सतीश सिंह का लेख : औपचारिक ऋण संस्कृति विकसित हो

सतीश सिंह
ट्रांसयूनियन सिबिल लिमिटेड (सिबिल) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पात्र उम्मीदवारों में से लगभग 48 करोड़ लोगों को औपचारिक वित्तीय संस्थानों से ऋण सुविधा नहीं मिल सकी है, जबकि 17.9 करोड़ लोग बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण लेने में सफल रहे हैं, अर्थात भारत में 63 प्रतिशत लोगों को औपचारिक वित्तीय संस्थानों से ऋण नहीं मिल सका है। इस आंकड़े से यह पता चलता है कि भारत में अभी भी सूदखोरों का जाल बहुत ही ज्यादा मजबूत है। हालांकि विकसित देशों में भारत जैसी स्थिति नहीं है। अमेरिका में केवल 3 प्रतिशत पात्र आवेदक ही ऋण सुविधा से वंचित हैं। कनाडा में यह अनुपात 7 प्रतिशत,कोलंबिया में 44 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका में 51 प्रतिशत है।
सिबिल की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सरकार अधिकतम लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की कोशिश कर रही है। इस क्रम में देश में 45 करोड़ से अधिक जनधन खाते खोले जा चुके हैं और उनमें से पात्र खातेदारों को ओवरड्राफ्ट ऋण की सुविधा दी जा रही है। वैकल्पिक चैनलों जैसे मिनी बैंक या बिज़नेस कॉरस्पॉन्डेंट(बीसी), एटीएम, यूपीआई आदि के माध्यम से लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। बावजूद इसके, इस दिशा में अभी भी बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है। मौजूदा भौतिकवादी दुनिया में बहुत ही कम लोग, कारोबारी या कंपनी ऐसे हैं, जो अपनी वित्तीय जरूरतों को बिना ऋण लिए पूरा करते हैं। फिलवक्त कार, मकान, शिक्षा आदि ऋण लेना बहुत ही आम हो गया है, क्योंकि एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए इनकी जरूरत सभी को है। कारोबार, कृषि, उद्योग आदि के लिए भी ऋण लेने की जरूरत होती है। आज की तारीख में बहुत कम ऐसे व्यक्ति, कारोबारी,कंपनी या कॉर्पोरेट्स हैं, जिन्हें ऋण लेने की जरूरत नहीं होती है। कारोबार चलाना हो या फिर उसका विस्तार करना हो, दैनिक जरूरतों को पूरा करना हो या फिर शादी-विवाह करना हो, हर मामले में ऋण लेने की जरूरत होती है और आमजन, कारोबारी, कंपनी या कॉर्पोरेट्स अमूमन ऋण औपचारिक माध्यम यानी बैंक या वित्तीय संस्थान से या फिर अनौपचारिक माध्यम यानी मित्र, रिश्तेदार या फिर महाजन या सूदखोर से लेते हैं। औपचारिक ऋण लेने के लिए आवेदकों को बैंकों या वित्तीय संस्थानों की कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं। वैयक्तिक ऋण लेने के लिए क्रेडिट या सिबिल स्कोर की जरूरत होती है, वहीं, कंपनी या कॉर्पोरेट्स को ऋण लेने के लिए रेटिंग की जरूरत होती है, जिसे देने का काम देसी व विदेशी रेटिंग एजेंसियां करती हैं। सिबिल और क्रेडिट स्कोर के बीच एकमात्र अंतर यह है कि कोई भी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रेडिट स्कोर प्रदान कर सकती है, लेकिन सिर्फ सिबिल ही सिबिल स्कोर देता है। सिबिल द्वारा गणना किए गए क्रेडिट स्कोर को सिबिल स्कोर के रूप में जाना जाता है। सिबिल द्वारा विभिन्न बैंकों और उधार देने वाली संस्थाओं से प्राप्त क्रेडिट डेटा की मदद से सिबिल रिपोर्ट तैयार की जाती है। सिबिल रिपोर्ट में गृह ऋण, ऑटो लोन, क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन, ओवरड्राफ्ट आदि के भुगतान का विश्लेषण होता है, जिसमें ऋणी का नाम, जन्मतिथि, लिंग, पैन, पासपोर्ट व वोटर कार्ड नंबर, वर्तमान व स्थायी पता, मोबाइल व लैंडलाइन नंबर, ऋणी की मासिक व सालाना आय, जिस बैंक से ऋण लिया है उसका नाम, ऋण का प्रकार, खाता संख्या, अंतिम भुगतान की तारीख, ऋण की राशि, ऋण खाते के अधिशेष आदि की जानकारी होती है।
