अलका आर्य का लेख : खसरा-रूबेला का उन्मूलन जरूरी

टीका मतलब-सुरक्षा। टीका जीवन बचाता है। टीका बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाता है। भारत का लक्ष्य सार्वभौमिक टीकाकरण के तहत सालाना 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 2.7 करोड़ नवजातों को टीके लगाना है। इसमें कोई दो राय नहीं कि नियमित टीकाकरण भारत की सफलता की कहानियों में से एक है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 ( 2015-2016) के अनुसार 12 से 23 माह के आयुवर्ग के बच्चों में पूर्ण टीकाकरण की दर 62 प्रतिशत थी और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार यह दर बढ़कर 76 प्रतिशत हो गई। खास बात यह है कि कोविड-19 महामारी के चलते बाल टीकाकरण दर में जो कमी आई थी, उसे भी बहुत हद तक दुरस्त कर लिया गया है। लेकिन इस सबके बावजूद केंद्रीय स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय मुल्क के बच्चों की सेहत को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-2021) के आंकड़े बताते हैं कि इस समय मुल्क में लक्षित आयु वर्ग के 3.8 फीसद बच्चे अटीकाकृत हैं और 19़.8 फीसद बच्चे आशिंक रूप से टीकाकृत हैं। आशिंक रूप से टीकाकृत व अटीकाकृत बच्चों पर जानलेवा रोगों व मौत की गिरफ्त में आने का खतरा मंडराता रहता है, जबकि अधिकांश जानलेवा रोगों की रोकथाम के लिए टीके उपलब्ध हैं। भारत सरकार अपने सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत मुल्क के 0-5 आयुवर्ग के बच्चों को 12 रोगों से रोकथाम वाले टीके मुफ्त में लगाती है। कोई भी बच्चा पीछे न छूटे, इस मंशा से केंद्रीय स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2014 में मिशन इंद्रधनुष कार्यक्रम लांच किया और इसके सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिले। बाद में इसे सघन मिशन इंद्रधनुष (आईएमआई) का नाम दिया गया। वर्ष 2021 में आईएमआई 3.0 के तहत मुल्क के 250 जिलों में उन दस लाख बच्चों को टीके लगाए गए जिन्होंने नियमित टीकाकरण के तहत टीके नहीं लगाए थे। इसी तरह वर्ष 2022 में आईएमआई 4.0 के तहत 416 जिलों में ऐसे 60 लाख बच्चों को टीके लगाए गए।
यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मेककेफरी का कहना है कि ‘ नियमित टीकाकरण कवरेज में प्रगति भारत में बच्चों के लिए स्वस्थ जीवन की उम्मीद लेकर आई है। यह सरकार के साक्ष्य आधारित कैच-अप अभियानों और प्रभावशाली प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और टीकाकरण संरचना के लाभाशों को दर्शाता है।’ अब चालू वर्ष 2023 में आईएमआई 5.0 का लक्ष्य देशभर में 5 साल से कम आयु के ऐसे बच्चों व गर्भवती महिलाओं की पहचान कर उन्हें टीके लगाना है जो टीकाकरण से छूट गए हैं व जिन्होंने अधूरे टीके लगवाए हैं। आईएमआई 5.0 का पहला चरण अगस्त, दूसरा सितंबर व तीसरा अक्तूबर में चलाने का कार्यक्रम तय किया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अतिरिक्त कमिश्नर (टीकाकरण) डा. वीणा ध्वन ने हाल ही में एक मीडिया वर्कशाॅप में पत्रकारों को बताया कि आईएमआई 5.0 में फोकस ज़ीरो डोज वाले बच्चों पर भी होगा। ज़ीरो डोज बच्चे, ऐसे बच्चे जिन्होंने अपनी पहली डीटीपी टीके की डोज नहीं ली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2021 में ज़ीरो डोज वाले बच्चों की संख्या 27 लाख थी जो 2022 में घटकर 11 लाख रह गई। बेशक ऐसे बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है पर इसके साथ यह रिपोर्ट इस तथ्य पर भी रोशनी डालती है कि 2022 में दुनिया के ऐसे दस देश जहां बच्चे सबसे अधिक अरक्षित हैं, यानी जीरो डोज वाले बच्चों की तादाद सबसे अधिक है, उनमें भारत तीसरे नंबर पर है। यह मुल्क के लिए अति चिंता की बात है।
