डॉ. अशोक कुमार यादव का लेख : सबके राम-सनातनी राम

डॉ. अशोक कुमार यादव का लेख : सबके राम-सनातनी राम
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आध्यात्म, चिंतन, भक्ति, शक्ति, ज्ञान और पुरुषार्थ के प्राण हैं राम। राम राजा है, लेकिन लोकतन्त्र के संरक्षक हैं। राम शक्तिपुंज हैं, लेकिन दुर्बलों के रक्षाकवच हैं। राम राजकुमार हैं, लेकिन तपस्वी के वेष में वन-वन भटके। राम राजा होते हुए भी साम्राज्यवादी नहीं हैं, क्षेत्रवादी नहीं हैं, विस्तावरवादी नहीं हैं, सामंतवादी नहीं हैं। न ही राम जातिवादी हैं व न ही अंहकारी हैं। फिर राम क्या हैं? राम न्यायप्रिय हैं, भावप्रिय हैं, सत्यप्रिय हैं, अनुशासनप्रिय हैं, सम्यक दृष्टि वाले हैं। राम लौकिक भी हैं व अलौकिक भी हैं। राम ईश्वर भी हैं व इंसान भी हैं। राम भौतिक भी हैं व दैविक भी हैं। राम आदि भी हैं व अन्त भी हैं। मानो तो राम सबकुछ है और न मानो तो कुछ भी नहीं है।

भारतीय संस्कृति में राम सिर्फ शब्द नहीं है। भारतीय मनीषा की आत्मा है राम। आध्यात्म, चिंतन, भक्ति, शक्ति, ज्ञान और पुरुषार्थ के प्राण हैं राम। राम राजा है, लेकिन लोकतन्त्र के संरक्षक हैं। राम शक्तिपुंज हैं, लेकिन दुर्बलों के रक्षाकवच हैं। राम राजकुमार हैं, लेकिन तपस्वी के वेष में वन-वन भटके। राम राजा होते हुए भी साम्राज्यवादी नहीं हैं, क्षेत्रवादी नहीं हैं, विस्तावरवादी नहीं हैं, सामंतवादी नहीं हैं। न ही राम जातिवादी हैं व न ही अंहकारी हैं। फिर राम क्या हैं? राम न्यायप्रिय हैं, भावप्रिय हैं, सत्यप्रिय हैं, अनुशासनप्रिय हैं, सम्यक दृष्टि वाले हैं। राम लौकिक भी हैं व अलौकिक भी हैं। राम ईश्वर भी हैं व इंसान भी हैं। राम भौतिक भी हैं व दैविक भी हैं। राम आदि भी हैं व अन्त भी हैं। मानो तो राम सबकुछ है और न मानो तो कुछ भी नहीं है। इसीलिए मानस में गोस्वामी जी ने लिखा, ‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’। अल्लामा इकबाल ने भी लिखा है- ‘है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़, अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद।’

दुनिया भर में तीन हजार से ज्यादा रामायण लिखी गईं। इनमें से तीस ग्रन्थ तो सर्वमान्य हैं। काल अलग हैं़,जगहें अलग हैं, रचियता अलग हैं, भाषा अलग है़, लेकिन राम एक ही हैं। वाल्मीकि के राम अलग हैं। वो इंसान हैं, नायक है, रामराज्य के अधिष्ठाता हैं व असुरों के संहारक हैं। वो दुर्बलों के नाथ हैं, ऋषि-मुनियों के संरक्षक हैं, समाज के पथप्रदर्शक हैं व भारतभूमि के एकतासूत्र हैं। कालिदास के राम अलग हैं। कम्बन के राम अलग हैं। स्वामी अड़गड़ानंद के राम अलग हैं। तुलसी के राम अलग हैं। किसी ने ईश्वर के रूप में देखा, तो किसी ने इंसान के रूप में, लेकिन हर जगह राम सर्वशक्तिमान हैं।

संस्कृत, अवधी, तमिल, तेलुगु, उड़िया, मलयालम, सिंघली, नेपाली, भूटानी या फारसी जैसी जिन भाषाओं में भी रामचरित लिखा गया, सबमें हर जगह राम दीन दुखियों के पक्षधर हैं। संबंधों को निभाने वाले हैं। समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने वाले हैं। वाल्मीकि रामायण और तुलसी की मानस में दो चरित्र खास हैं। एक निषादराज गुह्य और दूसरा शबरी माता। रामायण की पूरी कथा में हर किसी को मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने कुछ न कुछ दिया है, लेकिन सिर्फ निषादराज और शबरी ऐसे हैं, जिन्होंने श्रीराम से कुछ लिया नहीं, उन्हें दिया है। जब राम वनवास के लिए निकले,तो श्रृंगवेसपुर के निषादराज गुह्य गंगा पार कराने के लिए हाजिर हो गए। निषादराज मल्लाह थे। आज के जमाने के पिछड़ी जाति वाले थे। राजा राम को वनवासी के वेश में देखकर दुखी हो गए। उन्हें अपना राज्य ऑफर कर दिया। वाल्मीकि रामायण और कंबन रामयाण में मल्लाह निषादराज को प्रभुराम का पांचवा भाई बताया गया है। ये राम की सामाजिक स्वीकार्यता, सभी वर्गों में उनके प्रति प्रेम का अनूठा उदाहरण है। इसी तरह शबरी भी भीलनी थीं। श्रीराम कर्नाटक में मंतग ऋषि के आश्रम में पंपा सरोवर तक गए। भीलनी के जूठे बेर खाए। ये आदिवासियों के प्रति राम का अनुराग था। राम बलशाली संग नहीं, कमजोरों के साथ खड़े रहे। राम ने आतातायी का नहीं, सताए हुए का साथ दिया। राम ने मित्रता का धर्म निभाया। राम की सेना प्राणियों की एकता का सबूत थी। हनुमान, सुग्रीव, नल, नील, जामवंत ये सब बंदर रीछ भालू नहीं थे। ये अलग अलग इलाकों की जनजातियां थीं। राम ने सबको इक्कठा किया। एकता की ताकत से रावण को हराया।

