डॉ. जयंतीलाल भंडारी का लेख : अब आय असमानता भी घटे

नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण की योजना आगामी पांच वर्षों यानी दिसंबर 2028 तक के लिए बढ़ा दी है। गरीबों के सशक्तिकरण के लिए निशुल्क खाद्यान्न की जरूरत बनी हुई है। पिछले पांच वर्षों में 13 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, ऐसे में पूरे देश के गरीब लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की दिशा में देश आगे बढ़ रहा है। निस्संदेह मुफ्त खाद्यान्न योजना की जरूरत न केवल गरीबों के सशक्तिकरण के लिए, वरन आय असमानता घटाने के लिए आवश्यक बनी हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अभियान से भारत में गरीबी घटी है, लेकिन भारत में आय की असमानता बढ़ी हुई है। नागरिकों के गरिमापूर्ण जीवन के लिए खाद्यान्न की 5 किलो मात्रा उपलब्ध कराना है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार ने 80 करोड़ से अधिक पात्र लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण की योजना आगामी पांच वर्षों यानी दिसंबर 2028 तक के लिए बढ़ा दी है। उन्होंने कहा कि गरीबों के सशक्तिकरण के लिए निशुल्क खाद्यान्न की जरूरत बनी हुई है। पिछले पांच वर्षों में 13 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, ऐसे में पूरे देश के गरीब लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की दिशा में देश आगे बढ़ रहा है। निस्संदेह मुफ्त खाद्यान्न योजना की जरूरत न केवल गरीबों के सशक्तिकरण के लिए, वरन आय असमानता घटाने के लिए आवश्यक बनी हुई है।
इस परिप्रेक्ष्य में हाल ही में 6 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 फीसदी से घटकर 15 फीसदी पर आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि गरीबी निवारण अभियान से भारत में गरीबी घटी है, लेकिन भारत में आय की असमानता बढ़ी हुई है। उल्लेखनीय है कि एशिया पेसिफिक ह्यूमन डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत में प्रतिव्यक्ति आय वर्ष 2000 में जहां करीब 37 हजार रुपये थी, वहीं वर्ष 2022 में बढ़कर करीब 2 लाख रुपये हो गई है।
गौरतलब है कि भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 10 सितंबर 2013 को अधिसूचित हुआ है। इसका उद्देश्य नागरिकों की गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए वहनीय मूल्यों पर गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की 5 किलोग्राम मात्रा उपलब्ध कराना है। ऐसे में इसके तहत राशन कार्डधारकों को चावल 3 रुपये, गेहूं 2 रुपये और मोटे अनाज 1 रुपये प्रति किलोग्राम खाद्यान्न वितरण की शुरुआत की गई। कोरोना के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त अनाज दिए जाने की भी शुरूआत की। सरकार ने चावल और गेहूं को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत क्रमश: तीन रुपये और दो रुपये प्रति किलो की दर से बेचने के बजाय मुफ्त कर दिया। अब वर्ष 2028 तक एक बार फिर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आने वाली देश की दो तिहाई आबादी को राशन प्रणाली के तहत मुफ्त में अनाज देने की भारत की पहल दुनियाभर में रेखांकित की जा रही है।
यह कोई छोटी बात नहीं है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष संहित दुनिया के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक संगठनों के द्वारा भारत की खाद्य सुरक्षा की जोरदार सराहना की गई है। आईएमएफ के द्वारा पिछले दिनों प्रकाशित रिसर्च पेपर में कोविड की पहली लहर 2020-21 प्रभावों को भी अध्ययन में शामिल करते हुए कहा गया है कि सरकार के पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है। आईएमएफ के कार्यपत्र में कहा गया है कि खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम कोविड-19 से प्रभावित वित्तीय वर्ष 2020-21 को छोड़कर अन्य वर्षों में गरीबी घटाने में सफल रहा है। दुनिया के अर्थ विशेषज्ञों के अनुसार कोविड-19 के बीच भारत में खाद्यान्न के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचे सुरक्षित खाद्यान्न भंडारों के कारण ही देश के 80 करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध होने के कारण वे गरीबी के दलदल में फंसने से बच गए।
गौरतलब है कि डिजिटलीकरण के तहत जिस तरह आधार ने लीकेज को कम करते हुए लाभार्थियों को भुगतान के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) में मदद की है, उससे भी गरीबों का सशक्तिकरण हुआ है। सरकार ने वर्ष 2014 से लेकर अब तक डीबीटी के जरिये करीब 29 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि सीधे लाभान्वितों के बैंक खातों तक पहुंचाई है। प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) की सराहना दुनियाभर में की जा रही। दुनियाभर में यह रेखांकित हो रहा है कि गरीबों के सशक्तिकरण में करीब 47 करोड़ से अधिक जनधन खातों, आधार कार्ड, तथा मोबाइल उपभोक्ताओं, की शक्ति वाले डिजिटल ढांचे की असाधारण भूमिका रही है। लगातार बढ़ता रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूत कर रहा है। चालू कृषि वर्ष 2022-23 में 3305.34 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है, लेकिन वर्ष 2023-24 में गेहूं और दलहन उत्पादन में कमी के संकेत सामने आ रहे हैं। ऐसे में देश में खाद्य सुरक्षा के साथ बढ़ती जनसंख्या के लिए अधिक खाद्यान्न की जरूरत है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2023 में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। चूंकि खाद्यान्न के केंद्रीय पूल में सालाना 780 से 800 लाख टन गेहूं और चावल की खरीद होती है। पीडीएस के तहत अनाज देने के लिए 500 से 590 लाख टन अनाज की जरूरत होती है। वर्ष 2023-24 में केंद्र ने एनएफएसए में 600 लाख टन गेहूं और चावल का आवंटन किया है। जब देश में अधिक खाद्यान्न उत्पादन की जरूरत है, तब खाद्यान्न भंडारण की अधिक क्षमता भी जरूरी है। यद्यपि भारत दुनिया का प्रमुख खाद्यान्न उत्पादक देश है, लेकिन खाद्यान्न भंडारण में बहुत पीछे है। अनाज के अन्य बड़े उत्पादक देशों चीन, अमेरिका, ब्राजील, यूक्रेन, रूस और अर्जेन्टीना के पास खाद्यान्न भंडारण क्षमता वार्षिक उत्पादन की मात्रा से कहीं अधिक है। ऐसे में देश में खाद्यान्न भंडारण की जो क्षमता फिलहाल 1450 लाख टन की है, उसे अगले 5 साल में सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करके कुल खाद्यान्न भंडारण क्षमता 2150 लाख टन किए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
यह बात महत्वपूर्ण है कि देश में एक ओर गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन सामुदायिक रसोई, वन नेशन, वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी और स्वास्थ्य व भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं। उनके कार्यान्वयन की दिशा में अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। चूंकि कोविड-19 के कारण देश में डिजिटल शिक्षा की जरूरत बढ़ गई है और इसकी अहमियत रोजगार में भी बढ़ गई है। ऐसे में गरीब एवं कमजोर वर्ग के युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार के द्वारा डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा। वहीं दूसरी ओर कौशल प्रशिक्षण के साथ नए स्किल्स सीखने होंगे। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने और उनके लिए रोजगार के अधिक अवसरों के लिए भी अधिक प्रयास करने होंगे। ऐसा होने पर ही गरीबी घटाने और आय में असमानता को कम करने में सफलता प्राप्त की जा सकेगी।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी (लेखक अर्थशास्त्री हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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