इसके साथ ही यह भी गौरतलब है कि भारत सरकार ने मुल्क से खसरा व रूबेला उन्मूलन के लिए लक्ष्य दिसंबर 2023 तय किया है। दरअसल खसरा एक अत्याधिक संक्रामक बीमारी है, और इसका बढ़ना अक्सर टीकाकरण कवरेज संबंधी कमजोरियों को सामने लाता है। खसरा किसी भी मुल्क के टीकाकरण प्रणाली के मजबूत या कमजोर होने का एक संकेतक है। अक्सर देखा गया है कि जब टीकाकरण कवरेज कम होता है तो तब खसरा तेजी से फैलता है, जबकि खसरा की रोकथाम के लिए टीका उपलब्ध है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि खसरा के प्रभावशाली वैक्सीन ने बीते दो दशकों में 3 करोड़ बच्चों की मौत को टाला है। और चिंतनीय पहलू यह है कि प्रभावशाली टीका होने के बावजूद खसरा विश्वभर में बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। इसके नकारात्मक प्रभावों मे ंअंधापन, निमोनिया व दिमाग में सूजन आदि है। भारत में 2022 में 95 प्रतिशत बच्चों को खसरा युक्त टीका(एमसीवी1) दी गई और एमसीवी2 की कवरेज दर 90 प्रतिशत है। इसके अलावा रूबेला भी एक संक्रमण है। यह बच्चों,किशोरों व महिलाओं को हो सकता है।
देश में खसरा व रूबेला उन्मूलन के लिए अभियान भी चलाए जा रहे हैं और एमआर वैक्सीन की दो डोज भी लगाई जा रही हैं। एमआर उन्मूलन के लिए एमआर वैक्सीन की दोनों डोज की कवरेज दर 95 फीसद होनी चाहिए और यही दर बराबर बनी रहनी चाहिए। यहां यह जिक्र करना भी जरूरी है कि भारत में कई जगहों पर टीकों को लेकर झिझक बनी हुई है, ऐसी जगहों पर स्वास्थ्य मंत्रालय स्थानीय प्रभावशाली हस्तियों से मदद लेने पर अधिक फोकस कर रहा है। इसके साथ ही मंत्रालय को उम्मीद है कि मीडिया भी टीकों के प्रति फैले अंधविश्वास व भ्रातियों के निराकरण में अपनी अहम भूमिका निभाएगा, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में मीडिया ने कोविड-टीकाकरण बावत लोगों को जागरूक किया था।
दरअसल निरंतर प्रगति और कैच-अप कार्यक्रम भारत में स्वास्थ्य प्रणाली को वंचित समुदायों के बच्चों तक पहुंचने, अंतिम छोर को कवर करने की क्षमता प्रदान करते हैं, यहां तक की मुश्किल जगहों पर भी। जीवन रक्षक टीकाकरण और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं लाखों बच्चों के लिए स्वस्थ विकास का वादा लाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व के उन देशों में से एक है, जहां टीकों के प्रति सबसे अधिक भरोसा है, यह टीकों के महत्व और टीका हिचक को संबोधित करने वाले भारत के प्रयासों की प्रभावशीलता पर रोशनी डालते हैं। टीकाकरण कार्यक्रम से जुड़े आला अधिकारियों को भरोसा है कि भारत दिसंबर 2023 तक खसरा-रूबेला उन्मूलन का लक्ष्य हासिल कर एक और उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करेगा। गौरतलब है कि 2014 में भारत के पोलियो-मुक्त देश का दर्जा पाने को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘ जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक ’ बताया था। कोविड टीकाकरण में भी भारत ने कामयाबी हसिल की थी।
(लेखिका- अलका आर्य स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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