और उन्हें उनके ऊपर छोड़ दो, फिर वे आपको बताएंगी कि उनके लिए कौन से सुधार आवश्यक हैं।’ हमारे पुराण और दर्शन हमें मानवीय संबंधों और न्याय के बारे में कई मूल्यवान बातें सिखाते हैं। पुराणों से हमें पता चलता है कि आत्मा के स्तर पर हम सभी एक समान हैं, परंतु व्यवहार में हम समाज के निचले तबके के लोगों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार करते हैं। सरकार के अस्पृश्यता के विरुद्ध सख्त कानूनों के बावजूद अस्पृश्यता संबंधी घटनाओं के बारे में सुनते हैं, जहां लोगों को मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, बसवेश्वर,अरबिंदो घोष, राजाराम मोहन राय, महर्षि दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी और वीराशलिंगम पंतुलु जैसे कई समाज सुधारकों ने दलितों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे काफी हद तक सफल हुए लेकिन पूरी तरह नहीं। सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता और गरीबी उन्मूलन से जुड़ा है। हमारे देश में, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों ने पिछले दशकों में बहुत सारी असमानताओं का सामना किया है। यह एक तथ्य है कि उन्हें उचित शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलती हैं। उनमें योग्यता की कोई कमी नहीं है। सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण डॉ बीआर अम्बेडकर के जीवन का है।
डॉ अंबेडकर बहुत ही विनम्र पृष्ठभूमि से थे। उन्हें स्कूलों और कॉलेजों में कई अपमानों, असमानताओं और छुआछूत का शिकार होना पड़ा, लेकिन उन्होंने बड़ी दृढ़ता के साथ अध्ययन किया और दुनिया के तीन सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने जो संविधान लिखा वह समावेश के माध्यम से सशक्तिकरण के हमारे प्रयासों में मील का पत्थर साबित हुआ है। अस्पृश्यता निवारण के लिए काम करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले हम सभी के लिए एक मिसाल बने। सामाजिक न्याय का अर्थ है कि जाति, धर्म, लिंग के भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत विकास के लिए समान अवसर प्रदान किया जाए। सामाजिक न्याय की अवधारणा सामाजिक समानता की नींव पर आधारित है। हमारे संविधान ने हमें यह अवधारणा दी है कि सामाजिक न्याय केवल उसी समाज में प्राप्त किया जा सकता है, जहां मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण न किया जाता हो। हमारे संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 17 भी संविधान की प्रस्तावना में अच्छी तरह से निहित सामाजिक न्याय के विचार को दर्शाते हैं। देश की जनता को इस तथ्य को समझना चाहिए कि कुछ अराजक शक्तियां इन अंतर्विरोधों का निहित स्वार्थों के लिए उपयोग कर रही हैं।
यह खुशी का विष्य है कि केंद्रीय बजट की सात प्राथमिकताओं-सप्तऋषि-में समावेशी विकास, अंतिम मील तक पहुंचना, बुनियादी ढांचा और निवेश, क्षमता को उजागर करना, हरित विकास, युवा शक्ति और वित्तीय क्षेत्र शामिल हैं। केंद्र सरकार अगले तीन वर्षों में 3.5 लाख आदिवासी छात्रों के लिए बनने वाले 740 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के लिए 38,800 शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की भर्ती करेगी। जैसे कि भारत सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर परस्पर सामाजिक समन्वयता रखते हुए समाज के सभी वर्गों की समृद्धि को सुनिश्चित करते हुए दुनिया का नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़ता है, तब हमें एक बेहतर सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य, शिक्षा और उद्योग जैसे विभिन्न निजी क्षेत्रों में भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के रोजगार के लिए उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। औद्योगिक घरानों को स्वेच्छा से आगे आना चाहिए और उन्हें समाज के इन कमजोर वर्गों को रोजगार के अवसरों में वरीयता देनी चाहिए।
सामाजिक न्याय तभी संभव है जब हर मामले में समानता हो। समाज के सभी वर्गों के सांस्कृतिक, सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक के एक समान कल्याण से ही अंतिम मील के विकास का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। यह सच है कि पांचों अंगुलियां बराबर नहीं हो सकतीं, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे समान रूप से शक्तिशाली हों और सभी उनका सम्मान करें। किसी भी सामाजिक समूह के साथ उनकी जाति, धर्म और आर्थिक संपन्नता के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। गरीबों को सर्वोत्तम सुविधाओं और अवसरों से रूबरू कराकर उन्हें और सम्पन्न बनाने के प्रयास शुरू किए जाने चाहिए।
(लेखक प्रदेश के राज्यपाल हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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