डॉ. रमेश ठाकुर का लेख : बालश्रम के समाधान बहुतेरे

डॉ. रमेश ठाकुर का लेख : बालश्रम के समाधान बहुतेरे
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विश्व बालश्रम निषेध दिवस बाल समस्याओं के खिलाफ लड़ने के लिए एक वातावरण उत्पन्न करने का पुरजोर आह्वान करता है। यह दिवस न केवल बच्चों के बढ़ने और समृद्ध होने के उपयुक्त वातावरण पर ध्यान केंद्रित करवाता है, बल्कि इस कलंक के विरुद्ध अभियान में भाग लेने के लिए सरकारों, समाज, स्कूलों, युवाओं, महिला समूहों और मीडिया से समर्थन प्राप्त करने का अवसर भी मुहैया करवाता है।

विश्व बालश्रम निषेध दिवस बाल समस्याओं के खिलाफ लड़ने के लिए एक वातावरण उत्पन्न करने का पुरजोर आह्वान करता है। यह दिवस न केवल बच्चों के बढ़ने और समृद्ध होने के उपयुक्त वातावरण पर ध्यान केंद्रित करवाता है, बल्कि इस कलंक के विरुद्ध अभियान में भाग लेने के लिए सरकारों, समाज, स्कूलों, युवाओं, महिला समूहों और मीडिया से समर्थन प्राप्त करने का अवसर भी मुहैया करवाता है। सके मनाने की जब शुरूआत हुई, तब इस मुहिम में 30-40 देश थे, जिनका आंकड़ा अब 100 से भी ज्यादा देशों का हो चुका है। इस मुहिम में लगातार शामिल होते मुल्कों का मतलब साफ है कि इस दंश से सभी आहत हैं।

बाल श्रम के खिलाफ आज का खास दिन हम सभी को एक अवसर प्रदान करने के साथ-साथ बच्चों के पढ़ने और आगे बढ़ने व सम्मानित जीवन जीने के लिए मनाते हैं। विश्व बालश्रम निषेध दिवस बाल समस्याओं के खिलाफ लड़ने के लिए एक वातावरण उत्पन्न करने का पुरजोर आह्वान करता है। बालश्रम क्यों बढ़ रहा है? इसका भी एक वाजिब कारण हम सभी के सामने हैं। दरअसल, गरीबी ही बालश्रम की मुख्य वजह है जिसके कारण बच्चों को अपनी पढ़ाई-लिखाई और स्कूली शिक्षा बीच में ही अपनी आजीविका के लिए न्यूनतम जॉब के विकल्प के चुनने को मजबूर कर देती है। इसके अलावा, कुछ संगठित अपराध पनपे हुए हैं जो बाल श्रम के लिए बच्चों को मजबूर करते हैं। बालश्रम निषेध दिवस न केवल बच्चों के बढ़ने और समृद्ध होने के उपयुक्त वातावरण पर ध्यान केंद्रित करवाता है, बल्कि इस कलंक के विरुद्ध अभियान में भाग लेने के लिए सरकारों, समाज, स्कूलों, युवाओं, महिला समूहों और मीडिया से समर्थन प्राप्त करने का अवसर भी मुहैया करवाता है।

सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों-लाखों बच्चे ऐसे हैं विभिन्न राज्यों में जो किसी न किसी किस्म की मजबूरियों के चलते अपनी पढ़ाई-लिखाई बीच में ही छोड़कर बाल मजदूरी में लगे हुए हैं। ये तब है, जब सरकारी और सामाजिक स्तर पर साझा प्रयास हो रहे हैं। यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट की मानें तो हिंदुस्तान में कुछ राज्य ऐसे हैं जहां ये आकंड़ा कोरोना महामारी के थमने के बाद बहुत तेजी से बढ़ा है। ये राज्य मुख्यत: झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल व असम हैं। आदिवासी क्षेत्रों के आंकड़े तो और भी भयावह हैं। असम में कम उम्र में ही बच्चों का कामधंधों में लगाना और बाल विवाह करने का मुद्दा इस वक्त चर्चाओं में है? कुल मिलाकर नौनिहालों का बचपन एक नहीं, कई समस्याओं से घिरा हुआ है। गरीबी इनके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं? दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों के चौराहों व प्रत्येक लाल बत्तियों पर आपको कम उम्र के बच्चे भीख मांगते दिख जाएंगे। लोग उन्हें देखकर अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं, किसी को कोई परवाह नहीं? आज समूचे संसार में विश्व बालश्रम निषेध दिवस’ मनाया जा रहा है जिसका मकसद, उन बच्चों के बचपन को बचाने और आमजन के बीच इसके प्रति जागरूकता फैलाना होता है। ये दिवस प्रत्येक वर्ष जून की 12 तारीख को मनाया जाता है।

