डॉ. अश्विनी महाजन का लेख : ई-ट्रांसमिशन पर कस्टम ड्यूटी जरूरी

डॉ. अश्विनी महाजन का लेख :  ई-ट्रांसमिशन पर कस्टम ड्यूटी जरूरी
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ई-उत्पादों पर यह टैरिफ स्थगन वास्तव में अमेरिका, यूरोपीय देशों और चीन को लाभान्वित करते हुए आत्मनिर्भर भारत के हमारे प्रयासों को नुक़सान पहुँचा रहा है। विश्व व्यापार संगठन के 12 वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की शुरुआत में, भारत के वाणिज्य मंत्री ने कहा थ्ाा, “मुझे लगता है कि 24 वर्षों से जारी इस स्थगन की समीक्षा की जानी चाहिए और इसका पुनरावलोकन होना चाहिए। जब ऐसे सभी ई-उत्पादों को बिना किसी शुल्क के आयात किया जाता है, तो उन्हें स्वदेशी उत्पादन प्रभावित होता है। भारत में 30 अरब यूएस डॉलर के ई-उत्पाद आयात किए जा रहे हैं। 10 फीसदी टैरिफ भी लगा दिया जाए तो भारत को 3 अरब डॉलर का राजस्व मिलेगा।

डॉ. अश्विनी महाजन

इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क के स्थगन को विश्व व्यापार संगठन के 12 वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में फिर से एक जीवन मिल गया है, जबकि इसके अंत हेतु भारत सम्मेलन की शुरुआत से ही 'मुखर प्रयास' कर रहा था। कुछ लोग कहते हैं, यह संयुक्त राज्य अमेरिका के दबाव के कारण हुआ है, दूसरों को लगता है कि भारत ने इसकी अन्य 'लाभों' के लिए सौदेबाजी की है, लेकिन यह उल्लेखनीय है कि भारत ने कहा था कि वह सीमा शुल्क पर इस रोक का विरोध करेगा, क्योंकि इससे हमारे डिजिटल विकास को नुकसान पहुंचाने के अलावा, राजस्व का भी भारी नुकसान हो रहा है, क्योंकि इसके कारण घरेलू खिलाड़ियों को बड़ी वैश्विक तकनीकी कंपनियों से तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।

यह इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ अधिस्थगन के 'अस्थायी प्रावधान' को दूर करने का प्रयास करने का समय था, जो विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद से चल रहा है। गौरतलब है कि विश्व व्यापार संगठन की शुरुआत के समय इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का व्यापार बहुत सीमित था। ऐसी स्थिति में, विश्व व्यापार संगठन के दूसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 1998 में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के व्यापार पर टैरिफ को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था और इस बीच विकास की जरूरतों के संदर्भ में वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक व्यापार से संबंधित मुद्दों का अध्ययन करने के लिए निर्णय लिया गया था। विकसित देशों की ओर से प्रस्तावित किया गया था कि इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ को अगले मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक स्थगित कर दिया जाए।

दुर्भाग्यपूर्ण है कि विकसित देश इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात पर शुल्क लगाने के निर्णय को कई बहाने से स्थगित करते रहे। आज स्थिति यह है कि अकेले भारत में ही 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आयात किए जा रहे हैं। अगर 10 फीसदी टैरिफ भी लगा दिया जाए तो भारत सरकार को 3 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का राजस्व मिलेगा। हाल के एक अध्ययन के अनुसार, विकासशील देश 2017-2019 की अवधि में सिर्फ 49 डिजिटल उत्पादों के आयात से 56 बिलियन डॉलर के राजस्व की प्राप्ति कर सकते थे। इस अवधि में अति अल्पविकसित देश 8 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त कर सकते थे, जो कि उनकी आबादी के लिए वैक्सीन की दोहरी खुराक देने के लिए आवश्यक राशि से भी दोगुना है।

यहां मुद्दा केवल राजस्व के नुकसान के बारे में ही नहीं है, यह भारत जैसे देश के विकास के लिए एक बहुत बड़ा मुद्दा है, जहां अपने देश हमारी स्टार्ट-अप और सॉफ्टवेयर कंपनियां विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाने में सक्षम हैं, जहां हम फिल्में और अन्य मनोरंजन उत्पाद बना सकते हैं। लेकिन जब ऐसे सभी उत्पादों को बिना किसी शुल्क के आयात किया जाता है, तो उन्हें स्वदेशी रूप से उत्पादित करने के लिए बहुत कम प्रोत्साहन मिलता है। ई-उत्पादों पर यह टैरिफ स्थगन वास्तव में अमेरिका, यूरोपीय देशों और चीन को लाभान्वित करते हुए आत्मनिर्भर भारत के हमारे प्रयासों को नुक़सान पहुँचा रहा है। विश्व व्यापार संगठन के 12 वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की शुरुआत में, भारत ने एक साहसिक रुख के साथ शुरुआत की और वाणिज्य मंत्री ने कहा, "मुझे लगता है कि 24 वर्षों से जारी इस स्थगन की समीक्षा की जानी चाहिए और इसका पुनरावलोकन होना चाहिए।" 12 वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में अधिस्थगन पर निर्णय इस प्रकार रहा "हम 13वें सम्मेलन (31 दिसंबर 2023 तक संभव) तक इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क नहीं लगाने की मौजूदा प्रथा को बनाए रखने के लिए सहमत हैं। यदि 13वें सम्मेलन को 31 मार्च 2024 से आगे विलंबित किया जाता है, तो स्थगन उस तारीख को समाप्त हो जाएगा जब तक कि मंत्री या सामान्य परिषद विस्तार करने का निर्णय लेती है। "

