डाॅ. पुराणिक का लेख : लड़खड़ाकर संभलने की क्षमता

डाॅ. आलोक पुराणिक
कारोबारी लोगों को अर्थव्यवस्था अलग तरीके से समझ में आती है, आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के आने के बाद मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक सेंसेक्स करीब 814 बिंदु बढ़कर बंद हुआ। एक साल का हिसाब लगायें, तो सेंसेक्स करीब पच्चीस प्रतिशत उछल गया है। यह हालात उस अर्थव्यवस्था के नहीं लगते, जो करीब दो सालों से महामारी से गुजर रही है। पर सचाई यह है कि अर्थव्यवस्था महामारी से गुजर रही है और महामारी के अलावा नयी चिंताएं और पैदा हो गयी हैं, अर्थव्यवस्था के लिए, यूक्रेन के विवाद के बाद कच्चे तेल के भावों में आग लग गयी है। कोरोना की अगली लहर नहीं आयेगी, यह बात पक्के तौर पर कोई ना कह सकता। यह अलग तरह का संकट है। सचमुच के संकट से पहले आशंकाओं के संकट आते हैं।
महंगाई के हाल : आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार अप्रैल दिसंबर 2021 में खुदरा मूल्य सूचकांक औसत 5.2 फीसदी के स्तर पर रहा। तीन साल पहले यानी 2018-19 में यह आंकड़ा 3.4 प्रतिशत था। यानी कुल मिलाकर खुदरा स्तर पर महंगाई बढ़ी है। यह बात दूसरे संकेतों से भी साफ होती है। आटा, चावल, टूथपेस्ट बेचनेवाली कंपनियों के आंकड़े बता रहे हैं कि उनकी सेल तो बढ़ गयी है यानी रकम के लिहाज से तो उनकी सेल दस प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी हुई दिख रही है, पर मात्रा के लिहाज से सेल नहीं बढ़ रही है। यानी कंपनियों ने तमाम आइटमों की कीमतें बढ़ा दी हैं, कीमतें बढ़ गयी हैं, तो कुल सेल बढ़ी हुई दिख रही है। पर लोग ज्यादा नहीं खरीद रहे हैं। औसत महंगाई दर छह प्रतिशत से नीचे है, तो रिजर्व बैंक के खतरे की घंटी नहीं बजी है, रिजर्व बैंक के खतरे की घंटी का स्तर है-छह प्रतिशत। महंगाई के मोरचे पर सतर्क रहना होगा। अभी तो चुनाव की मजबूरियां हैं, पर देर सबेर कच्चे तेल के बढ़े भाव डीजल और पेट्रोल की महंगाई की शक्ल में दिखेंगे ही।
झूमता शेयर बाजार आईपीओ बाजार : शेयर बाजार तो झूम रहा है, सेनसेक्स का आंकड़ा बता रहा है। नये शेयरों का बाजार भी बहुत गति के साथ झूम रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार अप्रैल-नवंबर 2021 में 89000 करोड़ रुपये इनिशियल पब्लिक आफर यानी सबसे पहले जारी होनेवाले आफर शेयरों के जरिये उगाहे गये हैं। जोमेटो पेटीएम जैसे बडे ब्रांडों वाली कंपनियों ने भारी रकम नये शेयर जारी करके उगाही है। नये शेयरों के बाजार से पिछले एक दशक में किसी भी साल में इतनी रकम नहीं उगाही गय जितनी हाल के महीनों में उगाही गयी। यानी अच्छी परियोजनाएं पूंजी पा रही हैं। उन्हे पैसे की कमी नहीं हो रही है और ऐसा तब हो रहा है जब अर्थव्यवस्था एक संकट से गुजर रही है, जब कोरोना सिर्फ सेहत की आपदा नहीं है बल्कि एक आर्थिक आपदा है।