सिबिल भारत की प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से एक है। ट्रांसयूनियन सिबिल लिमिटेड को पहले क्रेडिट इनफॉर्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड के नाम से जाना जाता था, जिसका काम व्यक्तियों एवं कंपनियों की ऋण से जुड़ी गतिविधियों का लेखा-जोखा रखना है। वैयक्तिक ऋण के संदर्भ में क्रेडिट स्कोर की गणना करने वाली अन्य क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में एक्सोपीरियन, सीआरआईएफ हाई मार्क, इक्विफैक्सि आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। क्रेडिट स्कोर 3 अंकों का होता है, जिसे क्रेडिट प्रोफाइल का आईना माना जाता है। यह स्कोर 300 से 900 के बीच होता है। स्कोर जितना ज्यादा होता है, उसे उतना ही अच्छा माना जाता है। अच्छा स्कोर रहने पर ऋण के स्वीकृत होने की संभावना बढ़ जाती है और स्वीकृत ऋण पर बैंक या वित्तीय संस्थान द्वारा कम ब्याज प्रभारित किया जाता है। आमतौर पर 750 या उससे अधिक अंक को बेहतर क्रेडिट स्कोरर माना जाता है। आकर्षक शर्तों पर ऋण तभी मिल सकता है, जब क्रेडिट या सिबिल स्कोर अच्छा हो और अच्छे स्कोर पाने के लिए जरूरी है कि ऋणी समय पर ऋण की किस्त और ब्याज का भुगतान करे। ऋणी को मामले में अनुशासित रहना जरूरी है। क्रेडिट या सिबिल स्कोर कम रहना यह दर्शाता है कि ऋणी ऋण के भुगतान के मामले में अनुशासित नहीं है। ऐसे आवेदक को बैंक या वित्तीय संस्थान ऋण नहीं देना चाहते हैं। अगर ऋण देते भी हैं तो बैंक या वित्तीय संस्थान द्वारा ऋणी से ज्यादा ब्याज वसूला जाता है,ताकि जोखिम की भरपाई ज्यादा ब्याज से की जा सके। क्रेडिट रेटिंग और सिबिल नई अवधारणा हैं, लेकिन धीरे-धीरे इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। इससे ऋण देने वाले वित्तीय संस्थानों को जोखिम पहचानने में मदद मिल रही है। इसी वजह से ऋण का आवेदन प्रोसेस करने से पहले बैंक या वित्तीय संस्थान क्रेडिट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट या सिबिल रिपोर्ट हासिल करते हैं,ताकि आवेदक के क्रेडिट इतिहास का पता बैंक या वित्तीय संस्थान को चल सके। अगर, ऋण चुकाने में चूक की है तो उसका भी पता इस रिपोर्ट से चलता है।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां ऋण खाते के लेनदेन, ऋण का प्रकार, ऋण की अवधि आदि को अपने मूल्यांकन का आधार बनाते हैं, जिसके लिए एजेंसियां हर महीने बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण खातों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। व्यक्तियों को ऋण खाते को बेहतर तरीके से चलाने पर अच्छे क्रेडिट अंक मिलते हैं, जबकि कंपनियां या कॉर्पोरेट्स को रेटिंग एजेंसियों के द्वारा एएए, एए, ए, बीबीबी, बीबी, बी, सी, डी आदि रेटिंग दी जाती है। ट्रिपल ए सबसे अच्छी रेटिंग मानी जाती है, जबकि डी को चूककर्ता माना जाता है। बैंक या वित्तीय संस्थान को ऋण देने का फैसला उनकी रेटिंग के अनुसार करते हैं। भारत में क्रेडिट रेटिंग इनफॉर्मेशन सर्विस ऑफ इंडिया लिमिटेड (क्रिसिल),क्रेडिट एनालिसिस एंड रिसर्च लिमिटेड (केयर), इन्वेस्टमेंट इन्फॉर्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां हैं।
साफ है, भारत में अभी भी जरूरतमंदों और कारोबारियों को बैंक या वित्तीय संस्थान से ऋण नहीं मिल पा रहा है, जिसके कारण देश का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है। देश में आर्थिक गतिविधियों में तभी तेजी आएगी, जब समय पर व्यक्ति, कारोबारी या कंपनी को वित्तीय सहायता मिले। देश के समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा स्थिति में बदलाव लाना समय की मांग है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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