विश्व व्यापार संगठन के पहले के मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में, 24 वर्षों में, विकसित दुनिया इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन हर सम्मेलन के बाद आसानी से रोक लगवाती रही है। 12वाँ सम्मेलन, ऐसा पहला सम्मेलन था जहाँ उन्हें विकासशील देशों के कुछ प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इससे एक उम्मीद जगी थी कि टैरिफ अधिस्थगन आखिरकार खत्म हो जाएगा। लेकिन, इस लड़ाई में भी हार हुई और लाभ, जो निकट दिख रहा था, फिर से विकासशील देशों के हाथों से निकल गया, जो स्थगन को समाप्त करने से प्राप्त कर सकते थे।

1998 के बाद से, डिजिटलीकरण बहुत आगे बढ़ गया है, बड़ी तकनीकी कंपनियों और उनके उत्पादों के उद्भव के अलावा, जिनके पास सोशल मीडिया, ऑनलाइन व्यापार, खोज इंजन और अन्य बाजारों का एक बड़ा हिस्सा है, डिजिटल क्रांति ने ऑनलाइन व्यापार को बदल दिया है। कई ऐसे डिजिटल उत्पाद हैं, जो तेजी से भौतिक उत्पादों की जगह ले रहे हैं। स्वास्थ्य, फिनटेक, सार्वजनिक सेवाओं और कई अन्य डिजिटल उत्पादों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, 3डी प्रिंटिंग को शामिल होते हुए, इन सेवाओं के लिए मांग के प्रकार बदल रहे हैं।

इस डिजिटल युग में, भारत ने डिजिटल वाणिज्यिक और सार्वजनिक सेवाओं, डिजिटल भुगतान और सरकारी हस्तांतरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। साफ्टवेयर में निश्चित तौर पर भारत की ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता। हाल ही में भारत ने स्वदेशी 5 जी में विशेष उपलब्धि हासिल की है। हमने अपने स्वयं के डिजिटल उत्पादों को विकसित करना शुरू कर दिया है और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को हमारे शिशु डिजिटल उत्पाद उद्योगों के पोषण के लिए तैयार किया गया है। सीमा शुल्क लगाने से हमारे डिजिटल उद्योगों के लिए समान अवसर प्रदान करने में मदद मिल सकती है, जो अभी शैशव अवस्था में हैं। यदि हम देखें, तो बहुत सारे वीडियो गेम, संगीत, फिल्में और ओटीटी सामग्री आदि सहित ऐसी अन्य वस्तुओं को अधिस्थगन के कारण सीमा शुल्क से मुक्त प्रसारित किया जा रहा है। यदि यह स्थगन समाप्त हो जाता है, तो ऐसी विलासिता की वस्तुओं की विशिष्ट खपत कम हो जाएगी। इससे मूल्यवान विदेशी मुद्रा बचाने में मदद मिलेगी और सरकार को राजस्व के रूप में लाभ भी होगा, जिसका उपयोग विकास और लोक कल्याण के लिए किया जा सकता है।

जब से बड़ी टेक कम्पनियों को यह ज्ञात हो गया कि भारत और अन्य विकासशील देश टैरिफ़ स्थगन को समाप्त करने पर जोर दे रहे हैं, उन्होंने अपनी-अपनी सरकारों के माध्यम से इन प्रयासों को विफल करने के प्रयास शुरू कर दिए। उल्लेखनीय है कि विकासशील देश 'विशेष और विभेदक उपचार' (एस एंड डीटी) की मांग कर रहे हैं, सच्चाई यह है कि विकसित देश रिवर्स एस एंड डीटी का आनंद ले रहे हैं। यह खत्म होना ही चाहिए। हालाँकि, 12वाँ सम्मेलन सम्पन्न हो गया है, और इस स्थगन की समाप्ति के लक्ष्य को 13वें सम्मेलन तक बढ़ा दिया गया है, भारत को प्रयास करना चाहिए।

(लेखक प्रोफेसर, पीजीडीएवी कॉलेज, डीयू हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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