तमिलनाडु में जो लोग सनातन पर सवाल उठा रहे हैं। उन्हें तो रामायण और रामचरित मानस खास तौर पढ़नी चाहिए, क्योंकि तमिलनाडु में सनातन संस्कृति के सबूत आज भी हैं। राम ने खर-दूषण और त्रिशिरा का वध दंडकारण्य क्षेत्र में किया था, लेकिन खर दूषण के वध के कारण ब्रह्महत्या से मुक्ति का यज्ञ तमिलनाडु में किया था। उन्होंने 108 शिवलिंग स्थापित किए, जो आज भी हैं। वो स्थान आज भी तमिलनाडु के तंजावुर में पापनाशम ् के नाम से प्रसिद्ध है। यहां राम के सबसे ज्यादा प्रमाण हैं।

राम ने न तो जातिभेद किया, न वर्ग भेद किया। यहां तक कि अगर किसी स्त्री ने अत्याचार किया तो उसे भी दंडित किया। ताड़का राक्षसी थी। श्रषि मुनियों का भक्षण करती थी। यज्ञ में विघ्न डालती थी। राम ने ताड़का का वध किया। रामायण के रचयिता वाल्मीकि तो दलित थे, लेकिन संस्कृत के प्रकांड विद्वान और खगोलविद थे। उनके ज्ञान का सम्मान हुआ। श्रीराम के पुत्र लव और कुश वाल्मीकि के शिष्य बने। सीता वाल्मीकि के आश्रम में पुत्री की तरह रहीं। क्या ये समाजिक एकता, समाज में विद्वता का सम्मान नहीं था।

राम ने उत्तर को दक्षिण से, पूरब को पश्चिम से जोड़ा। राम अयोध्या के राजकुमार थे। इच्छवाकु वंश के 64वें राजा थे। सूर्यवंशी सम्राट थे। पिता की आज्ञा से वनवास गए। वो चाहते तो वनवास अयोध्या की सीमा की बाहर भी काट सकते थे। वे चित्रकूट तक क्यों गए? इसका जबाव मानस में बालकांड की चौपाई में है। जिसमें कहा गया है रामजन्म के हेतु नेका, परम विचित्र एक ते एका। श्रीराम अयोध्या से निकल कर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु तक गए। अयोध्या में सरयू के तट से लेकर रामेश्वरम में समुद्र तट तक राम के निशान आज भी साफ मिलते हैं। राम ने सेतुबंध में छोटी सी गिलहरी के योगदान को स्वीकर किया और जब इस लोक से विदा ली तो हनुमान को अयोध्या सौंपी। राम ने सिर्फ इंसानों को नहीं, पूरे प्राणिजगत को एकसूत्र में बांधा। श्रीराम का जीवन चरित कठिन परिस्थितियों में भारतीयों को संबल देता है। आज भारत के अलावा जिन देशों में हिन्दू हैं, वहां सनातन को कायम रखने में रामायण और रामचरित मानस की बड़ी भूमिका है।

आमतौर पर लोग सिर्फ वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामचरित मानस को ही जानते हैं, लेकिन रामचरित ज्यादातर भारतीयों भाषाओं में लिखा गया है। संस्कृत में वाल्मीकि रामायण के अलावा अाध्यात्म रामायण, आनंद रामायण और अदभुत रामायण भी हैं। तेलुगु में रंगनाथ रामायण और मोल्डा रामायण है। उड़िया में रूइपादकातेणपदी रामायण है। तमिल में कम्बन की इरामावतारम् है। सिंहली में मलेराज कथाव है। कन्नड़ की रायायण अलग है। अवधी में रामचरित मानस है। विदेशों में भी है। कंबोडिया में रामकेर है। तिब्बती में काव्यदर्श है। इंडोनेशिया में रामायण काकवीन है। मलेशिया में हिकायत सेरीराम है और जीवक जातक नाम से दो रामायण हैं। वर्मा में रामवत्थु है। जापानी में होबुत्सुशू है। नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण है। थाईलैंड में रामकियेन है। तुर्किस्तान में खोतानी रामायण है। फारसी में मसीही रामायण है। फिलीपींस में महालादिया लाबन है। चीनी भाषा में दशरथ कथानम है। ये सब अलग अलग भाषाओं में रामयाण के, रामचरित के अलग अलग रूप हैं। यानि दुनिया में हिन्दू जहां जहां भी गए। राम उनके साथ गए। देश छूट गया, लेकिन भारतीयों ने न राम को विस्मृत किया व न सनातन को। वे अपनी जड़ों से जुड़े रहे, सनातन से बंधे रहे। राम एकता के वो सूत्र हैं, जो सबको बांधे रखता है। हिन्दुओं की सुबह ‘राम-राम’ से होती है और जीवन का सूर्यास्त भी ‘राम नाम सत्य है’ से होता है। स्वामी अड़गड़ानंद कह गए - रमन्ते योगिना: यस्मिन स राम:। अर्थात जिसमें योगी रम जाएं वही राम हैं। हमारे यहां तो कोहराम में भी राम है। आराम में भी राम हैं और पूर्णविराम में भी राम है। बाकी जाकी रही भावना जैसी...।

(लेखक- डॉ. अशोक कुमार यादव शिक्षाविद् व राम दर्शन के वेत्ता हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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