डॉ. वी. के. यादव व डॉ. आर.पी. पाराशर का लेख : असीम-अनंत से जुड़ना है योग

योग की वैश्विक लोकप्रियता अकारण नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने भी तन मन पर पड़ने वाले इसके पॉजिटिव प्रभाव को स्वीकार किया है। नियमित योगाभ्यास से हार्ट डिजीज से लेकर अस्थमा, दमा, ब्रॉन्काइटिस, अर्थराइटिस, हाइपरटेंशन व मधुमेह पर नियंत्रण होने के साथ-साथ इम्यून सिस्टम भी मजबूत बनता है। योग और आयुर्वेद-पंचकर्म परस्पर पूरक हैं। आयुर्वेदिक स्वर्णप्राशन से बच्चों में शुरू से ही बेहतर इम्युनिटी विकसित होती है। योग-साधना ऐसी पद्धति है जो मन, शरीर व आत्मा को कलात्मक ढंग से एक लय में सुचारू रूप से काम करने का रास्ता दिखाती है।
भारत की पहल पर 2014 में संयुक्त राष्ट्र संघ के 177 देशों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पास किया। सबसे दिलचस्प बात यह रही कि किसी देश की पहल को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार तीन महीने के भीतर ही मान लिया और वह भी बिना वोटिंग के। महासभा के पटल पर इस तथ्य को विशेष तरजीह दी गई कि 'योग मानव स्वास्थ्य और कल्याण की दिशा में संपूर्ण नजरिया है।' इस प्रकार एक नई थीम 'सद्भाव व शांति के लिए योग' के साथ 2015 में पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस उल्लासपूर्वक मनाया गया।
इस बार नौवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह का मुख्य आयोजन प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय न्यूयॉर्क में होगा। वर्तमान दौर में हम जिन परिस्थितियों में रह रहे हैं उसमें तन और मन को स्वस्थ रखने की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ चली है। जीवन की तमाम अनिश्चितताओं के बीच योग पहले से अधिक प्रासंगिक हो गया है। योगगुरु अयंगर का कहना है, 'योग हमें उन चीजों को ठीक करना सिखाता है, जिन्हें सहा नहीं जा सकता। और उन चीजों को सहना सिखाता है, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता।' इस मायने में योग महज व्यायाम का तरीका या कुछ आसनों का नाम नहीं है। यह एक पूरा दर्शन है, जो हर कदम पर सहजता की ओर ले जाता है। केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने योग दिवस के मौके पर इस बार की थीम रखी है- वन वर्ल्ड, वन हेल्थ। यह थीम भारतीय संस्कृति की चिरपरिचित अवधारणा ' वसुधैव कुटुम्बकम' पर आधारित है। आयुष मंत्रालय का मानना है कि योग के निरंतर अभ्यास से बेहतरीन स्वास्थ्य के अलावा आंतरिक आनंद और शांति का एहसास होता है। योग व्यक्ति की आंतरिक चेतना और बाहरी दुनिया की भागदौड़ के बीच समन्वय एवं संतुलन स्थापित करने की कला को गहरा करता है। योग का परिणाम है निरोगी काया।
एम्स के एक अध्ययन के अनुसार नियमित रूप से योग करने से मस्तिष्क में टेंशन और अशांति उत्पन्न करने वाला 'कॉर्टिसोल' हार्मोन का स्राव नियंत्रित होने लगता है। योग के बिना बेहतर स्वास्थ्य, मानसिक शांति और मुक्ति संभव नहीं है। वैदिक ऋषियों ने वर्षों की तप-साधना के बाद यह महसूस किया कि हरेक मनुष्य के भीतर ऐसी संजीवनी शक्ति मौजूद है जो शरीर के रोगों का तो नाश करती ही है, साथ ही साथ मानसिक विकारों पर भी लगाम कसती है। योग-साधना ऐसी पद्धति है जो सीधे तौर पर मन, शरीर व आत्मा को कलात्मक ढंग से एक लय में सुचारू रूप से काम करने का रास्ता दिखाती है। इसलिए योग किसी व्यक्ति-विशेष से बंधा हुआ नहीं है, योग तो सभी के लिए है और सारे विश्व के लिए है। अमूमन योग दिवस पर जो योग कराया जाता है, उसमें आत्मकल्याण व मानसिक पहलू की बजाय शारीरिक मुद्राओं की प्रैक्टिस व फिजिकल वर्कआउट पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है। प्रत्याहार(चित्त पर पड़े कुसंस्कारों को उलीचना) और ध्यान(मेडिटेशन) पर चर्चा बहुत कम होती है।
