डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : छोटे किसानों के लिए वरदान है डीबीटी

डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : छोटे किसानों के लिए वरदान है डीबीटी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पीएम किसान सम्मेलन 2022 के तहत 16 हजार करोड़ रुपये की पीएम-किसान की 12वीं किस्त डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से एक साथ करोड़ों किसानों के खातों में हस्तांतरित की। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों के लिए, जो देश की किसानों की कुल आबादी का 85 प्रतिशत से ज्यादा हैं, यह एक बहुत बड़ा समर्थन है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज बेहतर व आधुनिक टेक्नालॉजी का उपयोग करते हुए हम खेत व बाजार के बीच की दूरी को कम कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा लाभार्थी छोटा किसान है, जो फल, सब्जियां, दूध व मछली जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों से जुड़ा है।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी

17 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम किसान सम्मेलन 2022 के तहत 16 हजार करोड़ रुपये की पीएम-किसान की 12वीं किस्त डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से एक साथ करोड़ों किसानों के खातों में हस्तांतरित की। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों के लिए, जो देश की किसानों की कुल आबादी का 85 प्रतिशत से ज्यादा हैं, यह एक बहुत बड़ा समर्थन है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज बेहतर व आधुनिक टेक्नालॉजी का उपयोग करते हुए हम खेत व बाजार के बीच की दूरी को कम कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा लाभार्थी छोटा किसान है, जो फल, सब्जियां, दूध व मछली जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों से जुड़ा है। किसान रेल व कृषि उड़ान हवाई सेवा इसमें बहुत काम आ रही है। ये आधुनिक सुविधाएं आज किसानों के खेतों को देशभर के बड़े शहरों और विदेश के बाजारों से जोड़ रही हैं। भारत कृषि निर्यात के मामले में शीर्ष 10 देशों में शामिल है। विश्वव्यापी महामारी की समस्याओं के बावजूद कृषि निर्यात में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रोसेस्ड फूड से किसानों को ज्यादा आमदनी हो रही है। बड़े फूड पार्कों की संख्या दो से 23 हो गई है।

इस मौके पर केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि अब तक अक्टूबर 2022 तक किसान सम्मान निधि योजना के तहत 11 करोड़ से अधिक किसानों के खातों में डीबीटी से सीधे 2.16 लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि हस्तांतरित की जा चुकी है। यह अभियान दुनिया के लिए मिसाल बन गया है और इससे छोटे किसानों का वित्तीय सशक्तिकरण हो रहा है। उल्लेखनीय है कि 13 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गरीबों, किसानों के सशक्तिकरण के मद्देनजर भारत में वर्ष 2014 से लागू की गई डीबीटी योजना एक चमत्कार की तरह है। इससे सरकारी योजनाओं का फायदा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंचाने में जो कामयाबी मिली है। गौरतलब है कि आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में दो बातें विशेष रूप से रेखांकित की हैं। एक, डिजिटलीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था में गेमचेंजर बन गया है और दो, भारत में गरीबों व किसानों के सशक्तिकरण में भी डीबीटी की अहम भूमिका है। तथा भारत में 80 करोड़ लोगों के लिए कोरोनाकाल से अब तक डिजिटलीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सरलतापूर्वक निशुल्क खाद्यान्न की बेमिसाल आपूर्ति की जा रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हाल ही में वर्षों में जिस तरह डीबीटी के माध्यम से गरीबों व किसानों का सशक्तिकरण हुआ है और देश के 80 करोड़ लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई है, उससे दुनिया के अन्य देश भारत से बहुत कुछ सीख सकते हैं। वस्तुतः बीते 8 साल में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बहुत-से काम किए गए हैं। कृषि उपज की लागत से डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने का जो काम किया गया है, उससे देश के करोड़ों किसानों को फायदा हुआ है। वन नेशन-वन फर्टिलाइजर के रूप में किसानों को सस्ती और क्वालिटी खाद भारत ब्रांड के तहत उपलब्ध कराने की योजना भी शुरू की गई है। किसानों की विभिन्न जरूरतें पूरी करने के लिए 3 लाख से अधिक उर्वरक खुदरा दुकानों को चरणबद्ध प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों में बदला जाएगा। 6 सबसे बड़ी यूरिया फैक्िट्रयां फिर शुरू की गई हैं। तरल नैनो यूरिया उत्पादन में देश तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। नैनो यूरिया कम लागत में अधिक उत्पादन का माध्यम है। अब देश में बिकने वाला यूरिया एक ही नाम, एक ही ब्रांड और एक ही गुणवत्ता का होगा और यह ब्रांड 'भारत' है। इससे उर्वरकों की लागत कम होगी और उनकी उपलब्धता भी बढ़ेगी।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि सरकार के द्वारा अपनाई गई रणनीति से कृषि और खाद्य प्रणालियों के समक्ष स्थिरता संबंधी चुनौतियों से निपटने, छोटे व सीमांत किसानों के कल्याण, प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन, कृषि अवसंरचना में बड़े निवेश, कृषि के डिजिटलीकरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से मुकाबले के लिए विशेष प्रयास लाभप्रद रहे हैं। इसी तरह सरकार ने छोटी जोत की चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक खेती के कांसेप्ट को लागू किए जाने के साथ-साथ कम लागत वाली खेती को प्रोत्साहित करते हुए प्राकृतिक और जैविक खेती को आगे बढ़ाया है, इन सबके कारण कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ी है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इस समय देशभर में सरकार गेहूं-धान की एक फसली खेती की जगह विविध फसलों की खेती और मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने की रणनीति पर आगे बढ़ी है। यही कारण है कि इस समय भारत में खाद्यान्न के भंडार भरे हुए हैं। देश में एक अक्टूबर 2022 को 2.27 करोड़ टन गेहूं का स्टॉक था, यह बफर नियमों से 11 फीसदी ज्यादा है। इसी प्रकार चावल का स्टॉक 2.83 करोड़ टन था, ये बफर नियमों के मुकाबले दोगुना से ज्यादा है। देश गेहूं, चावल और चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भर है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया है।

