आर के सिन्हा का लेख : ओआईसी का दोहरा चेहरा उजागर

आर के सिन्हा का लेख : ओआईसी का दोहरा चेहरा उजागर
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ताजा मामले में भारत को इसलिए कोस रहा है, क्योंकि बकौल इसके भारत में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। ओआईसी तब तो सोता रहता है, जब इस्लामिक देशों में गैर-मुसलमानों के साथ या चीन में मुसलमानों पर जुल्मों-सितम होता है। ओआईसी दुनियाभर के 57 इस्लामिक देशों का संगठन होने का दावा करता है, परंतु ये सऊदी अरब तथा ईरान के बीच गहरे मतभेदों के कारण चार कदम भी आगे नहीं बढ़ पाता है। याद नहीं आता कि ओआईसी ने चीन में उईगर मुसलमानों पर हो रही ज्यादतियों पर कभी एक शब्द भी विरोध का दर्ज किया हो। इन सब बातों से इस्लामिक सहयोग संगठन का असली चेहरा तो पूरी दुनिया के सामने आ गया है।

आर के सिन्हा

कभी-कभी तो लगता है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन सिर्फ भारत को कोसने या भारत के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने के लिए ही बने हुए हैं। उनका कोई दूसरा काम ही नहीं है। इस तरह के एक संगठन का नाम है इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कांफ्रेंस (ओआईसी) है। ये बात-बात पर सिर्फ भारत को कोसता रहता है। ताजा मामले में भारत को इसलिए कोस रहा है, क्योंकि बकौल इसके भारत में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। ओआईसी तब तो सोता रहता है, जब इस्लामिक देशों में गैर-मुसलमानों के साथ या चीन में मुसलमानों पर जुल्मों-सितम होता है। ओआईसी दुनियाभर के 57 इस्लामिक देशों का संगठन होने का दावा करता है, परंतु ये सऊदी अरब तथा ईरान के बीच गहरे मतभेदों के कारण चार कदम भी आगे नहीं बढ़ पाता है। सऊदी अरब अपने को सुन्नी मुस्लिम देशों का नेता मानता है। उधर, ईरान अपने को शिया मुसलमानों का संरक्षक समझता है।

ओआईसी अपने सदस्य देशों के बीच चल रहे आपसी विवादों को सुलझा पाने में भी आमतौर पर नाकाम ही रहता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में लगातार तनातनी चलती रहती है, पर ओआईसी इनके मतभेदों को दूर करने में विफल रहा है। ओआईसी को इस बात से भी कोई मतलब नहीं है कि सिर्फ बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक लाख से अधिक प्रवासी अल्पसंख्यक शरणार्थी शिविरों में नारकीय जिंदगी गुजारने पर मजबूर हैं। ये प्रवासी अल्पसंख्यक भारत के बंटवारे के वक्त पूर्वी पाकिस्तान में चले गए थे जो कि अब बांग्लादेश है । जब तक बांग्लादेश नहीं बना था तब तक तो इन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई, परंतु बांग्लादेश बनते ही बंगाली मुसलमान इन बिहारी मुसलमानों को अपना शत्रु मानने लगे। इसी मोटा-मोटी वजह यह थी कि ये बिहारी अल्पसंख्यक तब पाकिस्तान सेना का खुलकर साथ दे रहे थे जब पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में कत्लेआम कर रही थी। बिहारी मुसलमान नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान बंटे। तब से ही इन्हें बांग्लादेश में नफरत की निगाहों से देखा जाता है। ये पाकिस्तान जाना भी चाहते हैं। पर पाकिस्तान सरकार है कि इन्हें अपने देश में लेने को तैयार ही नहीं है। तो यह हाल है अपने को ओआईसी का नेता बनने वाले पाकिस्तान का। इस्लामिक देशों के लिए फिलिस्तीन का सवाल बेहद अहम रहा है, परंतु ओआईसी ने इजराइल के खिलाफ बयानबाजी करने के अलावा कुछ ठोस पहल नहीं की है। हां, इतना अवश्य है कि ये बीच-बीच में बयान जारी करके इजराइल को चेतावनी दे देता है फिलिस्तीनी लोगों और इस्लामिक दुनिया की भावनाओं को भड़काने की इजराइल की कोशिशों के भयानक परिणाम होंगे। हालांकि कभी इसने यह नहीं बताया कि कितने भयानक परिणाम होंगे और कैसे और क्या होंगे ये परिणाम। यह इसके दोहरे चरित्र को उजागर नहीं करता है तो क्या है?