लोग समझते हैं कि आसन और प्राणायाम ही योग है। असलियत में देखा जाए तो ये योग नहीं, बल्कि योग तक पहुंचने के उपाय हैं। महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में योग को सटीक ढंग से पारिभाषित किया गया है- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:' यानी आसनों का अभ्यास नहीं, बल्कि चित्त पर पड़े विकारों के शोधन की प्रक्रिया ही योग है। हम आत्मा-परमात्मा की बात भले ही न करें, पर अपने तन और मन की बात तो हमें करनी ही होगी। योग का अर्थ ही है जुड़ जाना। जहां से अलग हुए हैं वहां से जुड़ जाना। तन का मन से जोड़ और मन का तन से जोड़। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि असीम-अनंत से जुड़कर अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना ही योग है। योग के नियमित अभ्यास से व्यक्ति के लोक-व्यवहार में सहृदयता और सामंजस्य विकसित होता है।
स्कूलों में योग शिक्षा के अभिन्न हिस्से के तहत स्टूडेंट्स में मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि बच्चों को नियमित रूप से यौगिक क्रियाएं कराई जाएं तो निश्चित रूप से इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे और विद्यार्थियों के व्यक्तित्व में असाधारण बदलाव लाया जा सकता है। रूस की यूरल फेडरल यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने हालिया शोध में यह दावा किया है कि नियमित योगासनों व प्राणायाम के कुछ महत्वपूर्ण सेशन के बाद बच्चों में अवसाद व हाइपरएक्टिविटी का प्रतिशत काफी कम हो गया। यूनिवर्सिटी के ब्रेन एंड न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट लैब के प्रमुख प्रोफेसर्स की राय है कि सांसों के विशेष व्यायाम( प्राणायाम) से मस्तिष्क को सुचारू तरीके से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है, जिससे एकाग्रता में वृद्धि और याददाश्त मजबूत होती है। 'प्राणायाम' पतंजलि अष्टांग योग का चौथा महत्वपूर्ण अंग है। कपालभाति व अनुलोम-विलोम प्राणायाम से फेफड़े बलिष्ठ होते हैं, ब्लड-सर्कुलेशन की प्रणाली सुधरने से हार्ट, लीवर व किडनी के कार्य करने की क्षमता बेहतर बनती है।
कोरोनाकाल में योग की उपयोगिता पहले से काफी बढ़ गई है। कोविड-रिकवरी के बाद भी लोगों को योग से बहुत लाभ मिला है। महामारी के इस माहौल में हमें जीने का ढंग बदलना ही होगा। योग की वैश्विक लोकप्रियता अकारण नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने भी तन मन पर पड़ने वाले इसके पॉजिटिव प्रभाव को स्वीकार किया है। नियमित योगाभ्यास से हार्ट डिजीज से लेकर अस्थमा, दमा, ब्रॉन्काइटिस, अर्थराइटिस, हाइपरटेंशन व मधुमेह पर नियंत्रण होने के साथ-साथ इम्यून सिस्टम भी मजबूत बनता है। कोरोना काल में पूरे विश्व ने यह स्वीकार किया की इम्युनिटी और हृष्ट-पुष्ट शरीर ही स्वास्थ्य का आधार हैं। योग और आयुर्वेद-पंचकर्म परस्पर पूरक हैं। आयुर्वेदिक स्वर्णप्राशन से बच्चों में शुरू से ही बेहतर इम्युनिटी विकसित होती है। दूसरी ओर पंचकर्म पद्धति से समय-समय पर शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन और प्यूरिफिकेशन होता है। वायरल, फंगल और बैक्टीरियल रोगों की चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए भविष्य में स्वर्णप्राशन और पंचकर्म स्वास्थ्य की नींव सिद्ध होंगे। जल वायु परिवर्तन, प्रदूषण, धूम्रपान, अल्कोहल, शारीरिक निष्िक्रयता, इंसेक्टिसाइड्स और पेस्टिसाइड्स के अंधाधुंध प्रयोग से जीवनशैली से संबंधित रोगों के साथ संक्रामक रोगों के मामले पूरे विश्व में बढ़ते जा रहे हैं। आयुर्वेदिक दवा स्वर्णप्राशन को साधारण भाषा में आयुर्वेदिक इम्यूनाइजेशन कहा जा सकता है जिससे इम्यूनिटी में वृद्धि होती है, शरीर मजबूत होता है।
आयुर्वेद की प्रामाणिक औषधि बच्चों के लिए निश्चित रूप से कारगर सिद्ध होगी जिससे बुढ़ापे तक शरीर रोगों से लड़ने में सक्षम रहेगा। इसी प्रकार पंचकर्म की विभिन्न पद्धतियों के माध्यम से समय-समय पर शरीर का डिटॉक्सिफिकेशनकराते रहने से न केवल व्यक्ति का मेटाबॉलिज्म बेहतर बना रहता है बल्कि शरीर के सभी अंग और तंत्र मजबूत बने रहते हैं जिससे व्यक्ति किसी भी इन्फेक्शन को आसानी से मात देने में तो सक्षम रहता है, जीवन शैली से संबंधित रोगों से भी बचा रहता है।
डॉ. वी. के. यादव वरिष्ठ योग प्रशिक्षक, योग विज्ञान संस्थान व डॉ. आर.पी. पाराशर मनोचिकित्सक एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आयुर्वेद) दिल्ली नगर निगम (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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