कृषि मंत्रालय ने वर्ष 2022-23 के लिए 32.8 करोड़ टन के रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। यह पिछले वर्ष की तुलना में करीब 3.8 फीसदी अधिक है। जिस तरह भारत की डीबीटी आम आदमी के सशक्तिकरण का आधार बनकर दुनिया में एक चमत्कार के रूप में सराही जा रही है, अब उसी तरह ग्रामीण स्वामित्व योजना भी गांवों में रहने वाले करोड़ों गरीबों और छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाने और उनके सशक्तिकरण के साथ-साथ ग्रामीण विकास में मील का पत्थर बनकर दुनिया के लिए भारत का नया चमत्कार बन सकती हैं। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल के द्वारा अक्टूबर 2008 में उनके राजस्व मंत्री रहते लागू की गई स्वामित्व योजना जैसी ही मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार योजना लागू की गई थी। इसके तहत हरदा के दो गांवों के किसानों को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में 1554 भूखंडों के मालिकाना हक के पट्टे सौंपे गए थे। पिछले 14 वर्षों में इन दोनों गांवों का आर्थिक कायाकल्प हो गया है। ऐसे में अब पूरे देश के गांवों में स्वामित्व योजना के लगातार विस्तार से गांवों के विकास और किसानों की अधिक आमदनी का ऐसा अध्याय लिखा जा सकेगा, जिसकी अभिकल्पना महात्मा गांधी ने की है। हम उम्मीद करें कि ऐसे रणनीतिक प्रयासों से जहां खाद्यान्न उत्पादन और उत्पादकता बढ़ने के साथ खाद्यान्न प्रचुरता के आधार पर कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाला नया अध्याय लिखा जा सकेगा, वहीं डीबीटी की मजबूती के साथ-साथ ग्रामीण स्वामित्व योजना से गरीबों व किसानों का और अधिक सशक्तिकरण हो सकेगा। ऐसे में वर्ष 2027-28 तक भारत गरीबों व किसानों के सशक्तिकरण के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ऊंचाई पर भी पहुंचते हुए दिखाई दे सकेगा।

( लेखक अर्थशास्त्री हैं, ये उनके अपने विचार हैं )

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