विकास का हाल : आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 21-22 के दौरान अर्थव्यवस्था का विकास 9.2 प्रतिशत की दर से हो सकता है और इसके अगले साल यानी 22-23 अर्थव्यवस्था का विकास 8 से 8.5 प्रतिशत की दर से हो सकता है। भारत जैसे आकार की अर्थव्यवस्था का विकास आठ से नौ प्रतिशत सालाना की दर से हो, यह आसान बात नहीं है खासकर कोरोना काल में। आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि 21-22 में कृषि क्षेत्र का विकास 3.9 प्रतिशत की दर से होगा। 20-21 में कृषि की विकास दर 3.6 प्रतिशत थी। कोरोना काल में कृषि विकास की दर 3.6 प्रतिशत से बढ़कर 3.9 प्रतिशत से होना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। सेवा क्षेत्र का विकास 21-22 में 8.2 प्रतिशत की दर से होने का अनुमान है। 2020-21 में यह विकास दर नकारात्मक 8.4 प्रतिशत थी। यानी 2020-21 में सेवा क्षेत्र का संकुचन हुआ था, पर मोटे तौर पर सेवा क्षेत्र का विकास 8.2 प्रतिशत होने के आसार है 21-22 में यानी हालात तेजी से सुधरे हैं। सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का करीब पचास प्रतिशत है। इसका डूबना और उबरना अर्थव्यवस्था के लिए बहुत मायने रखता है। हां, पर्यटन और होटल आदि के क्षेत्रों में अभी संकट गहरा है। औद्योगिक विकास दर 21-22 में 11.8 फीसदी रहने के आसार हैं, जबकि 20-21 में औद्योगिक विकास नहीं, औद्योगिक संकुचन हुआ था 7 प्रतिशत का। तो कुल मिलाकर लड़खड़ाकर उबरने के संकेत मिल रहे हैं।
कोरोना आर्थिक महामारी :आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज है कि 2020-21 में लागू पूर्ण लॉकडाउन की तुलना में 'दूसरी लहर' का आर्थिक प्रभाव कम रहा, हालांकि इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव काफी गंभीर था। यानी लहर के बाद लहर आ रही है, पर उसके साथ जीना भारतीय समाज और भारतीय अर्थव्यवस्था सीख रही है। कोरोना आर्थिक महामारी का मुकाबला बेहतर तरीके से तब किया जा सकता है कि जब देश की पूरी जनसंख्या टीकाकृत हो जाये।
राजकोषीय घाटा : आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार राजकोषीय घाटा 21-22 में सकल घरेलू उत्पाद का करीब 6.8 प्रतिशत रहने के आसार हैं। एक साल पहले यानी 20-21 में यह 9.2 प्रतिशत था, हालांकि 18-19 में यह सिर्फ 3.4 प्रतिशत था। पर पिछले दो साल असाधारण साल रहे और सरकार को कई तरह के खर्च करने पड़े, पर दो कोरोना सालों में एक साल राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 9.2 प्रतिशत रहा और अगले साल गिरकर 6.8 प्रतिशत रहा। इससे संकेत यह मिलते हैं कि सरकार के राजस्व के हालत बेहतर हो रहे हैं, जो जीएसटी संग्रह के आंकडों से साफ भी होता है। राजकोषीय घाटा दोबारा तीन प्रतिशत के स्तर पर कब लौटेगा, इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है, क्योंकि कोरोना का कहर कब पूरे तौर पर शांत होगा , इस सवाल का जवाब भी किसी के पास नहीं हैं।
विदेशी मुद्रा कोष :आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार दिसंबर 2021 के अंत तक भारत के पास 633.60 अरब डालर रुपये के विदेशी मुद्रा भंडार थे। मार्च 21 में विदेशी मुद्रा कोष 577 अरब डालर के थे। यानी विदेशी मुद्रा के मामले में भारत की स्थिति ठीक ठाक है। पर 2022 में कच्चे तेल के भावों की तेजी के अलावा एक और मद में विदेशी मुद्रा का बड़ा खर्च हो सकता है। वह मद है विदेशी मुद्रा में लिये गये कर्जों की अदायगी। चुनौतियों की कमी नहीं है। पर स्थितियों के संकेत जैसे आर्थिक सर्वेक्षण ने दिये हैं, उनके मुताबिक लड़खड़ाकर संभलने की क्षमता भारतीय अर्थव्यवस्था में है।
(लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)
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