ऐश्वर्या झा का लेख : शैक्षिक सुधार बने केंद्रीय लक्ष्य

ऐश्वर्या झा
आज प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी,शिक्षाविद् और देश के पहले शिक्षामंत्री भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती है। वर्ष 2008 से शिक्षा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्यों के सम्मान में उनके जन्मदिन 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। उनके नाम 'अबुल कलाम' का शाब्दिक अर्थ है 'संवादों का देवता' नाम के अनुरूप ही उनके व्यक्तित्व में संवाद का प्राधान्य था । वे भारत विभाजन के कट्टर विरोधी तथा हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय आंदोलन के सन्दर्भ में नीति निर्णय में अग्रणी भूमिका निभाते रहे। गांधीजी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए। वर्ष 1923 में महज़ 35 वर्ष के उम्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष चुने गए। बाद में पुनः कांग्रेस के सबसे कठिन और निर्णायक दौर (1940-1946 तक) में उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व किया। मौलाना आज़ाद राजनीतिज्ञ से अधिक शिक्षाविद थे। उत्कृष्ट पत्रकार,साहित्यकार और टीकाकार भी थे। उन्होंने शायरी, निबंध, विज्ञान से संबंधित आलेख, शिक्षा-सम्बंधी आलेख, कुरान की टीका आदि लिखे। उन्होंने पहले शिक्षा मंत्री के रूप में कम संसाधन होते हुए भी नवभारत निर्माण की मजबूत आधारशिला रखी, जिस पर 75 वर्ष के भारत की शिक्षा व्यवस्था टिकी है। आज़ादी के बाद औपनिवेशिक शिक्षण व्यवस्था में सांस्कृतिक तत्वों की कमी को देखते हुए भारतीय कला और संस्कृति की धरोहर विकसित करने हेतु संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी जैसे संस्थानों की स्थापना में उनका अहम योगदान है।
किसी भी देश की प्रगति में शिक्षा एक बहुत महत्वपूर्ण साधन एवं साध्य है। किसी राष्ट्र की प्रगति का निर्णय एवं निर्धारण विद्यालय में होता है। देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं इन 75 सालों में देश ने बेमिसाल तरक्की की है। आजादी के वक्त हम 34 करोड़ थे, आज आबादी 140 करोड़ से ज्यादा है। उस समय मात्र 19 फीसदी आबादी साक्षर थी, अब ये अस्सी फीसदी तक पहुंच गई है। भारत में आजादी के समय मात्र 400 विद्यालय,19 विश्वविद्यालय और केवल 5000 विद्यार्थी थे। भारतीय शिक्षा प्रणाली 14.9 लाख स्कूलों, 95 लाख शिक्षकों, और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लगभग 26.5 करोड़ छात्रों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में एक है। 1951 में बनी पहली आईआईटी की संख्या आज 24 है। प्रबंधन शिक्षा के लिए आईआईएम की संख्या 1961 में एक थी और आज इनकी संख्या 20 है। देश में 1050 से अधिक विश्वविद्यालय हैं। आज भी अबुल कलाम आज़ाद के विचार शिक्षा के नीति निर्धारण में उतने ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा समेत लड़कियों की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की लगातार पैरवी की थी। मौलाना ने शिक्षा से के संबंध में कहा था 'हमें एक पल के लिए भी नहीं भूलना चाहिए कि कम से कम बुनियादी शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है जिसके बिना वह एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से निर्वहन नहीं कर सकता है।' सामाजिक-आर्थिक कारणों से आज़ादी के 75 वर्ष में शिक्षा क्षेत्र में हमारा अधिक ध्यान सार्वभौमिक शिक्षा या संख्या पर अधिक था, गुणवत्ता पर कम। भारत युवा आबादी वाला देश है, किंतु यह तभी वरदान सिद्ध हो सकता है जब ये युवा कार्यबल में शामिल होने के लिए पर्याप्त कुशल होंगे।