इसके मनाने की जब शुरूआत हुई, तब इस मुहिम में 30-40 देश थे, जिनका आंकड़ा अब 100 से भी ज्यादा देशों का हो चुका है। इस मुहिम में लगातार शामिल होते मुल्कों का मतलब साफ है कि इस दंश से सभी आहत हैं। बालभिक्षा और बाल मजदूरी किसी भी देश के लिए कलंक जैसी है। कोई भी देश चाहे कितना भी विकसित क्यों न हो जाए, या विकासशील हो, पर जब तक उसका संपूर्ण नौनिहाल वर्ग खुश नहीं होगा, सारा का सारा विकास और तरक्की बेमानी मानी जाएगी। केंद्र की सरकारी संस्था राष्ट्रीय जनसहयोग एंव बाल विकास संस्थान जो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन है, में पिछले पांच वर्षों से बतौर सदस्य मैंने खुद एक कड़वा अनुभव किया है कि प्रदेश स्तर पर बालश्रम के विरुद्ध कार्य तो होते हैं, लेकिन जिस तत्परता से होने चाहिए, उतने होते। केंद्र की कई योजनाएं इस क्षेत्र में रनिंग हैं पर प्रशासनिक स्तर घोर उदासीनता देखने को मिलती है। जिले के एसडीएम को जब लोग इस समस्या की शिकायत करते हैं, तो वो तत्काल कार्रवाई नहीं करते।

पूरा वैश्विक मंच आज की तारीख में बालश्रम, बाल मजदूरी व बाल तस्करी के बढ़ते प्रकोप के खिलाफ आवाज बुलंद किए हुए हैं। निश्चित रूप से आवाज बुलंद होनी भी, क्योंकि ये समस्या फैल जो इतनी तेजी से गई है। बिना देर किए इसे हर हाल में सभी को मिलकर रोकना ही होगा। प्रतिबंध लगाना किसी एक वर्ग के बस की बात नहीं, बल्कि समाज और सरकार को साझा प्रयास ईमानदारी से करना होगा। संयुक्त प्रयास से ही ये पुण्य कार्य संभव होगा। विशेष दिवस बाल समस्याओं की बढ़ती खतरनाक दरों को देखते हुए इसके खिलाफ एकजुट होने को आग्रह करता है। यूनिसेफ और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ की ताजा रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में बाल श्रम में बच्चों की संख्या बढ़कर अब करीब 160 मिलियन हो चुकी है, जो विगत तीन-चार वर्षों में 7.8 मिलियन से ज्यादा है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और उनके अधीन सरकारी संस्था ‘राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास विभाग’ पिछले कई वर्षों से बाल श्रम रोकथाम की मुहिम में लगा है।प्रत्येक जिलों में जिला स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें लोगों को जागरूक किया जाता है कि उन्हें जब कहीं पर कोई बच्चा मजदूरी करता दिखे तो तुरंत रिपोर्ट करें। दरअसल, ये ऐसी समस्या है जिसे देखकर हम अनदेखा नहीं कर सकते।

अगर ऐसा करते हैं तो हम एक जिम्मेदार नागरिक के फर्ज से भटकते हैं। बाल श्रम के खिलाफ ध्यान केंद्रित करने और इसे खत्म करने के लिए आवश्यक कार्रवाई या कार्य के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने बाल समस्याओं के खिलाफ ही आज का दिवस चुना था, जो यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास प्राप्ति वाले लक्ष्य 8.7 की ओर अग्रसर भी होता है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा 2025 तक बाल श्रम को समाप्त करने के लिए एक टारगेट भी निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को पूरा करने में कई देश तेजी से काम कर रहे हैं, पर कुछ रोड़ा अटकाए हुए हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे मुल्क अब भी सबसे फिसड्डी हैं। खैर, हमें दूसरों देशों के मुकाबले अपने देश पर ज्यादा फोकस करना चाहिए, क्योंकि हालात हमारे यहां भी ज्यादा संतोषजनक नहीं हैं। देश की राजधानी दिल्ली और झारखंड जैसे राज्यों में बच्चे के भूख से मरने की खबरें सुनने को मिलती हैं। अभी कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली में तीन बच्चे खाली पेट भूख से मरे थे। तो, वहीं आदिवासी क्षेत्र झारखंड में एक नौ साल की बच्ची भी भात मांगते-मांगते दम तोड़ देती है।

डॉ. रमेश ठाकुर (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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