और चीन के नाम से तो मानो ओआईसी पूरी तरह कांप ही जाता है। यह बात सारी दुनिया में उजागर है कि चीन में उईगर मुसलमानों पर भीषण अत्याचार हो रहे हैं। चीन ने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में रहने वाले मुसलमानों को कसा हुआ है। उन्हें खान-पान के स्तर पर वह सब कुछ करना पड़ा रहा है,जो उनके धर्म में पूर्ण रूप से निषेध है। ये सब कुछ वहां की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के इशारों पर हो रहा है। इस सबके बावजूद इस्लामी दुनिया इन अत्याचारों पर चुप है और कोई एक शब्द बोलने को तैयार नहीं। याद नहीं आता कि ओआईसी ने चीन में उईगर मुसलमानों पर हो रही ज्यादतियों पर कभी एक शब्द भी विरोध का दर्ज किया हो। आर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के शिनजियांग प्रांत में बने शिविरों में दस लाख से अधिक चीनी मुसलमानों को भयंकर ढंग से डराया-धमकाया जाता है। ये सब इसलिए हो रहा है ताकि चीनी मुसलमान कम्युनिस्ट विचारधारा को अपना लें। वे इस्लाम से दूर हो जाएं। इस सबके बावजूद इस्लामिक सहयोग संगठन ने चीन को पिछले मार्च में हुए ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में शिरकत करने की दावत दी। ये सम्मेलन इस्लामाबाद में 22-23 मार्च को हुआ था। चीन ने ओआईसी सम्मेलन में भाग भी लिया। अब भारत को हिजाब से लेकर कश्मीर और नुपुर शर्मा के बयान पर कोसने वाले इस्लामिक देश और उनके संगठन का दोहरा चेहरा देख लें। ओआईसी सम्मेलन में चीन की भागेदारी का किसी भी इस्लामिक देश ने विरोध नहीं किया। यह बात समझ से परे है कि दस लाख से अधिक मुसलमानों पर चीनी दमन पर इस्लामिक संसार ने आंखों में पट्टी क्यों बांधी हुई हैं? क्या ये चीनी मुसलमानों को अपना नहीं मानते?

अब रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने के मसले को ही ले लें। म्यांमार के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश ने भी रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से मना कर दिया था। बांग्लादेश कतई रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां नहीं रखना चाहता। बांग्लादेश सरकार ने तो इस मामले पर एकदम खुलकर कहा था कि, 'ये रोहिंग्या बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं, हमारे यहां पूर्व में भी कई घटनाएं घट चुकी हैं। यही कारण है कि हम उनको लेकर सावधान हैं।' मतलब एक इस्लामिक देश की तरफ से दूसरे इस्लामिक देश के शऱणार्थियों को शरण नहीं मिली। पर इस्लामिक सहयोग संगठन तब भी चुप रहा। उसने तब कोई प्रस्ताव बांग्लादेश के खिलाफ जारी नहीं किया। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने भी रोहिंग्याओं को अपने यहां घुसने नहीं दिया। रोहिंग्याओं को लेकर इस्लामिक देशों को आखिरकार क्यों सांप सूंघ गया?

रोहिंग्या मुसलमानों पर निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने मुस्लिम समुदाय की सही क्लास ले ली है। तस्लीमा नसरीन ने मुस्लिमों पर हल्ला बोलते हुए उन पर अपने ही लोगों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम उन मुसलमानों के लिए रोते हैं जो गैर मुस्लिमों के जुल्म का शिकार होते हैं। मुस्लिम तब नहीं रोते जब मुस्लिमों पर मुस्लिमों द्वारा ही जुल्म किया जाता है।' तस्लीमा नसरीन सही तो कह रही हैं। सीरिया या इराक में मुस्लिमों द्वारा मुस्लिमों को मारने का कभी भी विरोध नहीं किया जाता। तब ओआईसी भी बयान नहीं देता। बहरहाल, इन सब बातों से इस्लामिक सहयोग संगठन का असली चेहरा तो पूरी दुनिया के सामने आ ही गया है, लेकिन वह भारत को कोसने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। यह उसका चरित्र है। भारत की अवाम को या मौजूदा सरकार को इस्लामिक सहयोग संगठन के इस दोहरे चरित्र का कोई असर नहीं पड़ता।

( लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )

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