भारत के विकसित राष्ट्र के मार्ग में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही अहम भूमिका निभा सकती है। इस सच्चाई को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा तक आमजन के लिए सुलभ नहीं है। हाल में आई एक सरकारी रिपोर्ट इस चुनौती की ओर इंगित करती है। वर्ष 2019 से भारत सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूल में शिक्षा एवं इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर परफॉरमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) जारी करना शुरू किया है। पीजीआई का मुख्य उद्देश्य साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को बढ़ावा देना, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए पाठ्यक्रम सुधार को रेखांकित करना है। पीजीआई संरचना के लिए 70 संकेतकों में 1000 अंक शामिल किए हैं, जिन्हें 2 श्रेणियों में बांटा गया है, परिणाम और शासन प्रबंधन (जीएम)। इन श्रेणियों को आगे 5 उप-श्रेणियों में विभाजित किया गया है; सीखने के परिणाम (एलओ), पहुंच (ए), अवसंरचना और सुविधाएं (आईएफ), समानता (ई) और शासन प्रक्रिया (जीपी)। वर्ष 2021-22 के रिपोर्ट के आधार पर स्कूलों में बुनियादी ढांचागत सुविधाओं की उपलब्धता इस प्रकार हैः- बिजली कनेक्शन: 89.3%, पेयजल: 98.2%, लड़कियों के लिए शौचालय: 97.5, सीडब्लूएसएन शौचालय: 27%, हाथ धोने की सुविधाः 93.6, खेल का मैदानः 77%,सीडब्लूएसएन के लिए रेलिंग वाला रैम्पः 49.7, पुस्तकालय/पढ़ने का कक्ष/पढ़ने का स्थानः 87.3% कुछ अच्छे परिणाम भी है, स्कूली शिक्षा में 95.07 लाख शिक्षक, में से 51 प्रतिशत से अधिक संख्या महिला हैं। आठ लाख से अधिक नई छात्राओं ने स्कूल में नामांकन किया। राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर अगर वर्तमान में शिक्षा पर मंथन करें तो हमारा शिक्षा तंत्र अल्प सरकारी संसाधन (जीडीपी के 3.5% से कम), उपयुक्त अवसंरचना की कमी, भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा में कठिनाइयां, ड्रॉपआउट की समस्या, वहनीयता सामर्थ्य का अभाव, मेधावी छात्र का शिक्षण में कम रुचि, प्रभावहीन शिक्षक प्रशिक्षण और छात्र-शिक्षक अनुपात की विषमता जैसी प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रही है। स्मार्ट क्लासरूम से पहले स्मार्ट टीचर की ज़रूरत है।
भारत की नई शिक्षा नीति 2020, लगभग 34 वर्षों के बाद बनी है जो भारत के लिए एक रोडमैप का काम करेगी। के. कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशों के आधार पर शिक्षा तक सबकी आसान पहुंच, समता, गुणवत्ता, वहनीयता और जवाबदेही के आधारभूत स्तंभों पर निर्मित नई शिक्षा नीति सतत विकास (एसडीजी) के लिए 'एजेंडा 2030' के अनुकूल भी है। नई नीति 21वीं शताब्दी की जरूरतों के अनुकूल स्कूल और कॉलेज की शिक्षा को अधिक समग्र, लचीला बनाते हुए भारत को ज्ञान आधारित जीवंत समाज और वैश्विक महाशक्ति में बदलकर प्रत्येक छात्र में निहित अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाने वाली है। मौलाना आजाद शिक्षा को ही समाज में अपेक्षित बदलाव का माध्यम मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा से ही देश और समाज दोनों प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। शिक्षा संबंधी इन सूचकांकों की सहायता से शिक्षा में अपेक्षित परिवर्तन लाने का प्रयास किया जा रहा है। आज़ादी से आज तक शिक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। अब शैक्षिक सुधार को केंद्रीय लक्ष्य बनाया जाना चाहिए, तभी मौलाना के सपनों को साकार किया जा सकेगा।
( लेखिका शिक्षाविद् हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )
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